कीर्तन
बहुत हैरान हूँ भगवान तुम्हें कैसे मनाऊ मैं
बहुत हैरान हूँ भगवान तुम्हें कैसे मनाऊ मैं
न कोई वस्तु है ऐसी जिसे तेरे पास लाऊ मैं
बहुत हैरान हूँ भगवान तुम्हें कैसे मनाऊ मैं
खिलाते हो तुम सब जग को तुम्हें कैसे खिलाऊ मैं
न कोई वस्तु है ऐसी जिसे तेरे पास लाऊ मैं
न कोई तेज रोशन है मैं सूरज चाँद तारो सा
महा अंधेर है भगवन अगर दीपक जलाऊ मैं
बहुत हैरान हूँ भगवान तुम्हें कैसे मनाऊ मैं
खुदाई है न सीना है मगर दिल है न बेगाना
तुम्हारी शरण नारायण कहाँ दीपक जलाऊ मैं
कहाँ चक्कर लगाऊ मैं
बहुत हैरान हूँ भगवान तुम्हें कैसे मनाऊ मैं
न कोई वस्तु है ऐसी जिसे तेरे पास लाऊ मैं।
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