Friday, 29 June 2018

वो मेहंदी मेरे हाथों में नहीं दिल में लगाई थी मैंने

               कविता 

वो मेहंदी मेरे हाथों में नहीं दिल में लगाई थी मैंने। 
वो मेरे ख्वाब थे ,
वो मेरे जस्बात थे ,
वो मेहंदी मेरे हाथों में नहीं दिल में लगाई थी मैंने। 
वो अभिमान था मेरा ,
वो स्वाभिमान था मेरा ,
वो मेहंदी मेरे हाथों में नहीं दिल में लगाई थी मैंने। 
वो मेहंदी जिसे अरमानो से रचाया था ,
वो मेहंदी जिसे सब से छुपाया था ,
वो मेहंदी जिसे अभी तो रचना था और भी ज़्यादा ,
वो मेहंदी यूँ कैसे उतर गई ?
वो मेहंदी आँसुओ से बह गई क्यों ?
                                             
                                                 BY - A.S.

                                            

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