Tuesday, 16 October 2018

क्षत्रिय ( राजपूत ) वंश और उतपत्ति इतिहास

 क्षत्रिय ( राजपूत ) वंश और उतपत्ति इतिहास 


 आदि इतिहास 


पौराणिक इतिहास से पता चलता है की सूर्यवंशी पहला राजा वैवस्वत मनु का बेटा इक्ष्वाक हुआ जिसकी राजधानी अयोध्या थी। इक्ष्वाक से 55 पीढ़ी बाद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचन्द्र ने अवतार लिया। रामचन्द्र जी के बड़े राजकुमार कुश की संतति कुशवाह वंश है। केशव दास जी ने अपनी प्रसिद्ध महाकाव्य 'रामचन्द्रिका' में लिखा है कि रामचन्द्र ने अपने विशाल साम्राज्य को आठ भागों में विभाजित करके अपने पुत्रों और भ्रातृजों में विभक्त किया था। अपने बड़े पुत्र कुश को कुशावती और लव को अवंतिका (उज्जैन) दी, भरत के पुत्रों में पुष्कल को पुष्करावती और तक्ष को तक्षशिला और लक्षमण के पुत्र अंगद को अंगद नगर और चन्द्रकेतु को चन्द्रावती का राजा बनाया। शत्रुध्न के पुत्र सुबाहु को मथुरा और शत्रुघात को अयोध्या का राजा बनाया था।  

 क्षत्रिय ( राजपूत )

क्षत्रिय ( राजपूत ) चार सबसे बड़ी हिन्दू जातियों में दूसरी बड़ी जात हैं। ये युद्ध कला में पारंगत होते हैं और समाज की रक्षा करना इनका धर्म होता हैं।   

पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट राजवंश 

  1. सूर्यवंशअनेक वंशों में सूर्यवंश ही सबसे विस्तृत एवं अपनी त्याग और तपस्वी आचरण से समस्त भूमण्डल में कीर्ति स्थापित करने वाला है। 
  2. चन्द्रवंश - उत्तरकालीन भारतीय इतिहास में अयोध्या, विदेह एवं वैशाली इन तीनों देशों को छोड़कर बाकी सारे उत्तर भारत तथा दक्षिणी भारत पर सोमवंशीय राजाओं का राज्य था। 
  3. स्वायंभुव मनुवंश - प्राचीन भारतखंड के ब्रह्मावर्त नामक प्रदेश में स्थित वर्हिष्मती नगरी का सर्वाधिक प्राचीन राजा स्वयंभुव मनु था। इस वंश की उत्तानपाद एवं प्रियब्रत नामक दो शाखाएँ मानी जाती हैं। 
  4. भविष्य वंश में वंश श्रृंखलाएँ - 1.आन्ध्र (भृत ृवंश ), 2.काणवायन (श्रृंगभृत्य) वंश, 3.नन्द वंश, 4.प्रद्योत वंश, 5.मगध वंश, 6.मौर्यवंश, 7.शिशु नागवंश, 8. श्रृंगवंश, 9.यवन, 10.शक, 11.हूण। 
  5. मानवेतर वंश - पौराणिक साहित्य में देव, गन्धर्व, दानव, अप्सरा, राक्षस, यक्ष, नग, गरुड़ आदि अनेक वंशों का निर्देश प्राप्त है। जो प्रायः कश्यप ऋषि की सन्तान मानी गई हैं जिनकी तेरह पत्नियाँ थीं। 

  • सप्त ऋषियों की सन्तान - पौराणिक एवं महाभारत साहित्य में राक्षस, यक्ष एवं गन्धर्व को पुलह पुलस्त्य अगस्त जैसे सप्तऋषियों की सन्तान कहा गया है। 
  • वानर वंश - वानरों को पुलह एवं हरिभद्रा की सन्तान कहा गया है। उनके प्रमुख 12 कुल कहे गए हैं। 

  1. द्धीपिन 
  2. शरम 
  3. सिंह 
  4. व्याघ्र 
  5. नील 
  6. शल्यक
  7. श्रृप्क्षे
  8. माजीर 
  9. लोभास 
  10. लोहास 
  11. वानर
  12. मायाव 

  • राक्षस वंश - यह भी पुलह पुलस्त्य अगस्त्य ऋषियों की संतान कहा गया है। दैत्यों में हिरण्य कशिपु हिरण्याक्ष का स्वतन्त्र वंश वर्णन भी प्राप्त है। आगे चलकर इन जातियों का स्वतन्त्र अस्तित्व नष्ट होकर अनार्य एवं दुष्ट जाति के लोगों के लिए ये नाम प्रयुक्त किए जाने लगे। 

  सूर्यवंश का परिचय  

    सूर्यवंश सृष्टि के आरम्भ से है। इस वंश का प्रथम राजा इक्ष्वाकु वैवस्वत मनु के पुत्र थे जो अयोध्या नगरी के प्रथम राजा हुए।इन्हीं इक्ष्वाकु से सूर्यवंशी
क्षत्रियो की उत्पत्ति हुई। इक्ष्वाकु के एक पुत्र मिथि ने मिथिला राज्य स्थापित किया। इनके एक भाई करूष से उत्तर के देशों में स्वामित्व स्थापित हुआ तथा एक भाई शयति के पुत्र अनंत के नाम सेअनर्त देश कहलाया। इनके पुत्र रवत ने द्वारिका नगरी को राजधानी बनाया इनके पाँचवे भाई नाभाण के पुत्र अंबरीष सप्तद्वीप के राजा हुए। इनके भाई नदिष्ट के वंश के विशाल राजा ने मिथिला के पास वैशाली नगर बसाया। वैवस्वत मनु के पुत्र सुधुम्न के तीन पुत्र उत्कल, गय और विशाल थे। उत्कल ने उड़ीसा, गय ने गया नाम के दो राज्य स्थापित किए। इक्ष्वाकु के १०० पुत्रों में से 25 पुत्र हिमांचल और विन्ध्याचल, दूसरे पश्चिम की ओर और शेष दक्षिण के राजा हुए।
    इक्ष्वाकु के बड़े पुत्र विकुक्षि, विकुक्षि के पुरंजय के अनयना तथा उनके पुत्र पृथु, पृथु के विश्वगंध जिनके चन्द्र, चन्द्र के युवनाश्व, युवनाश्व के श्रावास्त हुए जिन्होंने श्रावस्ती नगरी ( बिहार ) बसाई। इनके पुत्र वृहदश्व के कुवलयाश्व, कुवलयाश्व के बड़े पुत्र दृढ़ाश्व इनके हर्यश्व जिनके पुत्र निकुम्भ हुए। इसी श्रेणी में महान दानी सत्यग्रत राजा हरिश्चन्द्र हुए जिनके पुत्र रोहित ने शाहाबाद जनपद में रोहितश्वगढ़ बसाया। जिनके प्रपौत्र चम्प ने चम्पानगरी बसाई। इसी शाख में आगे सागर, राजा दिलीप उनके पुत्र भागीरथ हुए, जिनकी घोर तपस्या से गंगा जी भूतल पर आयी। इनके आगे अठारहवीं पीढ़ी में राजा रघु हुए जिनके बंशज रघुबंशी क्षत्रि हैं। इनके पुत्र 'अज ' हुए, अज के दशरथ और दशरथ के विश्वविख्यात महाराज रामचन्द्र हुए, जिनके बड़े पुत्र कुश से कुशवंश ( कछवाहा वंश ) और राठौर वंश चले। विभिन्न राजवंशो के मध्य सूर्यवंश सबसे लम्बा है। जब तक आर्य जाति का अस्तित्व रहेगा तब तक परम पावनी अयोध्या के प्रति श्रद्धा का लोप नहीं हो सकता।


 सूर्यवंशीय क्षत्रिय 
गहिलौत
ये क्षत्रिय सूर्यवंशी हैं। रामचन्द्र के छोटे पुत्र लब के वंशज हैं। गोत्र बैजपाय ( वैशाम्पायनी ), वेद यजुर्वेद, गुरु वशिष्ठ, नदी सरयू, इष्ट, एकलिंग शिव, ध्वज लाल सुनहला उस पर सूर्यदेव का चिन्ह। प्रधान गद्दी चित्तौड़ ( अब उदयपुर ) है। इस वंश के क्षत्रिय मेवाड़ राजपूताना, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार प्रान्त के मुंगेर मुजफ्फर नगर तथा गया जिले में पाए जाते हैं। इसकी 24 शाखायें थीं। अधिकांश शाखाएँ समाप्त हो गयीं। 
  कुशवाहा (कछवाहे)  
ये सूर्यवंशी क्षत्रिय कुश के वंशज हैं। कुशवाहा को कछवाह या राजावत भी कहते है। गोत्र गौतम, गुरु वशिष्ठ, कुलदेवी ( दुर्गां मंगला ), वेद सामवेद, निशान पचरंगा, इष्ट रामचन्द्र, वृक्ष वट। ठिकाने जयपुर, अलवर, राजस्थान में रामपुर, गोपालपुरा, लहार, मछन्द, उत्तर प्रदेश में तथा यत्र-तत्र जनपदों में पाए जाते हैं। 
 सिसोदिया क्षत्रिय 
राहत जी के वंशज ''सिसोदाग्राम'' में रहने से यह नाम प्रसिद्ध हुआ। यह ग्राम उदयपुर से 24 किलोमीटर उत्तर में सीधे मार्गं से है। गहलौत राजपूतों की शाखा सिसोदिया क्षत्रिय हैं। इस वंश का राज्य उदयपुर प्रसिद्ध रियासतों में है। इस वंश की 24 शाखाएँ हैं। सिसोदिया है जो ''शीश +दिया'' अर्थात ''शीश/सिर/मस्तक'' का दान दिया या त्याग कर दिया या न्योछावर कर दिया इसीलिए ऐसा करने वाले स्वाभिमानी क्षत्रिय वंशजों को सिसोदिया कहा जाता है। इनकी बहुलता पर इनके प्रथमांक राज्य को ''शिशोदा'' कहा गया और राजधानी कुम्भलगढ़/केलवाड़ा कहा गया।  
श्रीनेत क्षत्रिय 
सूर्यवंशी हैं गोत्र-भारद्वाज, गद्दी श्रीनगर ( टेहरी गढ़वाल ) यह निकुम्भ वंश की एक प्रसिद्ध शाखा है। ये लोग उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, बलिया, गोरखपुर तथा बस्ती जिले में बांसी रियासत में पाए जाते हैं। बिहार प्रान्त के मुजफ्फरपुर, भागलपुर, दरभंगा और छपरा जिले के कुछ ग्रामों में भी है। 
 दीक्षित क्षत्रिय 

यह वंश सूर्यवंशी है। गोत्र-काश्यप है। इस वंश के लोग उत्तर प्रदेश और बघेल खण्ड में यत्र-तत्र पाए जाते हैं। इस वंश के क्षत्रियों ने नेवतनगढ में राज्य किया, इसलिए नेवतनी कहलाए।  यह लोग छपरा जिले में पाए जाते हैं।  दीक्षित लोग विवाह-संबंध स्थान-भेद से समान क्षत्रियों में करते हैं। 
 रघुवंशी क्षत्रिय 
रघुवंशी सूर्यवंश की शाखा है। गोत्र-भारद्वाज, ये जौनपुर, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश में यत्र-तत्र पाए जाते हैं।
 राठौर क्षत्रिय 
गोत्र-गौतम ( राजपूताने में ) तथा काश्यप ( पूर्व में ) अत्रि दक्षिण भारत में राठौर मानते हैं। बिहार के राठौरों का गोत्र शांडिल्य है। गुरु वशिष्ठ हैं।
शाखाएँ

  1. मेढ़तिया
  2. चन्दावत 
  3. जगावत ( राजधानी कैलवाढ़ )
  4. धांधुल 
  5. भदेल 
  6. चकेल 
  7. दोहरिया 
  8. खौबरा 
  9. रामदेव 
  10. झालावत 
  11. गौगदेवा 
  12. जैसिहा
  13. श्राविया 
  14. जौवसिया
  15. जौरा 
  16. सुंदू 
  17. कटैया 
  18. हुठदिया 
  19. दगजीरा 
  20. मुरसिया 
  21. बदुरा 
  22. मुहौली 
  23. महेचा 
  24. कबरिया।
निकुम्भ क्षत्रिय
गोत्र-वशिष्ठ हैं। शीतलपुर, दरभंगा, आरा, भागलपुर आदि जिलों में पाए जाते हैं। ये उत्तर प्रदेश में यत्र-तत्र पाए जाते हैं। ये सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं। राजा इक्ष्वाकु के 13वें वंशधर निकुम्भ के हैं। 
 नागवंशीय क्षत्रिय
गोत्र-कश्यप हैं। ये क्षत्रिय बहुत प्राचीन हैं। खैरागढ़ ( छत्तीस गढ़ मध्यप्रदेश ) रांची, हजारीबाग, मानभूमि, छोटा नागपुर ( बिहार ), मुजफ्फरनगर आदि में यत्र-तत्र पाए जाते हैं।
 बैस क्षत्रिय
गोत्र भरद्वाज हैं। इस वंश की रियासतें सिगरामऊ, मुरारमऊ, खजुरगाँव, कुर्री सिदौली, कोड़िहार, सतांव, पाहू, पिलखा, नरेन्द्र, चरहुर, कसो, देवगांव, हसनपुर तथा अवध और आजमगढ़ जिले में हैं।
बड़गूजर क्षत्रिय
गोत्र-वशिष्ठ हैं। यह वंश रामचन्द्र के पुत्र लव से हैं। ये राजपूताना, बुलन्दशहर, अलीगढ़, एटा, मुरादाबाद, बदायू, हरियाना हिसार आदि में पाए जाते हैं।
गौड़ क्षत्रिय
गोत्र भरद्वाज हैं। यह वंश भरत से चला हैं। ये मारवाड़, अजमेर, राजगढ़, शिवपुर, बड़ौदा, शिवगढ़, कानपुर, सीतापुर, उन्नाव, इटावा, शाहजहाँपुर, फरुर्खाबाद, जिलों में पाए जाते हैं। ये क्षत्रिय सूर्यवंशी हैं।
सिकरवार क्षत्रिय
गोत्र भरद्वाज हैं। ये ग्वालियर, आगरा, हरदोई, गोरखपुर, गाजीपुर, आजमगढ़ आदि स्थानों में पाए जाते हैं।
 सूर्यवंशी क्षत्रिय
ये प्राचीन वंश हैं। गोत्र भरद्वाज है। गुरु आंगिरस हैं। प्राचीन काल में श्रीनगर, गढ़वाल के राजा थे। ये लोग उत्तर प्रदेश के फैजाबाद, बस्ती, बाराबन्की, बुलन्दशहर, मिर्जापुर, गाजीपुर जिलों में पाए जाते हैं।
गौतम क्षत्रिय
गोत्र गौतम है। ये उत्तर प्रदेश, बिहार, मुजफ्फरनगर, आरा, छपरा, दरभंगा आदि जिलों में पाए जाते हैं। उत्तर प्रदेश में फतेहपुर, कानपुर जिलों में हैं।
बिसेन क्षत्रिय
गोत्र पारासर ( भरद्वाज, शोडिल्व, अत्रि, वत्स ) ये मझौली ( गोरखपुर ), भिनगा ( बहराइच ), मनकापुर ( गोंडा ), भरौरिया ( बस्ती ), कालाकांकर ( प्रतापगढ़ ) में अधिक हैं।
रैकवार क्षत्रिय
गोत्र भरद्वाज हैं। ये बौंडी ( बहराइच ), रहबा ( रायबरेली ), भल्लापुर ( सीतापुर ) रामनगर, धनेड़ी ( रामपुर ), मथुरा ( बाराबंकी ), गोरिया कला ' उन्नाव ' आदि में पाए जाते हैं। बिहार प्रान्त के मुजफ्फरपुर जिले में चेंचर, हरपुर आदि गाँवों में तथा छपरा और दरभंगा में भी यत्र-तत्र पाए जाते हैं।
 झाला क्षत्रिय
गोत्र-कश्यप हैं। इनके ठिकाने बीकानेर, काठियावाड़, राजपूताना आदि में हैं।
बल्ल क्षत्रिय
रामचन्द्र के पुत्र लव से यह वंश चला हैं। बल्लगढ सौराष्ट्र में पाए जाते हैं।
गोहिल क्षत्रिय
इस वंश का पहला राजा गोहिल था, जिसने मारवाड़ के अन्दर बरगढ़ में राज्य किया। गोत्र कश्यप हैं।
चन्द्रवंशीय शाखाएँ
चन्द्र पुत्र भगवान बुध चन्द्रवंश के आदि प्रतिष्ठा करने वाले महापुरुष हैं। उन्होंने वैवस्वत मनु की कन्या इला का पाणिग्रहण किया जिनसे राजर्षि पुरुरवा हुए। उनकी चौथी पीढ़ी में ययाति हुए थे।
शाखाएँ
यदुवंशी-गोत्र कौडिन्य और गुरु दुर्वासा हैं। मथुरा के यदुवंशी करौली के राजा हैं। मैसूर राज्य यदुवंशियों का था। 8 शाखाएँ हैं।
जोड़जा क्षत्रिय
ये क्षत्रिय श्रीकृष्ण के शाम्ब नामक पुत्र की संतान हैं। मौरबी राज्य, कच्छ राज्य, राजकोट नाभानगर ( गुजरात ) में पाए जाते हैं।
तोमर क्षत्रिय
गोत्र गर्ग हैं। ये जोधपुर, बीकानेर, पटियाला, नाभा, धौलपुर आदि में हैं। मुख्य घराना तुमरगढ है। इनकी एक प्रशाखा जैरावत, जैवार नाम से झांसी जिले में यत्र-तत्र आबाद है। 
 चन्देल क्षत्रिय
गोत्र चन्द्रायण, गुरु गोरखनाथ जी हैं। ये क्षत्रिय बिहार प्रान्त में गिद्धौर नरेश कनपुर, मिर्जापुर, जौनपुर, आलमनगर रियासत दरभंगा जिले में बंगरहरा रियासत थी। बस्तर राज्य ( मध्य प्रदेश ) बुन्देल खण्ड में भी यत्र-तत्र पाए जाते हैं। 
 सोमवंशी क्षत्रिय
गोत्र अत्रि हैं। ये लोग पंजाब, बिहार, सीतापुर, फर्रुखाबाद, गोंडा, प्रतापगढ़, बरेली आदि में हैं।
सविया सौर ( सिरमौर ) क्षत्रिय
गोत्र कश्यप हैं। ये लोग बिहार के गया जिले में अधिक पाए जाते हैं।
भाटी क्षत्रिय
यह श्रीकृष्ण के बड़े पुत्र प्रदुम्न की संतान हैं। राजस्थान में जैसलमेर, बिहार के भागलपुर और मुंगेर जिले में पाए जाते हैं।
हेयरवंश क्षत्रिय
गोत्र कृष्णत्रिय और गुरु दत्तात्रेय। ये बिहार, मध्यप्रदेश एवं उत्तरप्रदेश में यत्र-तत्र पाए जाते हैं। ये क्षत्रिय चन्द्रवंशी हैं।
सेंगर क्षत्रिय
गोत्र गौतम, गुरु श्रृंगी ऋषि, विश्वामित्र। ये क्षत्रिय जालौन में हरदोई, अतरौली तथा इटावा में अधिक पाए जाते हैं। ये ऋषिवंशी हैं। सेंगरों के ठिकाने जालौन और इटावा में भरेह, जगम्मनपुर, सरु, फखावतू, कुर्सीं, मल्हसौ है। मध्यप्रदेश के रीवां राज्य में भी बसे हैं।
भौंसला क्षत्रिय
ये सूर्यवंशी हैं, गोत्र कौशिक है। दक्षिण में सतारा, कोल्हापुर, तंजावर, नागपुर, सावंतबाड़ी राजवंश प्रमुख हैं। इसी बंश में शिवाजी प्रतापी राजा हुए।
चावड़ा क्षत्रिय
अग्निवंशी हैं। गोत्र कश्यप हैं। प्रमारवंश की 16वीं शाखा है। चावड़ा प्राचीन राजवंश है। ये दक्षिण भारत तथा काठियाबाड़ में पाए जाते हैं। इस वंश का विवाह संबंध स्थान भेद से समान क्षत्रियों के साथ होता है।
मालव क्षत्रिय
अग्निवंशी हैं। इनका भरद्वाज गोत्र हैं। मालवा प्रान्त से भारत के विभिन्न स्थानों में जा बसे हैं, अतः मालविया या मालब नाम से ख्याति पायी। उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में तथा बिहार के गया जिले में पाए जाते हैं।
रायजादा क्षत्रिय
अग्निवंशी चौहानों की प्रशाखा में हैं। गोत्र चौहानों की भांति है। ये लोग अपनी लड़की भदौरियों, कछवाह और तोमरों को देते हैं तथा श्रीनेत, वैश विश्वेन, सोमवंशी आदि को कन्या देते हैं। यह उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में पाए जाते हैं।
महरौड़ वा मड़वर क्षत्रिय
चौहानों की प्रशाखा है। गोत्र वत्स है। चौहान वंश में गोगा नाम के एक प्रसिद्ध वीर का जन्म हुआ था। उसकी राजधानी मैरीवा मिहिर नगर थी। यवन आक्रमण के समय अपनी राजधानी की रक्षा हेतु वह अपनी 45 पुत्रों एवं 60 भ्राता पुत्रों सहित युद्ध में मारे गए। उनके वंशजों ने अपने को महरौड़ व मड़वर कहना शुरू किया। इस वंश के क्षत्रिय गण उत्तर प्रदेश के बनारस, गाजीपुर, उन्नाव में पाए जाते हैं और बिहार के शाहाबाद, पटना, मुजफ्फरपुर, बैशाली जिलों में पाए जाते हैं।
उज्जैनीय क्षत्रिय
ये क्षत्रिय अग्नि वंशी प्रमार की शाखा हैं। गोत्र शौनक है। ये राजा विक्रमादित्य व भोज की सन्तान हैं। ये लोग अवध और आगरा प्रान्त के पूर्वी जिलों में पाये जाते हैं। इस वंश की बहुत बड़ी रियासत डुमरांव बिहार प्रान्त के शाहाबाद जिले में है। वर्तमान डुमरांव के राजा कलमसिंह जी सांसद। इस वंश के क्षत्रिय बिहार के शाहाबाद जिले के जगदीशपुर, दलीपपुर, डुमरांव, मेठिला, बक्सर, केसठ, चौगाई आदि में तथा मुजफ्फरपुर, पटना, गया, मुगेर और छपरा आदि जिलों में बसे पाये जाते हैं।
परमार क्षत्रिय
ये अग्निवंशी हैं, गोत्र गर्ग है। इस वंश की प्राचीन राजधानी चंद्रावती है। मालवा में प्रथम राजधानी धारा नगरी थी, जिसके पश्चात् उज्जैन को राजधानी बनाया। बिक्रमादित्य इस वंश का सबसे प्रतापी राजा हुआ, जिनके नाम पर विक्रम संवत प्रारम्भ हुआ, इसी वंश में सुप्रसिद्ध राजा मुंडा और भोज हुए इनकी 35 शाखायें हैं। इन क्षत्रियों के ठिकाने तथा राज्य हैं, नरसिंहगढ़, दान्ता राज्य, सूंथ धार, देवास, पंचकोट, नील गाँव ( उत्तर प्रदेश ) तथा यत्र-तत्र पाये जाते हैं।
परिहार क्षत्रिय
ये क्षत्रिय अग्निवंशी हैं। गोत्र काश्यप, गुरु वशिष्ठ, इनके ठिकाने हमीरपुर, गोरखपुर, नागौद, सोहरतगढ़, उरई ( जालौन ) आदि में हैं। इस वंश की 19 शाखायें हैं, भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग नाम से।
चौहान क्षत्रिय
ये क्षत्रिय अग्निवंशी हैं। गोत्र वत्स है। इस वंश की 24 शाखायें हैं -1. हाड़ा ,2 . खींची ,3 . भदौरिया ,4 . सौनगिन ,5 . देवड़ा ,6 . पाविया ( पावागढ़ के नाम से ) ,7 . संचोरा ,8 . गैलवाल ,9 . निर्वाण ,10 . मालानी ,11 . पूर्विया ,12 . सूरा ,13 . नादडेचा ,14 . चाचेरा ,15 . संकेचा ,16 . मुरेचा ,17 . बालेचा ,18 . तस्सेरा ,19 . रोसिया ,20 . चान्दू ,21 . भावर ,22 . वंकट ,23 . भोपले ,24 . धनारिया।
इनके वर्तमान ठिकाने हैं - छोटा उदयपुर, सोनपुर राज्य ( उड़ीसा ), सिरोही, राजस्थान, बरिया ( मध्य प्रदेश ), मैनपुरी, प्रतापनेर, राजौर, एटा, ओयल, ( लखीमपुर ) चक्रनगर, बारिया राज्य, बून्दी, कोटा, नौगाँव ( आगरा ), बलरामपुर बिहार में पाए जाते हैं।
सोलंकी क्षत्रिय
ये क्षत्रिय अग्निवंशी हैं। गोत्र भरद्वाज है। दक्षिण भारत में ये चालुक्य कहे जाते हैं। इनके ठिकाने अनहिल्लबाड़ा, बासंदा, लिमरी राज्य, रेवाकांत, रीवां, सोहाबल तथा उत्तर प्रदेश में यत्र-तत्र पाये जाते हैं।
राजपाली ( राजकुमार ) क्षत्रिय
ये अग्निवंशी हैं। गोत्र वत्स है। ये राजवंश वत्स गोत्रीय चौहान की शाखा है। राजौर से ये लोग खीरी, शाहाबाद, पटना, दियरा, सुल्तानपुर, छपरा, मुजफ्फरपुर आदि में है।
डोडा क्षत्रिय
यह अग्निवंशी परमार की शाखा है। गोत्र आदि परमारों की भांति है। प्राचीनकाल में बड़ौदा डोडा की राजधानी थी। मेरठ एवं हापुड़ के आस-पास इनकी राज्य था। इस समय पपिलोदा ( मालवा ), सरदारगढ़ मेवाड़ राज्य हैं। मुरादपुर, बाँदा, बुलन्द शहर, मेरठ, सागर ( मध्य प्रदेश ) आदि में पाये जाते हैं।
बघेल क्षत्रिय
गोत्र भरद्वाज हैं।यह सोलंकियों की शाखा हैं। बघेलों को सोलंकी वंश से राजा व्याघ्रदेव की सन्तान माना गया है। इन्हीं व्याघ्रदेव के नाम से सन् 615 ई. में बघेलखण्ड प्रसिद्ध हुआ। रीवां राज्य, सोहाबल, मदरवा, पांडू, पेथापुर, नयागढ़, रणपुरा, देवडर ( मध्य प्रदेश में ),तिर्वा ( फर्रुखाबाद ) बघेलों के प्रमुख ठिकाने हैं।
गहरवार क्षत्रिय
गोत्र कश्यप है। गहरवार राठौरों की शाखा है। महाराजा जयचन्द के भाई माणिकचन्द्र राज्य विजयपुर माड़ा की गहरवारी रियासत का आदि संस्थापक कहा गया है। ये क्षत्रिय इलाहाबाद, बनारस, मिर्जापुर, रामगढ़, श्रीनगर आदि में पाये जाते हैं। इनकी एक शाखा बुन्देला है। बिहार में बागही, करवासी और गोड़ीवां में गहरवार हैं।
बुन्देला क्षत्रिय
ये गहरवार क्षत्रियों की शाखा है। गहरवार हेमकरण ने अपना नाम बुन्देला रखा। राजा रुद्रप्रताप ने बुन्देलखण्ड की राजधानी गढ़कुण्डार से ओरछा स्थानान्तरित की बैशाख सुदी 13 संबत 1588 विक्रम को राजधानी ओरछा स्थापित की गई। इस वंश के राज्य चरखारी, अजयगढ़, बिजावर, पन्ना, ओरछा, दतिया, टीकमगढ़, सरीला, जिगनी आदि हैं।
लोहतमियां क्षत्रिय
सूर्यवंश की शाखा है। लव की सन्तान माने जाते हैं। ये बलिया, गाजीपुर, शाहाबाद जिलों में पाये जाते हैं।


36 राजवंशों में विभिन्न लेखकों एवं ऐतिहासिक विद्वानों का मत एक नहीं है। जैसे

क्षत्रिय वंश भास्कर पृष्ठ संख्या 214 लेखक डाo इन्द्रदेव नारायण सिंह के अनुसार -
1- सूर्यवंश , 2- चन्द्रवंश , 3- यदुवंश , 4- गहलौत , 5- तोमर , 6- परमार , 7- चौहान , 8- राठौर , 9- कछवाहा , 10- सोलंकी , 11- परिहार , 12- निकुम्भ , 13- हैहय , 14- चन्देल , 15- तक्षक , 16- निमिवंशी , 17- मौर्यवंशी , 18- गोरखा , 19- श्रीनेत , 20- द्रहयुवंशी , 21- भाठी , 22- जाड़ेजा , 23- बघेल , 24- चाबड़ा , 25- गहरवार , 26- डोडा , 27- गौड़ , 28- बैस , 29- विसैन , 30- गौतम , 31- सेंगर , 32- दीक्षित , 33- झाला , 34- गोहिल , 35- काबा , 36- लोहथम्भ।

कर्नल जेम्स टाड़ के मतानुसार 36 राजवंश -
1- इश्वाकु , 2- कछवाहा , 3- राठौर , 4- गहलौत , 5- काथी , 6- गोहिल , 7- गौड़ , 8- चालुक्य , 9- चावड़ा , 10- चौहान , 11- जाट , 12- जेत्वा , 13- जोहिया , 14- झाला , 15- तंवर , 16- दाबी , 17- दाहिमा , 18- दाहिया , 19- दौदा , 20- गहरवाल , 21- नागवंशी , 22- निकुम्भ , 23- प्रमार , 24- परिहार , 25- बड़गुजर , 26- बल्ल , 27- बैस , 28- मोहिल , 29- यदु , 30- राजपाली , 31- सरविया , 32- सिकरवार , 33- सिलार , 34- सेंगर , 35- सोमवंशी , 36- हूण।

श्री चन्द्रवरदायी के अनुसार 36 राजवंश -
1- सूर्यवंश , 2- सोमवंशी , 3- राठौर , 4- अनंग , 5- अर्भाट , 6- कक्कुत्स्थ , 7- कवि , 8- कमाय , 9- कलिचूरक , 10- कोटपाल , 11- गोहिल , 12- गोहिल पुत्र , 13- गौड़ , 14- चावोत्कर , 15- चालुक्य , 16- चौहान , 17- छिन्दक , 18- दांक , 19- दधिकर , 20-देवला , 21- दोयमत , 22- धन्यपालक , 23- निकुम्भ , 24- पड़िहार , 25- परमार , 26- पोतक , 27- मकवाना , 28- यदु , 29- राज्यपालक , 30- सदावर , 31- सिकरवार , 32- सिन्धु , 33- सिलारु , 34- हरितट , 35- हूण , 36- कारद्वपाल।

मतिराम कृति वंशावली -
1- सूर्यवंश , 2- पैलवार , 3- राठौर , 4- लोहथम्भ , 5- रघुवंशी , 6- कछवाहा , 7- सिरमौर , 8- गोहलौत , 9- बघेल , 10- कावा , 11- सिरनेत , 12- निकुम्भ , 13- कौशिक , 14- चंदेल , 15- यदुवंश , 16- भाटी , 17-तोमर , 18- बनाफर , 19- काकन , 20- बंशं , 21- गहरबार , 22- करमबार , 23- रैकवार , 24- चन्द्रवंश , 25- सिकरवार , 26- गौड़ , 27- दीक्षित , 28- बड़बलिया , 29-विसेन , 30- गौतम , 31- सेंगर , 32- हैहय , 33- चौहान , 34- परिहार , 35- परमार , 36- सोलंकी।

77 comments:

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    1. विश्व में एकमात्र प्रमाणित प्राचीन क्षत्रिय वंश होता है माननीय ओर सम्माननीय महोदय हुकुम जिसे सुर्य वंश कहा जाता है तथा इसके समस्त क्षत्रियों को सूर्यवंशी क्षत्रिय कहा जाता हैं हुकुम ।।
      यह सुर्य वंश सृष्टि के आरम्भ निर्माण संरचना से भी पुर्व में अस्तित्व में आया हुआ हैं ओर क्षत्रियों के इसी एकमात्र वंश सुर्य वंश के आदि देव प्रथम क्षत्रियज सुर्य देवता को केन्द्र सेंटर में स्थापित करने के पश्चात ही समस्त सृष्टि का निर्माण संरचना उत्पत्ति किया गया है हुकुम अब इसका प्रमाण अपने आप में ही स्वयं सिद्ध हैं कि बिना केन्द्र सेंटर लिये/स्थापित किये कभी कोई आकृति नहीं बन सकती है केन्द्र के बिना कभी कोई निर्माण संरचना संभव नहीं है और इसे वैदिक गणित वाले-गणितज्ञ,खगोलशास्त्र वाले-खगोलशास्त्री,विज्ञान वाले- वैज्ञानिक इत्यादि वगैरह सहित सभी प्रमाणित एवं सिद्ध कर सकते है ओर ऐसा इन्होंने कई-कई बार कर भी दिया है महोदय हुकुम ।।
      अब आगे बढते हैं इस एकमात्र प्रमाणित प्राचीन क्षत्रिय वंश सुर्य वंश की शाखाओं उपशाखाओं प्रशाखाओं के बारे में जानने संबधित जानकारी को साझा करने हेतु .....
      सुर्य वंश की अथवा सुर्य वंशीय क्षत्रियों की कुल सत्तर/70/७० शाखाएँ होती है महोदय हुकुम जिनमें प्रमुखतया-- अग्नि,अर्क तेज से निकली "अग्नि शाखा" जिसमे क्षत्रिय सम्राट भोज परमार,वीर विक्रमादित्य इत्यादि वगैरह सहित बहुत से क्षत्रिय संख्या आती है जो सभी कालान्तर में अल्पज्ञान स्वरुप *अग्नि वंश के रुप में प्रचलित कर दी गई है महोदय हुकुम ।।

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  2. Very much informative 🤩🤩

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  3. I am also a Thakur
    And I like your blog

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  4. Bihar ke gaya me sirmour hai unka gotra bhardwaj hai.aur wah bais rajput rajput hai. Gaya jila me sabse adhik hai

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  5. Bihar ke sirmour bais rajput ki shakha hai gotra bhardwaj hai. Aur wah suryavanshi hai.gaya jila ke rajputo me sabse jyada hai.

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    1. Ha Mai bhi sirmour hu aur inka gotra bhardwaj hai yaha pe galat jankari di gayi hai ki sirmour ka gotra kshapya hai

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  6. आप ने जो जौंनपुर के रघुवंशियो का गोत्र भारद्वाज लिखो हो वो गलत है। जौंनपुर डोभी परगना तथा वाराणसी के कटेहर परगना रघुवंशियो का गोत्र कश्यप है।ये महराज लव के वंशधर करीराव (करीराय) के वंशज विरम देव अयोध्या के दनुवा रियासत के स्वामी थे।इन्ही विरम देव के पुत्र बाबा नयनदेव के वंशज वाराणसी के कटेहर जौंनपुर तथा वाराणसी के कटेहर तथा डोभी से जम्मू,प.बंगाल,विहार,गाजीपुर,चंदौली में रघुवंशी है।जो रघुवंशियो का एक मात्र गोत्र कश्यप है।

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    1. भारद्वाज मध्यप्रदेश के रघुवंशी क्षत्रियों का गोत्र है जीससे 84 गोत्र या शाखा निकली है

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  7. □कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया- शिशोदा,मेवाड़(अखंड राजपुताना) की टिम4 JUNE 2019 AT 10:30

    जी हुकूम 
    सही कहा है आपने महानुभाव
    आपका आभार और अभिनन्दन हुकूम 


    किन्तु सिसोदिया शब्द नही होकर वह "शिशोदिया" है जो "शिश+दिया" अर्थात 'शिश/सर/मस्तक' का दान दिया,त्याग कर दिया,न्योछावर कर दिया इसीलिए ऐसा करने वाले स्वाभिमानी सूर्यवंशी गहलोत रजपुत क्षत्रिय वंशजों को शिशोदिया कहा जाता है और इनकी बहुलता पर इनके प्रथमांक राज्य को "शिशोदा" कहा गया है!!(राजधानी कुम्भलगढ/केलवाडा)

    हुकुम सिंगेलिया गोत्र के बारे में गूगल पर जानकारी दी जाए ताकि यह गोत्र विलुप्त होने से बच सके इस गोत्र के लोगों की संख्या अब गिने चुने ही रह गई है अगर इस गोत्र के बारे में किसी को भी कोई जानकारी लेनी है ठाकुर बीएस चौहान द्वारा लिखित एक पुस्तक है जिसका नाम है एक हकीकत उससे प्राप्त कर सकते हैं जय मां भवानी जय जय राजपूताना
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    □कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया- शिशोदा,मेवाड़(अखंड राजपुताना) की टिम4 JUNE 2019 AT 09:59

    माननीय और सम्माननीय महोदय हुकूम 
    आपके द्वारा प्रेषित कि गयी उपर लिखीत जानकारी हेतु आपका व आपकी संकलन प्रकाशन एडिटिंग प्रिंटिंग टीम का बहुत-बहुत आभार और अभिनन्दन है !!
    अब इसमें मुख्य कथन सिसोदिया शब्द के बारे मे यह है कि हुकूम -'सिसोदिया'- 
    कोई "शब्द/गौत्र/प्रवर/कुल या वंश" कभी नही था ,
    वास्तविक इतिहास का यथासम्भव घटनाक्रम कालखंड के आधार पर संकलन करेंगे तो यह मूलरूप में -"शिशोदिया"- है जो "शिशोदा"(शिशोदा राजवंश राजधानी कुंभलगढ/केलवाड़ा) वर्तमान समय में एक आदर्श ग्राम है के निवासी होने से प्रचालन में है और इस 'वृहद/शक्तिशाली/गौरवमयी' ऐतिहासिक राज्य के अभ्युदय से लेकर युगों-युगों तक इसकी -"एकता-अखंडता-मज़बूती-प्रगाढ़ता"- बनाये रखने हेतु गहलोत क्षत्रिय रजपुत राजवंश के द्वारा समस्त टीम साथी सहयोगियों सहीत अपने पुरोधा/संस्थापक/आदिपुरूष/सूर्यवंशी कुलश्रेष्ठ महान कालजयी शासक/प्रशासक -"बप्पा"- बाप्पा रावल (राजा शिलादित्य-शिलवाहक के पौत्र एवं गुहादित्य के पुत्र) के समय से लेकर देशी राज्यों के समग्र -'अखंड-राजपुताना'- में विलय एवम् इसके पश्चात भी मेवाड़ टिम के रुप में अखंड राजपुताना ,अखंड भारत वर्ष हेतू 'बारम्बार-हर-बार'अपने -'शिश'- अर्थात 'सर/मस्तक' कटवाया,दान दिया,त्याग दिया,न्योछावर कर दिया,प्राणो का बलिदान दिया इसीलिए -"शिश+दिया"-शब्द बना और शिश देने वाले -"शिशोदिया"- कहलाये गये जो आज बहुतायत में हैं हुकूम!!

    अब हमारा अनुरोध है कि कृपया भाषायी/शाब्दिक भूल सुधार करके सत्य/शुद्ध/प्रासंगिक शब्द का लेखन,अंकन,प्रकाशन करते हुए पुनः नये सिरे से इतिहास में सिसोदिया शब्द के स्थान पर "शिशोदिया" लिखा जावें!!(प्रमाण हेतु शिशोदिया "कुल/गौत्र/वंश" के माननीय -"रावजी/भाटजी/बढवाजी/चारणजी"- कि लिखित पोथीयां,पांडुलिपियां,तथा संबंधित कालखंड की प्रचलित लोकोक्तियां,लोकगीत,लोकनृत्य,केहणावट,लोक-कथाओं के 'संयुक्त व सर्वमान्य सामुहिक सार-सारांश' का उप्लब्धता के आधार पर निरीक्षण किया जा सकता है!)
    ✍आपका 
    □कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया-
    शिशोदा,मेवाड़(अखंड राजपुताना)
    लेखक,समीक्षक,विश्लेषक 
    सम्पर्क- 9680377030
    वाट्सप- 9680759268
    -'राष्ट्रीय महासचिव'-
    अखिल भारतीय क्षत्रिय सेना 
    पंजीकृत राष्ट्रीय क्षत्रिय एवम् सामाजिक संघठन 
    -'अखंड भारतवर्ष'- हेतू सम्पूर्ण राष्ट्र में'संघठनात्मक रुप'से कार्यरत "राष्ट्रीय स्वयं सेवी सहायतार्थ संघठन" (नाॅन पोलिटिकल)
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    □कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया- शिशोदा,मेवाड़(अखंड राजपुताना) की टिम4 JUNE 2019 AT 10:20

    माननीय और सम्माननीय क्षत्रियत्व 'क्षत्रिय+तत्व'धारक एवं "क्षत्रियोचित गुण-कर्म से युक्त" स्वाभिमानी क्षत्रिय 'रज+पूत' महानुभाव,महोदय हुकूम 
    सभी महानुभावों से हमारा विशेष अनुरोध है कि कृपया "राष्ट्र-धर्म व कर्म तथा समाज(जिव-जगत/प्राणीमात्र)की
    रक्षार्थ,नि:स्वार्थ भाव से नोन पोलिटिकली" हमसे व पूर्णतया क्षत्रिय एवम् सामाजिक संघठन 
    🚩अखिल भारतीय क्षत्रिय सेना🚩
    से तन,मन,वचन,धन,कर्म से पुर्ण सक्रियता पुर्वक संघठनात्मक रुप से जुड़ने हेतु हमें सम्पर्क कीजियेगा महोदय हुकूम!!
    जय मां भवानी 
    जय श्री एकलिंगनाथाय नमः

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  8. □कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया- शिशोदा,मेवाड़(अखंड राजपुताना) की टिम4 JUNE 2019 AT 10:30

    जी हुकूम 
    सही कहा है आपने महानुभाव
    आपका आभार और अभिनन्दन हुकूम 


    किन्तु सिसोदिया शब्द नही होकर वह "शिशोदिया" है जो "शिश+दिया" अर्थात 'शिश/सर/मस्तक' का दान दिया,त्याग कर दिया,न्योछावर कर दिया इसीलिए ऐसा करने वाले स्वाभिमानी सूर्यवंशी गहलोत रजपुत क्षत्रिय वंशजों को शिशोदिया कहा जाता है और इनकी बहुलता पर इनके प्रथमांक राज्य को "शिशोदा" कहा गया है!!(राजधानी कुम्भलगढ/केलवाडा)

    हुकुम सिंगेलिया गोत्र के बारे में गूगल पर जानकारी दी जाए ताकि यह गोत्र विलुप्त होने से बच सके इस गोत्र के लोगों की संख्या अब गिने चुने ही रह गई है अगर इस गोत्र के बारे में किसी को भी कोई जानकारी लेनी है ठाकुर बीएस चौहान द्वारा लिखित एक पुस्तक है जिसका नाम है एक हकीकत उससे प्राप्त कर सकते हैं जय मां भवानी जय जय राजपूताना
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    □कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया- शिशोदा,मेवाड़(अखंड राजपुताना) की टिम4 JUNE 2019 AT 09:59

    माननीय और सम्माननीय महोदय हुकूम 
    आपके द्वारा प्रेषित कि गयी उपर लिखीत जानकारी हेतु आपका व आपकी संकलन प्रकाशन एडिटिंग प्रिंटिंग टीम का बहुत-बहुत आभार और अभिनन्दन है !!
    अब इसमें मुख्य कथन सिसोदिया शब्द के बारे मे यह है कि हुकूम -'सिसोदिया'- 
    कोई "शब्द/गौत्र/प्रवर/कुल या वंश" कभी नही था ,
    वास्तविक इतिहास का यथासम्भव घटनाक्रम कालखंड के आधार पर संकलन करेंगे तो यह मूलरूप में -"शिशोदिया"- है जो "शिशोदा"(शिशोदा राजवंश राजधानी कुंभलगढ/केलवाड़ा) वर्तमान समय में एक आदर्श ग्राम है के निवासी होने से प्रचालन में है और इस 'वृहद/शक्तिशाली/गौरवमयी' ऐतिहासिक राज्य के अभ्युदय से लेकर युगों-युगों तक इसकी -"एकता-अखंडता-मज़बूती-प्रगाढ़ता"- बनाये रखने हेतु गहलोत क्षत्रिय रजपुत राजवंश के द्वारा समस्त टीम साथी सहयोगियों सहीत अपने पुरोधा/संस्थापक/आदिपुरूष/सूर्यवंशी कुलश्रेष्ठ महान कालजयी शासक/प्रशासक -"बप्पा"- बाप्पा रावल (राजा शिलादित्य-शिलवाहक के पौत्र एवं गुहादित्य के पुत्र) के समय से लेकर देशी राज्यों के समग्र -'अखंड-राजपुताना'- में विलय एवम् इसके पश्चात भी मेवाड़ टिम के रुप में अखंड राजपुताना ,अखंड भारत वर्ष हेतू 'बारम्बार-हर-बार'अपने -'शिश'- अर्थात 'सर/मस्तक' कटवाया,दान दिया,त्याग दिया,न्योछावर कर दिया,प्राणो का बलिदान दिया इसीलिए -"शिश+दिया"-शब्द बना और शिश देने वाले -"शिशोदिया"- कहलाये गये जो आज बहुतायत में हैं हुकूम!!

    अब हमारा अनुरोध है कि कृपया भाषायी/शाब्दिक भूल सुधार करके सत्य/शुद्ध/प्रासंगिक शब्द का लेखन,अंकन,प्रकाशन करते हुए पुनः नये सिरे से इतिहास में सिसोदिया शब्द के स्थान पर "शिशोदिया" लिखा जावें!!(प्रमाण हेतु शिशोदिया "कुल/गौत्र/वंश" के माननीय -"रावजी/भाटजी/बढवाजी/चारणजी"- कि लिखित पोथीयां,पांडुलिपियां,तथा संबंधित कालखंड की प्रचलित लोकोक्तियां,लोकगीत,लोकनृत्य,केहणावट,लोक-कथाओं के 'संयुक्त व सर्वमान्य सामुहिक सार-सारांश' का उप्लब्धता के आधार पर निरीक्षण किया जा सकता है!)
    ✍आपका 
    □कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया-
    शिशोदा,मेवाड़(अखंड राजपुताना)
    लेखक,समीक्षक,विश्लेषक 
    सम्पर्क- 9680377030
    वाट्सप- 9680759268
    -'राष्ट्रीय महासचिव'-
    अखिल भारतीय क्षत्रिय सेना 
    पंजीकृत राष्ट्रीय क्षत्रिय एवम् सामाजिक संघठन 
    -'अखंड भारतवर्ष'- हेतू सम्पूर्ण राष्ट्र में'संघठनात्मक रुप'से कार्यरत "राष्ट्रीय स्वयं सेवी सहायतार्थ संघठन" (नाॅन पोलिटिकल)
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    □कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया- शिशोदा,मेवाड़(अखंड राजपुताना) की टिम4 JUNE 2019 AT 10:20

    माननीय और सम्माननीय क्षत्रियत्व 'क्षत्रिय+तत्व'धारक एवं "क्षत्रियोचित गुण-कर्म से युक्त" स्वाभिमानी क्षत्रिय 'रज+पूत' महानुभाव,महोदय हुकूम 
    सभी महानुभावों से हमारा विशेष अनुरोध है कि कृपया "राष्ट्र-धर्म व कर्म तथा समाज(जिव-जगत/प्राणीमात्र)की
    रक्षार्थ,नि:स्वार्थ भाव से नोन पोलिटिकली" हमसे व पूर्णतया क्षत्रिय एवम् सामाजिक संघठन 
    🚩अखिल भारतीय क्षत्रिय सेना🚩
    से तन,मन,वचन,धन,कर्म से पुर्ण सक्रियता पुर्वक संघठनात्मक रुप से जुड़ने हेतु हमें सम्पर्क कीजियेगा महोदय हुकूम!!
    जय मां भवानी 
    जय श्री एकलिंगनाथाय नमः

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  9. Gai rajput ke bareme bataye aur inki vansavli bhi bataiye

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  10. Beniwal naagavnshi kashtriya hote hain ki nahi,mathura ke.?

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    1. माननीय व सम्माननीय महोदय हुकूम
      जय मां भवानी हुकूम जय श्री एकलिंगनाथाय नमः
      महाभारत काल मे 'खांडव वन'जिसको पांडवों ने अपनी नवीन राजधानी बनाया था वह 'खांडव वन' नागराज 'तक्षक' का क्षेत्र हुआ करता था इन्द्रप्रस्थ से पुर्व हुकूम!!
      नागवंशी क्षत्रिय जो आजकल टांक गौत्र/प्रवर लगाते हैं उन्हीं 'तक्षक' के आव्हान पर किये गये नागों के 'आत्मदाह'के समय अस्तित्व में रहे तक्षक वंशीय अर्थात नागवंशीय कुल से निकले क्षत्रिय वंशज होते हैं हुकूम!!
      हमारे आचार्य जी परम श्रद्धेय प्रकाश सिंह टांक -"प्रकाशाचार्य"- जी स्वंय भी नागवंशी क्षत्रिय है हुकूम और नांगलोई-41दिल्ली विराजमान हैं आप इनसे नागवंशी क्षत्रिय के बारे में संपूर्ण जानकारी का संग्रह कर सकते हैं हुकूम!!

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    2. Hukum parkash singh ji tank ke contact details mil sakti hy

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    3. कृपया आप हुकूम हमे हमारे व्यक्तिगत नम्बर पर फोन द्वारा सम्पर्क कीजियेगा हुकूम 9680759268 @शिशोदा 'मेवाड़'

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  11. सभी "माननीय और सम्माननीय महानुभावों,समाज जनों,संघठनात्मक साथियों,क्षत्रिय दोस्तों-मित्रों-साथियों और सनातन क्षत्रियत्व धर्म(हिन्दुत्व) की वैदिक-सभ्यता-संस्कृति को मानने वाले देशवासीयों के चिंतन-मनन व अमल करने योग्य और जन-जागरण/राष्ट्र-जागरण/धर्म-जागरण के उद्देश्य से 'अखंड भारतवर्ष महासंघ' -
    ��अखिल भारतीय क्षत्रिय सेना��
    राष्ट्रीय स्वयं सेवी सहायतार्थ कार्यरत क्षत्रिय एवं सामाजिक संघठन(नाॅन पाॅलिटिकल)द्वारा प्रेषित
    ---------------------------------------------
    एक पल के लिए मान लीजिये कि आप एक 'राजा' हैं और आपको पड़ोसी देश पर आक्रमण करना है।इसके लिए आपको सेना चाहिए,लेकिन आप ये हरगिज़ नहीं चाहेंगे कि लड़ाई में आपके ज्यादा लोग मारे जाएँ।तो युद्ध शुरू होने से पहले ही आप पड़ोसी देश में गुप्तचर भी भेजेंगे।उन्हें शत्रु के हथियार नष्ट करने का आदेश भी होगा।वो दुश्मन देश के हथियारों के गोदाम में आग लगाना चाहेंगे,हथियार बनाने वालों को मार देना चाहेंगे। अब सोचिये कि "इस्लामिक हमलावर" लुहारों का क्या करते होंगे ? जिस इस्पात से दिमिश्क तक तलवारें बनती थी उन्हें वो या तो अपने पक्ष में(मजहब परिवर्तित कर के)रखना चाहते होंगे,या आसान तरीका क़त्ल कर देना चाहते होंगे।

    फिर बिलकुल यही थोड़े साल बाद अंग्रेजों ने भी किया होगा। उन्हें भी संभावित विरोध-विद्रोह को कुचलने का आसान तरीका यही लगा होगा कि अगर हथियार होंगे ही नहीं तो लड़ेंगे कैसे ? मतलब लुहारों पर प्रतिबन्ध लगे होंगे। ये अंग्रेजो वाले प्रतिबन्ध तो कानूनों में दिख जाते हैं। हथियार बनाना और बेचना आर्म्स एक्ट के तहत आने वाला "नॉन बेलेबल जुर्म" होता है।आज तो शायद कुछ लुहार किसी एन.जी.ओ. की मदद से शायद पिछड़ी जातियों के होने के कारण छूट भी जाते होंगे लेकिन फिरंगी शासन ने हरगिज़ इतनी छूट नहीं दी होगी।आज के दौर में जैसे हथियारों के सौदागर बड़े करोड़ों की डील करने वाले लोग होते हैं,कभी पुराने दौर में भी हथियारों के बड़े व्यापारी होते होंगे।

    विदेशी कानूनों को थोपकर,गरीब कर दी जाने वाली बिरादरी में से एक ये लुहार भी होंगे। गाय काटना बंद करने से कुरैशियों का धंधा जाएगा,गरीब भूखा मर जाएगा कहने के लिए तो ओवैसी जैसे शिया नेता आ जाते हैं। लुहारों से उनका व्यापार छीन लिए जाने पर किसी ने सवाल नहीं किये। उनका गरीब हो जाना मुझे 'बघनखा' और 'बिछुवा' देख के याद आया। एक दौर में ये स्त्रियों के द्वारा इस्तेमाल होने वाला प्रचलित हथियार था। मेरे ख़याल से गोरों से आजादी के दौर तक ये बनारस में आसानी से उपलब्ध रहा होगा। किसी दिन इसे भी ढूंढना होगा, क्या ये अब भी मिलते हैं ? मिलते हैं तो कहाँ मिलते हैं ? अलीगढ हो जाने से तालों जैसे,या रामपुरी चाकू की तरह ये भी तो ख़त्म नहीं हो गए ?

    -"मदन गड़रिया धन्ना गूलर आगे बढ़े वीर सुलखान,
    रूपन बारी खुनखुन तेली इनके आगे बचे न प्रान।
    लला तमोली धनुवां तेली रन में कबहुं न मानी हार,
    भगे सिपाही गढ़ माडौ के अपनी छोड़-छोड़ तरवार।"-

    अगर आपने ये चार लाइन पढ़ ली हैं तो शायद अंदाजा भी हो गया होगा कि ये विख्यात लोककाव्य “आल्हा-उदल” की हैं | ये किस दौर की थी ये अंदाजा करना भी मुश्किल नहीं है | लोक काव्य में उस दौर के जिन राजाओं का जिक्र आता है उसमें से एक पृथ्वीराज चौहान भी हैं | दिल्ली पर इस्लामिक आक्रमणों के शुरू होने के दौर के इस लोक काव्य की पंक्तियाँ आश्चर्यजनक हैं | अतिशयोक्ति अलंकार के कारण नहीं,इसमें मौजूद नामों के कारण |

    ये युद्ध का जिक्र करते-करते जिन योद्धाओं की बात करती है उनके नाम उनका दूसरा पेशा भी बता रहे हैं |गरड़िया,बारी,तेली,तमोली "आयातित मान्यताएं" तो ये स्थापित करने में जुटी होती हैं कि क्षत्रिय के अलावा बाकी सब को हथियार रखने-चलाने नहीं दिया जाता था | वो युद्ध में लड़ भी रहे हैं और उन्हें प्रबल योद्धा भी बताया जा रहा है ? इतिहास तो राजाओं की कहानी कहता है, ये राजा भी नहीं लग रहे आम लोगों के नाम क्यों हैं यहाँ ?
    कहीं और से आई आयातित परम्पराओं की ही तरह भारत का इतिहास क्या सिर्फ राजाओं का इतिहास नहीं होता था ? क्या जिस ज़ात के होने की बात बार-बार "हिन्दुओं पर थोपी" जाती है,उसमें ज के नीचे लगे नुक्ते के कारण उसका कहीं बाहर का रिवाज़ होने पर भी सोचना चाहिए ? 'आल्हा-उदल' बुंदेलखंड के माने जाते हैं,लेकिन ये जाने माने "लोक-काव्य" तो आज उत्तर प्रदेश,बिहार,मध्यप्रदेश के कई इलाकों में सुना जाता है | जिसे बुंदेलखंड कहते हैं वो सीमाएं तो बदल चुकी |
    फिर क्या वजह होती है कि किसी ने इन्हें किताबों की तरह छापा नहीं ?लिखा हुआ कहीं लोगों को दिखने ना लगे,लोग पढ़ कर सवाल ना करने लगें,ये वजह थी !!
    क्रमशः •••••••• (२) (३) (४) (५) (६)

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  12. द्वितीयाकं- (२)
    -------------
    ⚔-"कार्यकुशलता और अपराध बोध का वामपंथी कुचक्र "-⚔

    "कार्यकुशलता" को किस तरह अपराध बोध बनाकर इस वामपंथ ने सनातन को बर्बाद करने की कोशिश की है उस पर बहुत ही कम लोगों का ध्यान गया है !!

    जब कभी हम अपने आस-पास देखते हैं तो दुनिया इसी कुचक्र में फँसी नज़र आती है कुछ उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ ,

    ��पूँजीवाद की मुख़ालफ़त करने वाले गिरोह को पहचानना मुश्किल नहीं है लेकिन यदि मैं कहूँ की यही लोग हैं जिन्होंने पूँजीवाद को बल दिया तो आप यक़ीन नहीं कर पाएँगे क्यूँ की बहुधा यह लोग समाजवाद और साम्यवाद का डंका बजाते आए हैं

    ��"जब भी हम कोई विचारधारा या संस्कृति इम्पोर्ट करते हैं और अपने समाज में ज़बरदस्ती घुसाकर स्थापित करते हैं तो हम अपनी संस्कृति को चबा रहे होते हैं !!"

    (१)लोहार गाँव में किसान की ज़रूरत का सारा सामान फावड़ा कुदाल खुरपा हँसुआ पहसुल चाक़ू छुरी इत्यादि बनाता था !! योद्धाओं के लिए तलवार से लेकर छुरी तक सब कुछ बनाता था कुल्हाड़ी गड़ासी से फ़रसा तक भी लेकिन क्या हुआ लोहार को 'हीनभावना का अहसास कराया गया' उसको यह लिख-लिख कर बोल-बोल कर समझाया गया की यह काम निहायत घटिया है तुम इसको क्यूँ करोगे !

    ��परिणाम क्या हुआ आज आप निहत्थे हैं और अगर चार लोग आपके घर पे हमला कर दें तो एक 'ढंग का चाक़ू' भी नहीं है की आप उनका सामना कर सकें चलो मान लिया फावड़ा कूदाल बाज़ार से ले आओगे तलवार कौन देगा आपको बाक़ी लोहार की दरिद्रता का क्या ??? जो काम वह ख़ाली समय में करके धन अर्जन करता था खेती बारी का काम-काज निपटा कर वही अब वो ५००० रुपए प्रतिमाह की मज़ूरी करता है !!

    (२)बढ़ई खाट से लेकर पलंग तक तकरपोस(तख़्ता)से लेकर कुर्सी मेज़ तक माने लकड़ी का सारा समान बैलगाड़ी हल इत्यादि बनाता था और वो भी ख़ाली समय में अच्छी जीविका चल रही थी फिर क्या हुआ उसको भी अपनी 'कार्यकुशलता का अपराधबोध कराया गया' और उसने यह सब छोड़ दिया !!

    ��परिणाम अब अमेजोन वाले खाट बेच रहे हैं बड़े-बड़े शोरूम में बेड कुर्सी इत्यादि बिकता है आपका बढ़ई अब मज़ूरी करता है और आप बाज़ार पर आश्रित हैं जो काम वह चंद सिक्के में करता था और आप भी ख़ुश उसको भी अच्छी आमदनी थी अब वह उससे कम पैसे में दिन रात किसी पूँजीपति की नौकरी करता है और आप उस पूँजीपति को और अमीर बना रहे हैं !!

    (३)धोबी भी अब अपना काम छोड़ चुका है उसकी जगह बड़े बड़े ड्राई क्लीनिंग और क्लीनिंग हाउस वॉशिंग मशीन इत्यादि चलने लगे हैं धोबी भुखमरी की कगार पर किसी की मज़ूरी करता है लेकिन उसको अपराध बोध नहीं है यह 'मानसिक आतंकवाद' है जो उसकी ज़ेहन में भरा गया है

    (४)गडेरिया अब भेड़ नहीं पालता है वह साउदी में जाकर ऊँट चराता है मलेक्षो के यहाँ नौकर है भेड़ के बाल के कम्बल जो अत्यंत गरम होते थे उनकी जगह चाइना के ब्लैंकट ने ले ली है पूजा के कम्बल(बैठने का भेड़ बाल का आसन)की चटाई की जगह अब प्लास्टिक की मैट बिकती है और उसको योगा दिवस में हज़ार करोड़ ख़र्च करके इम्पोर्ट किया जाता है

    "पहले महज़ कुछ रुपए और रात के खाने के ऊपर वह रात भर आपके खेत में भेड़ को बैठाता था आपकी मिट्टी उर्वरक होती थी जैविक खाद मिलती थी लेकिन अब आप यूरिया जैसा ज़हर इस्तेमाल करते हैं क्यूँ की -"गडेरिया अब अपने काम को अपराध बोध समझता है कार्यकुशलता नहीं !!"

    (५)ढरकार या डोम बसफ़ोर अब बाँस की दौरी टोकरी छिटा खाँचा इत्यादि नहीं बनाता है क्यूँ की उसको ST में रखा गया है इसलिए अब आपको प्लास्टिक की टोकरी और बर्तन रेप्लेस्मेंट में मिल गया है जिसको कोई पूँजीपति बनाता है और आप आराम से ख़रीद लेते हैं बाक़ी इसका क्या यह मर जाए आपका थोड़ी कुछ जा रहा है वह भी अब अपराध बोध से मुक्त है

    ��बाक़ी जातियों की मूल्यता अगले भाग में लिखूँगा यह सब वामपंथियों और दलित पिछड़ा चिंतकों का चिंतन है जिससे वह ख़ुद के लोगों को बेरोज़गार करके उनकी कार्यकुशलता को अपराधबोध में तब्दील करते हैं और मरने के लिए छोड़ देते हैं इसको आप इलीट चिंतन भी कह सकते हैं!!
    ✍ क्रमशः------------ (३) (४) (५)

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  13. कामरेड और चिंतकों मुझे बस इतना बताओ की समान सारा अभी भी बन रहा है न तुमने जिसको बेरोज़गार किया उसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा और जो लोग अब यह सब बना रहे हैं उनको तुम स्केजूल्ड कास्ट और स्केजूल्ड ट्राइब्ड में कब डाल रहे हो

    👉तुम मूर्खों की बुद्धि कब जागेगी कितना देश को खाओगे सब कुछ तो चबा गए अब क्या बचा है क्या लोहे के कारख़ाने वाला OBC है क्या प्लास्टिक के बर्तन वाला SC ST है क्या लकड़ी के कारख़ाना चलाने वाला पिछड़ा है
    ✍-"यह इतना मजबूत अर्थशास्त्र था इसको तोड़ने का कितना मिला तुमको अगर तुमको यह अर्थ शास्त्र और अर्थ नीति जातीय हीनता लगता है तो कोई उपाय बताओ जिससे इनका सृजन हो सके !"

    सनातन धर्मावलंबी भाइयों से निवेदन है अपने आस पास के लोगों को जीवित कीजिए यही रास्ता है ख़ुद को और समाज को बचाने का बाक़ी डिटेल में लिखता रहूँगा एक एक जाती के ऊपर इन कामरेड और कामरेडनियो का वैचारिक वध ही तुम्हें और सनातन समाज को बचा सकता है!!
    जय भवानी

    ✍ क्रमशः------------ (३) (४) (५)

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  14. तृतीयाकं-(३)
    -------------------
    ब्राह्मणों के हाथों में पुस्तक थी इसलिए जो चाहा लिख दिया।(नकारात्मक रूप में इसे ब्राह्मण की हिंसा मान लिया जाये)

    जिसकी कुछ करने की इच्छा न हो वह पका पकाया भोजन भी नही खा सकता। बाकी परिश्रम के रूप में हड़ताल कर-कर के बहाने बना-बना कर अपना समय निकालता रहेगा।(इसे शूद्र की हिंसा मान लिया जाये)

    🏹-- अब आते हैं विषय पर।
    आधी हथेली की मोटाई जितना एक ग्रन्थ आता है जिसका नाम है "चर्म शिल्प संग्रह"

    👉चमड़े से बनी वस्तुओं का काटना,बुनना,सिलाई,design वगेरह सब होता है उसमें।
    👉कपड़े की कटाई,सिलाई,design आदि की भी पुस्तक होती थी।
    👉भवन निर्माण संबंधित सामग्री लोहा-लकडी-पत्थर-प्लास्टिक कटिंग-फिटीगं-डिजाईनिंग की भी पुस्तक हैं,आज के आर्किटेक्ट अध्ययन करें तो शर्म आ जायेगी अपने आप,अपने अध्ययन एवं अपने वर्तमान शिक्षा स्तर और बौद्धिक विकास पर ।

    🏹अब यहां यह तो स्पष्ट ही है कि वह सब संस्कृत में ही होगा।
    तो चर्मकार उद्योगपति,कारीगर आदि सब उसका अध्ययन करते ही होंगें,तभी उच्च कोटि की वस्तुओं का उत्पादन होता था जो सम्पूर्ण विश्व में अपना लोहा मनवाती थीं।

    तो उन्होंने संस्कृत कहाँ से पढ़ी...
    जिन चर्मकारों,दर्जियों ने,प्रजापतियों ने यह सब उत्पाद बनाये होंगे?
    शिक्षा का स्तर ऊंचा था भारत में जिसमे भेदभाव नही था।
    इस्लामिक काल के अत्याचारों की बात सब जानते हैं।

    उससे पहले चलते हैं
    ह्वेनसांग,फाह्यान और ईत्सिंग आदि चीनी यात्री सातवीं शताब्दी से पूर्व भारत का भ्रमण करते हैं और उनकी यात्राओं में सामाजिक ढांचे के वर्णन में शूद्र वर्ण के साथ शिक्षा के भेदभाव आदि अन्यान्य विषयों का कोई सन्दर्भ नही पायी जाती।

    "लाॅर्डMcCauley" जैसों की कपोल-कल्पित और "समाज को तोड़ने की बातों से बाहर आइये और सभ्य समाज को अखंड एक,पुर्ण-मज़बूत,समग्र-विकसित करने में सभी वर्णो को एक साथ एकजुट होकर आगे बढ़ने का समय है।
    यदि हमारे इस संपादकीय सामुहिक प्रयास में आप सभी माननीय व सम्माननीय महानुभावों का संपूर्ण-सर्वस्व योगदान रहेगा तभी हमारे राष्ट्र धर्म व कर्म तथा समाज का सर्वांगीण विकास होगा और हमारा राष्ट्र अखंड भारतवर्ष बनकर पुनः विश्व गुरू का दर्जा प्राप्त करेगा एवं हमारा संघठनात्मक लक्ष्य व उद्देश्य पुरा होगा हुकूम!!

    👉 वैश्विक दानवो(वाम पंथीयों) ने यूरोप के लुटेरों के माध्यम से पहले हमारे वैश्य और शूद्र वर्ग को हानि पहुंचाई गई,उन्हें हीन भावना ओं का अपराधबोध कराकर,हम फिर भी नही सचेत हुए।
    👉 फिर हमारे राजाओं को अनुबंधों में बाँध कर उनके राज्यों को लूट लिया गया।
    👉 फिर ब्राह्मणों के गुरुकुल और धर्म शिक्षा पर हानि पहुंचा कर "McCauley" शिक्षा पद्धति स्थापित की गई,थोपी गई हम फिर भी नहीं सचेते।
    पिछले 100 वर्षों में पहले धर्म जागरण के माध्यम से ब्राह्मण वर्ण को दिग्भ्रमित करके मूर्ख बनाया गया।
    👉 फिर हमारी क्षत्रिय परम्परा को नष्ट करके पूर्णतया समाप्त कर दिया गया। सभी रजवाड़े लूट लिए गए,धन संपत्ति हीरे जवाहरात कुछ न छोड़ा गया।सभी महलों को होटल में बदल दिया गया।

    👉वैश्यों को पहले कम्पनी अनुबंधों में बांधा गया,Tax के बोझ से मारा गया और फिर वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन के अनुबंधों ने विदेशी कम्पनियो को सर पर बिठा कर वैश्य वर्ग को सीमित कर दिया गया।

    🏹आज पूरी FMCG इंडस्ट्री पर विदेशी दानवो का कब्जा है।
    विदेशी वैश्यों बड़े बड़े taxes में छूट दी जाती है।स्वदेशी वैश्यों को नही।
    👉आज शुद्र वर्ग को दिग्भ्र्मित कर करके, गरीब से गरीब बना कर उनका धर्मान्तरण करके उन्हें हिन्दू विरोधी बनाया जा रहा है।

    👉"शूद्र वर्ग को silent हिंसक बनाया गया। पढ़ने की तो आज भी इच्छा नही है इनकी,यदि पढ़ने की ही योग्यता और इच्छा होती तो आरक्षण की आवश्यकता नही पड़ती किसी को !!"
    और क्या ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य समाज को गरियाने वाले इस समाज के अनुयायियों में से "किसी में भी इतनी नैतिकता है कि वह योग्य न होने के बावजूद भी पद और नौकरी स्वीकार न करे !!"
    -"किस प्रकार अयोग्य होने पर भी पद नौकरी स्वीकार करके देश के विकास और भविष्य के साथ खिलवाड़ कर सकता है कोई ??"-

    'घोड़े से गधे और गधे से घोड़े का काम लेने वाला समाज कभी विकास नही कर पाता। दोनों का उपयोग उनकी अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार होना चाहिए।'
    समन्वय हो,सामंजस्य हो,
    सम्मान मिले तो गिलहरी भी पुल निर्माण में सहायक बनेंगी और पुल बनेगा !!जय मां भवानी,जय श्री एकलिंगनाथाय नमः
    ✍ संकलन एवं लेखन टीम
    □ कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया- शिशोदा "मेवाड़" राजपुताना-राजस्थान(अखंड भारतवर्ष)
    □ठाकुर राजेन्द्रसिंह/राजोभा राणावत(शिशोदिया)
    □कैप्टन कुंभ सिंह मांगलिया(शिशोदिया)

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  15. उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के हसनगंज तहसील में रहने वाले गमेल जाति के लोग का क्या इतिहास है और वह किस वंश से आते हैं

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    1. ये क्या होता , ये तो पहली बार सुने है।

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  16. सिसोदिया/शिशोदिया शब्द के सम्बंध मे

    राणा हम्मीर सिंह जी शिशोदिया- ( शिशोदिया राजवश के उद्धारक/पुरोधा/पितृ पुरुष)
    ---------------------------------------------------
    १३वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत ने गुहिलों की सिसोदिया राजवंश की शाखा को मेवाड़ से सत्तारूढ़ कर दिया था !
    महाराणा हम्मीर से पहले गुहिलों की रावल शाखा का शासन था जिनके *'प्रथम शासक बप्पा रावल थे और अंतिम रावल रतन सिंह थे |'*

    ✍गुहिलवंश की प्रथम शाखा "रावल पदवीं और 'सिसा' पीने से 'सिसोदिया' कहलाये !!
    गुहिलवंश की द्वितीय शाखा -"रणकौशल होने से 'राणा' पदवीं और राज्य/राष्ट्र धर्म व कर्म तथा समाज की रक्षार्थ बारम्बार शिश कटवाने/शिश का दान देने/शिश का त्याग करने पर *'शिशोदिया'-* कहलाये !!

    मेवाड़ राज्य के इस शासक को 'विषम घाटी पंचानन'(सकंट काल मे सिंह के समान) के नाम से जाना जाता है,यह संज्ञा राणा कुम्भा ने कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति में दी |
    राणा हम्मीर सिंह -'मेवाड़ के राणा'शासनावधि 1326–1364 (38 वर्ष) उत्तरवर्ती क्षेत्र सिंह 'जन्म 30 जनवरी 1303 निधन 1364' (62 साल)जीवन संगीनी सोंगरी राजवंश शिशोदिया पिता अरी सिंह माता उर्मिला,दादा महाराजा लक्ष्मण सिंह जी शिशोदिया (बावजी)


    राजा अजय सिंह (१३०३ - १३२६) अपने भतीजे हम्मीर को अस्त्र शस्त्र और सैन्य शिक्षा दी विशेष रूप से छापामार युद्ध प्रणाली एवं कल्पना शीलता के आधार पर दुश्मन की संभावित चालों तथा युद्ध में भौगोलिक जटिलताओं का स्वहित में इस्तेमाल करना सिखाया था इन्होने ही हम्मीर को-'राणा'- उपाधि दिया था !! राजा अजय सिंह शिशोदिया ही छापामार युद्ध प्रणाली के एकमात्र जनक थे जो बाद मे अपने एक अन्य भतीजे वीरम देव सिंह/वीर विक्रम सिंह के साथ तरावली गढ़ वर्तमान जसवन्त गढ़ होते हुए महाराष्ट्र चले गये थे जहाँ वीरम देव सिंह शिशोदिया एवं बाद मे महाराणा हम्मीर सिंह जी शिशोदिया के कनिष्ठ पुत्र महाराज कुमार सज्जन सिंह शिशोदिया (१३६६ से १३९२) भी महाराष्ट्र चले गये थे जहाँ दोनों ही काका-भतीजे(वीरम देव सिंह-सज्जन सिंह) ने अपना शासन स्थापित किया,जिनके वंशज के रुप मे परम प्रतापी -"छत्रपति शिवाजी महाराज"- का जन्म होता है !!

    शिशोदा गाँव के ठाकुर राणा हम्मीर शिशोदिया वंश के प्रथम शासक थे,तथा इन्हे मेवाड का उधारक कहा जाता है !!

    सन्दर्भ- गुहिलवंश रावल/पदवीं शाखा सिसोदिया, राणा/पदवीं शाखा शिशोदिया
    ✍द्वारा- □ कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया -शिशोदा "मेवाड़"
    राजपुताना/राजस्थान (अखंड भारतवर्ष)
    सम्पर्क- 9680377030 / 9680759268
    लेखक/समीक्षक/विश्लेषक/संघठनात्मक विशेषज्ञ
    सह सम्पादक- राजपुत्र हिन्दी मासिक पत्रिका

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  17. सिसोदिया/शिशोदिया के संबंध में

    राणा हम्मीर सिंह जी शिशोदिया- ( शिशोदिया राजवश के उद्धारक/पुरोधा/पितृ पुरुष)
    ---------------------------------------------------
    १३वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत ने गुहिलों की सिसोदिया राजवंश की शाखा को मेवाड़ से सत्तारूढ़ कर दिया था !
    महाराणा हम्मीर से पहले गुहिलों की रावल शाखा का शासन था जिनके *'प्रथम शासक बप्पा रावल थे और अंतिम रावल रतन सिंह थे |'*

    ✍गुहिलवंश की प्रथम शाखा "रावल पदवीं और 'सिसा' पीने से 'सिसोदिया' कहलाये !!
    गुहिलवंश की द्वितीय शाखा -"रणकौशल होने से 'राणा' पदवीं और राज्य/राष्ट्र धर्म व कर्म तथा समाज की रक्षार्थ बारम्बार शिश कटवाने/शिश का दान देने/शिश का त्याग करने पर *'शिशोदिया'-* कहलाये !!

    मेवाड़ राज्य के इस शासक को 'विषम घाटी पंचानन'(सकंट काल मे सिंह के समान) के नाम से जाना जाता है,यह संज्ञा राणा कुम्भा ने कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति में दी |
    राणा हम्मीर सिंह -'मेवाड़ के राणा'शासनावधि 1326–1364 (38 वर्ष) उत्तरवर्ती क्षेत्र सिंह 'जन्म 30 जनवरी 1303 निधन 1364' (62 साल)जीवन संगीनी सोंगरी राजवंश शिशोदिया पिता अरी सिंह माता उर्मिला,दादा महाराजा लक्ष्मण सिंह जी शिशोदिया (बावजी)


    राजा अजय सिंह (१३०३ - १३२६) अपने भतीजे हम्मीर को अस्त्र शस्त्र और सैन्य शिक्षा दी विशेष रूप से छापामार युद्ध प्रणाली एवं कल्पना शीलता के आधार पर दुश्मन की संभावित चालों तथा युद्ध में भौगोलिक जटिलताओं का स्वहित में इस्तेमाल करना सिखाया था इन्होने ही हम्मीर को-'राणा'- उपाधि दिया था !! राजा अजय सिंह शिशोदिया ही छापामार युद्ध प्रणाली के एकमात्र जनक थे जो बाद मे अपने एक अन्य भतीजे वीरम देव सिंह/वीर विक्रम सिंह के साथ तरावली गढ़ वर्तमान जसवन्त गढ़ होते हुए महाराष्ट्र चले गये थे जहाँ वीरम देव सिंह शिशोदिया एवं बाद मे महाराणा हम्मीर सिंह जी शिशोदिया के कनिष्ठ पुत्र महाराज कुमार सज्जन सिंह शिशोदिया (१३६६ से १३९२) भी महाराष्ट्र चले गये थे जहाँ दोनों ही काका-भतीजे(वीरम देव सिंह-सज्जन सिंह) ने अपना शासन स्थापित किया,जिनके वंशज के रुप मे परम प्रतापी -"छत्रपति शिवाजी महाराज"- का जन्म होता है !!

    शिशोदा गाँव के ठाकुर राणा हम्मीर शिशोदिया वंश के प्रथम शासक थे,तथा इन्हे मेवाड का उधारक कहा जाता है !!

    सन्दर्भ- गुहिलवंश रावल/पदवीं शाखा सिसोदिया, राणा/पदवीं शाखा शिशोदिया
    ✍द्वारा- □ कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया -शिशोदा "मेवाड़"
    राजपुताना/राजस्थान (अखंड भारतवर्ष)
    सम्पर्क- 9680377030 / 9680759268
    लेखक/समीक्षक/विश्लेषक/संघठनात्मक विशेषज्ञ
    सह सम्पादक- राजपूत्र हिन्दी मासिक पत्रिका

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  18. *-"जय सनातन क्षत्रियत्व धर्म"- ......*
    ---------------------------------------------------
    (1) राजपूतो में पहले सिर के बाल बड़े रखे जाते थे जो गर्दन के नीचे तक होते थे युद्ध में जाते समय बालो के बीच में गर्दन वाली जगह पर लोहे की जाली डाली जाती थी और वहां विशेष प्रकार का चिकना प्रदार्थ लगाया जाता था (कुछ लोग आकड़े का दूध भी लगाते थे ) इससे तलवार से गर्दन पर होने वाले वार से बचा जा सके !!
    (2) युद्ध में धोखे का संदेह होने पर घुसवार अपने घोड़ो से उतर कर जमीनी युद्ध करते थे !!
    (3) मध्य काल में देवी और देव पूजा होती थी युद्ध में जाने से पूर्व राजपूत अपनी कुल-देवियो की पूजा अर्चना करते थे जो की शक्ति का प्रतिक है मेवाड़ के शिशोदिया एकलिंग जी की पूजा करते हैं !!
    (4) हरावल - राजपूतों की सेना में -'अग्रिम पंक्ति/युद्ध का नेतृत्व करने वाली टुकड़ी'- को हरावल सेना कहा जाता था जो सबसे आगे रहती थी कई बार इस सम्माननीय स्थान को पाने के लिए राजपूत आपस में ही लड़ बैठते थे इस संदर्भ में उन्टाला दुर्ग वाला चुण्डावत शक्तावत किस्सा प्रसिद्ध है !!
    (5) किसी बड़े युद्ध में जाते समय या नये प्रदेश की इच्छा में जाते समय राजपूत अपने राज्य का ढोल , झंडा ,राज चिन्ह और कुलदेवी की मूर्ति साथ ले जाते थे !!
    (6) युद्ध में जाने से पूर्व "चारण/गढ़वी" कवि वीररस सुना कर राजपूतों में जोश पैदा करते और अपना कर्तव्य याद दिलाते कुछ युद्ध जो लम्बे चलते वहां चारण भी साथ जाते थे चारण/गढ़वी और भाट एक प्रकार के दूत होते थे जो राजपूत राजा के दरबार में बिना किसी रोक-टोक आ जा सकते थे चाहे वो दुश्मन राजपूत राजा ही क्यों ना हो !!
    (7) राजपूताने में सभी बड़े किलों के बनने से पूर्व एक स्वेछिक नर बलि होती थी कुम्भलगढ़ के किले पर एक सिद्ध साधु ने खुद की स्वेछिक बलि दी थी !!
    (8) राजपूताने के ज्यादातर किलों में गुप्त रास्ते बने हुए हैं ! आजादी के बाद और सन 1971 के बाद सभी गुप्त रस्ते बंद कर दिए गए हैं !!
    (9) शाका - महिलाओं को अपनी आंखों के आगे जौहर की ज्वाला में कूदते देख पुरूष जौहर कि राख का तिलक करके सफ़ेद कुर्ते जामा/उत्तरीय में और केसरिया फेंटा ,केसरिया साफा या खाकी साफा और नारियल कमर कसुम्बा पान कर,केशरिया वस्त्र धारण कर दुश्मन सेना पर आत्मघाती हमला कर इस निश्चय के साथ रणक्षेत्र में उतर पड़ते थे कि या तो विजयी होकर लोटेंगे अन्यथा विजय की कामना हृदय में लिए अन्तिम दम तक शौर्यपूर्ण युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से ज्यादा नाश करते हुए रणभूमि में चिरनिंद्रा में शयन करेंगे | पुरुषों का यह आत्मघाती कदम शाका के नाम से विख्यात हुआ।
    (10) जौहर : युद्ध के बाद अनिष्ट परिणाम और होने वाले अत्याचारों व व्यभिचारों से बचने और अपनी पवित्रता कायम रखने हेतु अपने सतीत्व,स्वाभिमान की रक्षा के लिए राजपूतानिया अपने शादी के जोड़े वाले वस्त्र को पहन कर अपने पति के पाँव छूकर अंतिम विदा लेती है महिलाएं अपने कुल देवी-देवताओं की पूजा कर,तुलसी के साथ गंगाजल का पानकर जलती चिताओं में प्रवेश कर अपने सूरमाओं को निर्भय करती थी कि "नारी समाज की पवित्रता अब अग्नि के ताप से तपित होकर कुंदन बन गई है और राजपूतनिया जिंदा अपने सतित्व कि खातिर आग में कूद कर आपने सतीत्व/स्वाभिमान/मर्यादा/आन!बान कि रक्षा करती थी | पुरूष इससे चिंता मुक्त हो जाते थे कि युद्ध परिणाम का अनिष्ट अब उनके स्वजनों को ग्रसित नही कर सकेगा | महिलाओं का यह आत्मघाती कृत्य 'जौहर' के नाम से विख्यात हुआ |सबसे ज्यादा जौहर और शाके चित्तोड़ और जैसलमेर के दुर्ग में हुए
    (11) गर्भवती महिला को जौहर नहीं करवाया जाता था अत: उनको किले पर मौजूद अन्य बच्चों के साथ सुरंगों के रास्ते किसी गुप्त स्थान या फिर किसी दूसरे राज्य में भेज दिया जाता था ।राजपुताने में -'सबसे ज्यादा जौहर मेवाड़ के इतिहास में दर्ज हैं'- और इतिहास में लगभग सभी जौहर इस्लामिक आक्रमणों के दौरान ही हुए हैं जिसमें अकबर और ओरंगजेब के दौरान सबसे ज्यादा हुए हैं ।
    (12) अंतिम जौहर - पुरे विश्व के इतिहास में अंतिम जौहर अठारवी सदी में भरतपुर के जाट सूरजमल ने मुगल सेनापति के साथ मिलकर कोल और मेवात में घासेड़ा के राघव राजपूत राजा बहादुर सिंह पर हमला किया था। महाराजा बहादुर सिंह ने अपने से बहुत बड़ी सेना से जबर्दस्त मुकाबला करते हुए मुगल सेनापति को मार गिराया। पर दुश्मन की संख्या अधिक होने पर किले में मौजूद सभी राजपूतानियो ने बारुद के ढ़ेर में आग लगाकर जौहर कर प्राण त्याग दिए उसके बाद राजा और उसके परिवारजनों ने शाका किया। इस घटना का जिक्र आप "गुरुग्राम जिले के gazetteer" में पढ़ सकते है

    क्रमशः ____________ शेष अगले भाग में प्रेषित

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  19. -"जय सनातन क्षत्रियत्व धर्म"-
    ----------------------
    गताकं से आगे ____________ शेष भाग


    (13) अगर आप के दाता हुकूम/दादोसा बिराज रहे हैं तो कोई भी शादी ,फंक्शन, मंदिर इत्यादि में आप के कभी भी लम्बा तिलक और चावल नहीं लगेगा, सिर्फ एक छोटी टीकी लगेगी !!
    (14) आज भी कहीं घरों में तलवार को मयान से निकालने नहीं देते, क्योंकि तलवार को परंपरा है कि अगर वो मयान से बाहर आई तो या तो उसके खून लगेगा, या लोहे पर बजेगी, इसलिए आज भी कभी अगर तलवार मयान से निकलते भी हैं तो उसको लोहे पर बजा कर ही फिर से मयान में डालते हैं !!
    (15)मटिया, गहरा हरा, नीला, सफेद ये शोक के साफे हैं !!
    (16)पैर में कड़ा-लंगर, हाथी पर तोरण, नंगारा निशान, ठिकाने का मोनो ये सब जागीरी का हिस्सा थे,इनका इस्तेमाल हर कोई जागीरदार नहीं कर सकता था, स्टेट की तरफ से जारी/आदेशित होते थे..!!
    (17) पहले के समय राजपूत समाज में अमल का उपयोग इस लिए ज्यादा होता था क्योंकि अमल खाने से खून मोटा हो जाता था, जिससे लड़ाई के समय मेंहदी घाव लगने पर खून का रिसाव नहीं के बराबर होता था, और मल-मूत्र रुक जाता था जयमल मेड़तिया ने अकबर से लड़ाई के पूर्व सभी राजपूत सिरदारो को अमल पान करवाया था !!
    (18) पहले कोई भी राजपूत बिना पगड़ी के घोड़े पर नही बैठते थे !!
    (19) सौराष्ट्र (काठियावाड़) और कच्छ में आज भी गिरासदार राजपूत घराने में अगर बेटे की शादी हो तो बारात नहीं जाती, उसकी जगह लड़के वालों की तरफ से घर के वडील (फुवासा, बनेविसा, मामासा) एक तलवार के साथ 3 या 5 की संख्या में लड़की के घर जाते हे जिसे "वेळ” या ‘खांडू" कहते है. लड़की वाले उस तलवार के साथ विधि करके बेटी को विदा करते है. मंगल फेरे लड़के के घर लिए जाते है.
    (20) राजपूत परम्परा के अनुसार पिता का पहना हुआ साफा , आप नहीं पहन सकते हैं !!
    (21) पहले सारे बड़े ताजमी ठिकानो में ठिकानेदारों को विवाह से पूर्व स्टेट महाराजा से अनुमति लेनी पढ़ती थी !!

    शेष अगले भाग में--------

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  20. -"जय सनातन क्षत्रियत्व धर्म"-
    ---------------------
    अंतिम भाग ______
    (22) हर राज दरबार के, ठिकाने के, यहाँ गोत्र उप-गोत्र के इष्ट देवता होते थे,जो की ज्यादतर कृष्ण या विष्णु के अनेक रूप में से होते थे, और उनके नाम से ही गाँव वाले या नाते-रिश्तेदार दूसरों का सम्बोधन करते थे, जैसे की जय रघुनाथ जी की सा , जय चारभुजाजी की सा !!
    (23) अमल गोलना, चिलम, हुक्का (दारू की मनवार गलत) मकसद होता था,भाई,बंधू, भाईपे,रिश्तेदारों को एक जाजम पर लाना ! मनवार का अनादर नहीं करना चाहिए, अगर आप नहीं भी पीते है तो भी मनवार के हाथ लगाके या हाथ में लेकर सर पर लगाके वापस दे देवें, पीना जरुरी नहीं है ,पर ना -नुकुर करके उसका अनादर न करें !!
    (24) जब सिर पर साफा बंधा होता है तो तिलक करते समय सर के पीछे हाथ नही रखा जाता है !!
    (25) विंद/वर की बन्दोली में घोडा या हाथी हो सकता है पर तोरण पर नहीं, क्योंकि घोडा भी नर है, और वो भी आप के साथ तोरण लगा रहा होता है, इसीलिये हमेशा तोरण पर घोड़ी या हथनी होती है !!
    (26) एक ठिकाने का एक ही ठाकुर,राव,रावत हो सकता था, जो गद्दी पर बैठा है, बाकि के भाई,काका ये टाइटल तभी लगा सकते थे जब की उनको ठिकाने की तरफ से अलग से जागीरी मिली हो,और वो उस के जागीरदार हो, अगर वो उसी ठिकाने /राज में रह रहे हो, तो उनके लिए "महाराज" का टाइटल होता था!
    (27) आज भी त्योहारों पर ढोल बजाने के लिये नट,नंगारसी या ढोली आते है उन्हें बैठने के लिए उचित आसान (जाजम) दिए जाते हैं मान्यता अनुसार उनके ढोल में देवी का वास होता है और ऐसा आदर के लिए किया जाता है !
    (28) राजपूत क्षत्राणीयों में घरेलू शुभ मांगलिक एवं धार्मिक कार्यक्रमों में राजपूत महिलायें नाच-गान के बाद ढोली जी और ढोलन की तरफ जुक कर प्रणाम करती हैं !
    (29) भेंट/उपहार के भी अलग-अलग नियम थे, अगर आप छोटे ठिकानेदार हो तो महाराजा सा या महाराणा सा आपके हाथ से उठा लेते थे, पर अगर आप उमराव या सिरायती ठिकानेदार हो तो महाराजा सा या महाराणा सा आप का हाथ अपने हाथ पर उल्टा करके, अपना हाथ नीचे रख कर उपहार स्वीकार करते थे !!
    (30) कोर्ट में अगर आप छोटे ठिकानेदार हो तो महाराजा सा या महाराणा सा आप के आने पर खड़े नहीं होते थे, पर अगर आप उमराव या सिरायती ठिकानेदार हो तो महाराजा सा या महाराणा सा आपके आने और आपके जाने पर दोनों वक्त उनको खड़ा होना पड़ता है' !!
    (31) सिर्फ राठौड़ो के पास "कमध्वज" का टाइटल है, इसका मतलब है, सर कटने के बाद भी लड़ने वाला !
    (32) राजपूतों में ठाकुर पदवी के लगाने के बारे में में कुछ बातें :यदि आपके दादोसा हुकम बिराज रहे हैं तो वो ही ठाकुर पदवी का प्रयोग कर सकते है, आपके दाता हुकम कुंवर का और आप भंवर का प्रयोग करेगें और आपके बन्ना (चौथी पीढ़ी) के लिए टंवर का प्रयोग होगा.
    (33) एक ठिकाने में तीन से चार पाकशाला (रसोई) हो सकती थी, ठाकुरसाब, ठुकरानी के लिए विशेष पाकशाला होती थी, एक पाकशाला मरदाना में होती थी, जिस में मास आदि बनते थे, जनाना में सात्विक भोजन की पाकशाला होती थी, विद्वाओ के लिए अलग भोजन बनता था, ठिकाने के कर्मचारी नौकरों के लिए अलग से पाकशाला होती थी, एक पाकशाला मेहमानों के लिए होती थी,
    (34) राजपूतों में किसी की मृत्यु में बाद "शोक भंगाई" जिसमे राजपूत वडील शोकाकुल परिजनों को स्वादिष्ट भोजन, पक्की रसोई खिलाकर उनका शोक तुड़वाते है ,मेवाड़ रियासत में महाराणा अपने शोकाकुल सामंत परिजनों के यहां जाकर तलवार बंदी का रिवाज़ पुर्ण करवाते हैं !! आजकल कहीं-कहीं दारू या अफीम की मनवार करके भी शोक तुड़वाते है जो पुर्णतया (नशे की प्रवृत्ति) गलत है।
    🙏🙏
    □ कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया -शिशोदा "मेवाड़" राजपुताना/राजस्थान
    जोधसिहं शिशोदिया टीम साथी
    साभार
    जय माताजी की सा🙏 हुकम
    🚩जय मां भवानी
    🚩जय महाराणा
    🚩जय राजपूताना🙏🙏

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  21. Gaharwar vansh ke kshatriya Shri Ram chandra bhagwan ke bade putra luv ke vanshaj hain aur wo Suryavanshi Rajput hain naki Chandravanshi.... Rathour, Bundela aur kathi kshatriya vansh unki shakhayein hain.... Kripya inhein sahi karne ka kastt karein!!! 🙏🏻

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  22. राजपूत बंसावली लिखने वाले कापड़ी हरियाणा में कहां हैं।,,,,,,

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  23. sir rayjade kshtriyo ka poora vivaran ho to Natale

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  24. गोरखपुर, देवरिया,कुशीनगर, बस्ती,बलिया,मऊ अन्य पूर्वांचल में बसने वाली सैथवार क्षत्रिय का भी इतिहास बताने की कस्ट करे।

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  25. मै बढगूजर,सूर्यबंशी राजपूत हू ये राजपूत मुरादाबाद अलीगढ बदायू हिसार बुलंदशहर मे पाये जाते है 50,60सालो से राघव सरनेम प्रयोग करने लगे है बहुत ही भ्रम है कि इसमे बढगूजर का गोत्र बशिषठ है लेकिन आज तक हमे भारद्बाज ही किसी धार्मिक अनुषठान संकलप के समय बताया गया है इनके राजपूत का यह बंश संकलन से मै संतुषट हुआ बहुत सुखद अहसास हुआ कोई पुसतक आदि यदि बडगूजर बंशाबली पर संकलित या बंशाबली बडगूजर राजपूतो की कहां से प्रापत की जासकती है कयोकि आज से 20साल पहले तक बंशाबली बताने बाले बैशाख माह मे बुलंदशहर से आते थे अब नही आते कोई स्रोत हो तो लिखे साभार मुनेश सिंह राघव ,बाहपुर पटटी प्रहलाद चंदौसी समभल यूपी 9458701728email.muneshbabu1969@gmail.com

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    1. भाई बडगूजर रघुवंशी हैं भगवान श्री राम के वंशज| राघव य रघुवंशी बात ऐक ही है हमरा गोत्र भी भारद्वाज है हम मध्य प्रदेश के रघुवंशी हैं

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  26. sir, mai bisen thakur rajput hoon ....bisen U.P ke rajput hote hai lekin hum suryavanshi hai naaki rishivanshi kyuki hum shri ram ji ke bhai laxman ke putra chandraketu ke vanshaj he .......

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  27. माननीय और सम्माननीय क्षत्रिय महानुभाव महोदय हुकूम
    *'सादर खम्मा घणी सा हुकूम'*
    *जय मां भवानी*
    *जय श्री एकलिंगनाथाय नमः*
    🚩🏹🕉🌹🙏🌹🕉🏹🚩
    ---------------------------------------------------
    सम्पूर्ण भारतवर्ष में *दृढ़ प्रतिज्ञ क्षत्रिय* साथी महानुभाव संघठनात्मक *'स्वयं सेवक'* बनकर *क्षत्रियत्व गुण-कर्म-धर्म* व *शिक्षा-संस्कृति-संस्कारों* द्वारा *राष्ट्र धर्म* व *कर्म* तथा *समाज* की *रक्षार्थ उन्नति* व *विकास* हेतु
    *-"अखण्ड भारतवर्ष महासंघ"-* महा'अभियान
    से जुड़ीयेगा हुकूम !!
    ✍आपका स्नेहिल क्षत्रिय *'स्वयं सेवक'* साथी
    □ कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया शिशोदा "मेवाड़"
    राजपुताना-राजस्थान (अखंड भारतवर्ष)
    लेखक/समीक्षक/विश्लेषक 'संघठनात्मक विशेषज्ञ'
    सह सम्पादक- *'आस्था राजपुत्र'* हिन्दी मासिक पत्रिका
    *सम्पर्क एवं वाट्सप-*
    *9680377030 / 9680759268*

    राष्ट्रीय महासचिव / संस्थापक स्वयं सेवक
    *🚩अखिल भारतीय क्षत्रिय सेना🚩*
    ---------------------------------------------------
    अखण्ड भारत वर्ष महासंघ महा'अभियान
    "सनातन क्षत्रियत्व धर्म हिन्दुत्व रक्षक एवं प्रचारक महासंघ"

    राष्ट्रीय स्वयं सेवी सहायतार्थ कार्यरत क्षत्रिय एवं सामाजिक संघठन (नाॅन पॉलिटिकल)

    पंजीकृत राष्ट्रीय क्षत्रिय-क्षत्रियत्व जागरण/राष्ट्र-जागरण/धर्म-जागरण एवं एकीकरण महासंघ
    पंजीकरण क्रमांक- 739/63929/17

    प्रधान कार्यालय- 'मातोश्री भवन' शिशोदा 'मेवाड़' राजपुताना/राजस्थान (अखण्ड भारतवर्ष)

    राष्ट्रीय कार्यालय- M5सेक्टर-12 प्रताप विहार विजय नगर गाजियाबाद उ•प्र•(अखण्ड भारतवर्ष)

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  28. ��वंशावली-लेखन प्रामाणिकता एवं समस्याएँ ����
    गोत्र-शाखा-प्रवर-ईष्ट-भैरव-जीवनमृत्यु आदि विशेषता की व्याख्या है। यह परम्परा भारत में हजारों साल से चल रही है। वंशावलीभारत में हजारों साल से चल रही है। वंशावलीलेखन पौराणिक काल से सतत सनातन-धर्म का दर्पण है। वंशावली परम प्रतापी राजा पृथु से चली आ रही प्रथा है। वंशावली हस्तलिखित पांडुलिपि है, जो अपने आप में विशिष्ट ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में क्षत्रिय-वंश एवं क्षत्रिय-कुलों से निकली हुई जातियों की उत्पत्ति से जन्म व मृत्यु तक का विवरण लिखा जाता है। वंशावली-लेखन का कार्य जातियों की उत्पत्ति के अनुसार अलग-अलग जातियाँ करती हैं। इन जातियों में प्रथम बड़वा जाति है। बड़वा समुदाय द्वारा क्षत्रिय-कुलों की वंशावली का लेखन किया जाता है। वैसे भारत में वंशावली- लेखन करनेवाले अनेक समुदाय हैं, जिनमें मुख्य रूप से राव-भाट, ब्रह्मभट्ट, जागा, पण्डे, राणीमंगा, याज्ञिक, बारोट आदि नाम शामिल हैं। ढाढ़ी लोगों की पीढ़ी रखने में और इन लोगों द्वारा पीढ़ी रखने में यही अन्तर है कि वे लोग ‘मुखबन्ध' (कण्ठ) पर रखते हैं। उनके पास लिखित पीढ़ी नहीं है। इससे क्रम में अन्तर आ जाता है। अच्छा जानकार ढाढ़ी 20 पीढ़ी तक सुना सकता है, अन्यथा 5-10 पीढ़ी तक सुना सकते हैं।
    बड़वा (राव) समाज ऐसा समाज है, जिसमें ज्ञान का अथाह भण्डार है। वंशावली-लेखन का महत्त्व किसी लोकमान्यता या पौराणिक ग्रन्थों की तरह है। प्रत्येक जाति के लोग अपने कुल की वंशावली नियमित समय पर सुनते हैं और अपने कुल को याद रखते हैं। कभी कोई विवादास्पद बात हो जाती है तो उसे सुलझाने में वंशावली की मदद ली जाती है।शिलालेखों में भी
    वंशावली-लेखन की परम्परा रही है। भारत की देशी रियासतों के अधिकांश संग्रहालयों में आज भी हजारों साल पुरानी वंशावलियाँ देखी जा सकती है ।
    वंशावली-लेखन' भारतीय इतिहास की आदिमविद्या है। आज मिथक भी एक तरह के इतिहास हैं, यदि उन्हें विशेष दृष्टि से समझने की कोशिश की जाये। लिखित इतिहास से पहले मौखिक और स्मरण किया हुआ (श्रुति) इतिहास था। सारी सीमाओं के बावजूद इस इतिहास का महत्त्व है। स्रोत के रूप में युग-भूखण्ड की मानसिकता के प्रतिदर्श के रूप में इस सम्बन्ध में चारण-परम्परा का उल्लेख आवश्यक है, जिसकी रचनाओं में प्रत्यक्ष चाटुकारिता के अतिरिक्त इतिहास की महत्त्वपूर्ण कच्ची सामग्री होती थी। आरम्भिक इतिहासलेखन का कार्य अन्वेषणधर्मी यायावरों, दरबारी विद्वानों, ईसाई-मिशनरियों एवं प्रशासकों ने किया है। इस लेखन की भी अपनी-अपनी सीमाएँ थीं। वह पूर्वग्रहमुक्त नहीं था, कभी-कभी उसमें दुराग्रह भी झलकते हैं। फिर भी लेखन में, विशेषकर उसके अनुभवजन्य विवरणों में- महत्त्वपूर्ण कच्ची सामग्री के अतिरिक्त प्रभावशाली विश्लेषण भी मिलते हैं।चारणों के विषय मे किसी विद्वान् ने लिखा है कि चारणों को भूमि पर बसानेवाले महाराज पृथु थे। उन्होंने चारणों को तैलंग देश में स्थापित किया और तभी से वे देवताओं की स्तुति छोड़ राजपुत्रों और राजवंशों की स्तुति करने लगे। यहीं से चारण सब जगह फैले।
    बड़वा जागा और भाट इन तीनों जातियों को 'राव जी' और 'बड़वा जी' भी कहते हैं और मुख्य रूप से राजस्थान मध्यप्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में निवास करती है यह जाति राजपूत और जाट व अन्य प्रमुख समाज के वंशावली लेखन का कार्य करती है।भारत में राजपूत और अन्य जातियों का इतिहास और उनकी वंशावली बड़वा द्वारा लिखी गयी, राजपूत में सभी वंश के अलग अलग बड़वा होते जो उनके खानदान का इतिहास लिखते हैं और उनके पास रखते हैं। बडवा सबसे उच्च कोटि के होते हैं। बड़वा केवल राजपूत राजवंश का ही वंश लेख करते हैं। बाकी अन्य जैसे भाट, जागा यह अन्य सभी क्षत्रिय वर्ण जातियों की वंशावली लेखन का काम करते है।
    राव भाट एक ब्राह्मण समुदाय है यह ब्राह्मण शिख राजपूतो के यहां पुरोहित हुआ करते थे एवम शिख राजपूतो के पराकृमण का वणृन अपनी वहियौ मै किया करते थे शिख राजपूतो की सभाऔ मै जनता के सामने तेज आवाज मै उनकी वीरता का भाव पृकट करते थे आज भी राव भाट ब्राह्मण शिख राजपूतौ के यहां जाया करते है वहां उनहे आदर पूणृ भारी दान दिया जाता है। भाट या भटट एक भारतीय उपनाम है।

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  29. 1. बही भाट- इनका कार्य वंश लेखन है और यह अलग अलग समुदायों के अलग अलग होते हैं। अलग अलग जातियों के बही लेखक अलग अलग बिरादरी के होते हैं, यह एक व्यवसाय है जिसे यह लोग पीढ़ी दर पीढ़ी करते आ रहे हैं, राजस्थान मे कई प्रकार के बही भाट पाये जाते हैं। 2. बंजारा भाट यह मुख्यतः राजस्थान में पाये जाते हैं जहां इसे खानाबदोश का दर्जा प्राप्त है। 3. भट्ट- ब्राह्मणों का एक समुदाय है। यह समुदाय कश्मीर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र आदि में बहुतायत मे पाये जाते हैं। यदि किसी को अपनी हजार वर्ष पुरानी वंशावली की जानकारी चाहिए तो इसका पता लगाना भी संभव है। राजस्थान के विभिन्न भागों में रहने वाले जागे पाच हजार वर्ष पूर्व तक का रिकार्ड रखते है। वह शुरूआती दौर से लेकर वर्तमान की स्थिति तक की जानकारी उपलब्ध करवा देते है। इन दिनों राजस्थान के शाहपुरा से गौड़ ब्राह्मणों की वंशावली रखने वाले जागे भिवानी में है। इन परिवारों का हवाला देकर पीछे की वंशावली बताते है। शाहपुरा के पूर्णमल व गोपाल लाल ने बताया कि गौड़ ब्राह्मणों का निकास 5500 वर्ष पूर्व पश्चिम बंगाल के मालदह जिले के अंतर्गत गौड़ ग्राम से हुआ था। उन्होंने बताया कि गौड़ ब्राह्मण के दो समूह है। पंच गौड़ विधाचंल से उत्तर व पंच द्रविड़। पंच द्रविड़ दक्षिण क्षेत्र में है, जबकि पंच गौड़ उत्तरी क्षेत्र में। उन्होंने बताया कि दिल्ली के राजा जनमेज्य ने सर्प यज्ञ के लिए गौड़ ब्राह्मणों को बुलाया था। पूर्णमल व गोपाल लाल ने बताया कि पहले वंशावली भोज पत्र पर लिखी जाती थी। समय के साथ-साथ भोज पत्र खंडित होने लगे तो हाथ से बने कागज पर 250 वर्ष पूर्व इस वंशावली को उतारने का काम किया गया, जब से उसी पर वंशावली चल रही है। उन्होंने बताया कि राजस्थान के सागनेर में हाथ से कागज बनाया जाता था। इसी कागज पर वंशावली उतारी जाती है। शाहपुरा में गौड़ ब्राह्मण जागे के 50 परिवार हैं, जो पूरे देश में घूमते है। वर्तमान परिवेश में शिक्षा का प्रसार बढ़ा है। इसलिए परिवार की एक-दो सदस्य ही वंशावली बताने का कार्य करते है। कुछ लोग व्यापार करने लगे है तो कुछ लोग नौकरी पेशा करने लगे है ।

    --"राव समाज का इतिहास"--

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  30. --"राव समाज का इतिहास"--

    पौराणिक कथा और इतिहास पौराणिक कथाओं के अनुसार और हिंदू धर्म के अनुसार, इस पहचान को ब्रह्मा द्वारा किए गए यज्ञ / यज्ञ से मानव अवतार के रूप में प्रकट है और वे आज तक गुजरात के कई हिस्सों में सरस्वती पुत्र (मां सरस्वती के वंशज) के लिए। रूप में माने जाते हैं। जबकि शिव के लिए अन्य विश्वासों ने आदेश को संरक्षित करने के लिए एक शाखा बनाई, और समाज में कला, संस्कृति, आध्यात्मिक ज्ञान का प्रसार किया, जबकि एक ही समय में समाज की रक्षा करना और सुरक्षित करना, या फिर पहले ज्ञान और ज्ञान ( शास्त्र) या एस्ट्रेट द्वारा (साथ में) युद्धभूमि)। और उन मान्यताओं के अनुसार, राव की उत्पत्ति देवपुरी या अलकापुरी और हिमालय से हुई है, जो कि नैमिषारण्य, गंगा की बेल्ट और सिंधु और सरस्वती प्रदेशों में वैदिक युग के पार हैं। उनकी उपस्थिति में नेपाल, कश्मीर, पंजाब, कन्नौज, मगध, काशी, वर्तमान बंगाल और बांग्लादेश, राजपुताना, मालवा, सुराष्ट्र (सौराष्ट्र), द्वारिका राज्य शामिल हैं, जबकि यूरोप में सुदूर पश्चिम तक रहा है, मुख्य रूप से वर्तमान पाकिस्तान,
    अफगानिस्तान पर कब्जा कर रहा है ईरान, तुर्की, ग्रीस, इटली, रोम, फ्रांस और जर्मनी अलग - अलग परिभाषा और पहचान के तहत। यह तथ्य राव है, जिसे अक्सर वैदिक काल में सुभट्ट या राजकुमार भट्ट के रूप में कहा जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप, मध्य एशिया और पूरे यूरोप में पाए जाते हैं। राव रामायण, पुराणों, भगवद गीता, _ _ _ बौद्ध धर्म, कुछ वैदिक संदर्भो, कई धार्मिक शास्त्रों और शाही राजपत्रकों में संदर्भ पाते हैं।
    मुख्य रूप से पुरातन काल राव समाज के लोग थे-।1 राज्यों के राजाओ के सलाहकार 2 कोर्ट कवि ओर कवि 3 इतिहासकार 4 साहित्यकार 5 योद्धा 6 कहानी बताने वाला 7 वंशावली लेखक
    सामंती युग के माध्यम से यह लंबे समय तक प्रचलन में रहा कि केवल ब्रम्हभट्ट को राजा के खिलाफ बोलने या अपने फैसलों की बातचीत में हस्तक्षेप करने का अधिकार था । गुजराती में एक कहावत है ' राजा नो घोड़ो रोक्वानो हक फक बरोत नज ' , इसका मतलब है , ' केवल बड़ौत के पास ही राजा के घोड़े को रोकने का अधिकार है । राव या बारोट बहुत तैयार बुद्धि हैं , जैसा कि कहा जाता है , देवी सरस्वती को उनकी जीभ पर रखा गया है और हो सकता है कि राव को ' बरोट ' = बार ( 12 ) + होथ ( लिप्स ) का उपनाम मिला , यहां तक कि बीरबल भी बरोट थे । समाज और उनकी प्रतिभा में उनकी भूमिका के अनुसार , राव को बारोट , दासोंडी , शर्मा , इनामदार , ब्रह्मभट्ट जैसे विभिन्न उपनाम मिले ।राव समाज सनातन धर्म का आधार है क्योंकि वंशावली लेखक ही इतिहास की सच्चाई बता सकता है।
    ✍लेखन/संकलन/प्रकाशन
    "अखण्ड भारतवर्ष महासंघ"-- महा'अभियान
    👏 शिव सिहं भुरटिया

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  31. सर कृपया करके बारी समाज का भी इतिहास बताये । आपके लेख और आपकी खोज बहुत अच्छी है ।

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  32. 'क्षत्रिय राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान' के जन्म दिवस पर विशेष
    --------------------------------------------------
    आंग्ल भाषा/अंग्रेजी दिनांक अनुसार आज ही के दिन अर्थात 7 जून को *-'भारतेश्वर क्षत्रिय सम्राट पृथ्वीराज चौहान'-* का जन्म 1166 ईसवी में हुआ था। यानी आज उनकी 853 वी जन्म जयंती है। आप सभी को उनकी जन्म जयंती पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।।

    जन्म:- भारतवर्ष के अन्तिम प्रतापी क्षत्रिय *"सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय, का जन्म गुजरात के अन्हिलवाड़ा नामक स्थान पर दिनांक 7 जून, 1166 ज्येष्ठ कृष्ण 12 वि. स. 1223 को हुआ था। उनके पिता का सोमेश्वर चौहान और माता का नाम कमला देवी/कर्पूरी देवी था, जो कि अजमेर के सम्राट थे।सम्राट पृथ्वीराज के जन्म के समय ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि पृथ्वीराज बड़े-बड़े राजाओं का घमण्ड चूर करेगा और कई राजाओं को जीतकर दिल्ली पति चक्रवर्ती सम्राट बनेगा।"*
    - जब पृथ्वीराज 11 वर्ष के थे, तब उनके पिता सोमेश्वर का वि.स. 1234 में देहांत हो गया। इस प्रकार 14 वर्ष की आयु में इनका राजतिलक कर उन्हें राजगद्दी पर आसीन किया गया।
    पृथ्वीराज की आयु कम होने के कारण उनकी माता ने प्रधानमंत्री केमास की देखरेख में राज्य का कार्यभार संभाला और पुत्र को शिक्षित किया।
    *"पृथ्वीराज ने 25 वर्ष की आयु तक कुलगुरू आचार्य से 64 कलाओं,14 विद्याओं और गणित,युद्ध-शास्त्र,तुरंग विद्या,चित्रकला,संगीत,इंद्रजाल,कविता,वाणिज्य,विनय तथा विविध देशों की भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। पृथ्वीराज को शब्द-भेदी धनुर्विद्या उनके गुरू ने देकर आशीर्वाद दिया था कि ‘‘इस शब्द-भेदी बाण-विद्या से तुम वर्तमान विश्व में एक मात्र योद्धा कहलाओगे और धनुर्विद्या में कोई तुम्हारा मुकाबला नहीं कर पाएगा और तुम चक्रवर्ती सम्राट कहलाओगे।’’ इस प्रकार ज्योतिषियों की भविष्यवाणी के तदनुसारसार पृथ्वीराज ने अपने दरबार के 150 सामंतों के सहयोग से छोटी सी उम्र में दिग्विजय का बीड़ा उठाया और चारों दिशाओं के राजाओं पर विजय प्राप्त कर चक्रवर्ती सम्राट बन गया।"*

    *-'अंतिम हिन्दू हृदय क्षत्रिय सम्राट पृथ्वीराज चौहान'-*
    महानतम राजपूत शासक
    पृथ्वीराज चौहान भारतीय इतिहास का एक ऐसा चेहरा है जिसके साथ वामपंथी और धर्मनिरपेक्ष इतिहासकारों ने सबसे ज्यादा ज्यादती की है। पृथ्वीराज जैसे महान और निर्भीक योद्धा, स्वाभिमानी युगपुरुष,अंतिम हिन्दू हृदय क्षत्रिय सम्राट, तत्कालीन भारतवर्ष के सबसे शक्तिशाली एवं प्रतापी राजा को इतिहासकारों ने इतिहास में बमुश्किल आधा पन्ना दिया है और उसमे भी मोहम्मद गौरी के हाथों हुई उनकी हार को ज्यादा प्रमुखता दी गयी है। विसंगतियों से भरे पड़े भारतीय इतिहास में विदेशी, आततायी,अकबर महान हो गया और सम्राट पृथ्वीराज गौण हो गये। विडंबना देखिये आज पृथ्वीराज पर एक भी प्रामाणिक पुस्तक उपलब्ध नहीं है। महान पृथ्वीराज का इतिहास आज किंवदंतियों से भरा पड़ा है। जितने मुँह उतनी बातें। जितने लेखक उतने प्रसंग। तमाम लेखकों ने सुनी सुनाई बातों या पुराने लेखकों को पढ़कर बिना किसी सटीक शोध के पृथ्वीराज चौहान पर पुस्तकें लिखी हैं। कुछ दिग्भ्रमित विधर्मी ईस्लाम परस्त,सेक्युलर,घृणित/कुंठित मानसिकता के हिन्दुओं ने तो इनको क्षत्रिय राजपूत ही न मानकर अन्य कतिपय जाति का मान लिया है,जिनको यह तक नही मालूम है कि *'क्षत्रिय राजपूत सम्राट'* की ही वजह से उनकी पीढ़ीयां जीवित है सांस ले पा रही है अन्यथा यह जातियां तो कब की मुस्लिम बन चुकी होती!! जन सामान्य में पृथ्वीराज चौहान के बारे में उपलब्ध अधिकांश जानकारी या तो भ्रामक है या गलत। आधी अधूरी जानकारी के साथ ही
    *'हम पृथ्वीराज चौहान जैसे विशाल व्यक्तित्व, अंतिम हिन्दू हृदय क्षत्रिय सम्राट, पिछले 1000 वर्षों के सबसे प्रभावशाली,विस्तारवादी,महत्वकांक्षी,महान राजपूत योद्धा का आंकलन करते हैं जो सर्वथा अनुचित है।'*
    पृथ्वीराज चौहान के जन्म से लेकर मरण तक इतिहास में कुछ भी प्रमाणित नहीं मिलता। *'विराट भारतवर्ष के उससे भी विराट इतिहास का पृथ्वीराज एक अकेला ऐसा महानायक है'* जिसके जीवन की हर छोटी-बड़ी गाथा के साथ तमाम सच्ची-झूठी किंवदंतीया और कहानियां जुडी हुई हैं। इस नायक की जन्म तिथि 1149 से लेकर 65, 66, 69 तक मिलती है। इसी तरह मरने को लेकर भी तमाम कपोल-कल्पित कल्पनायें हैं। कोई कहता है कि अजमेर में मृत्यु हुई तो कोई कहता है अफ़ग़ानिस्तान में,कोई कहता है मरने से पहले पृथ्वीराज ने मोहम्मद गोरी को मार दिया था तो कोई कहता है गोरी पृथ्वीराज के बाद भी लम्बे समय तक जीवित रहा। पृथ्वीराज और मोहम्मद गोरी के युद्धों की संख्या से लेकर उनके युद्धों के परिणामों तक,पृथ्वीराज को दिल्ली की गद्दी मिलने से लेकर अनंगपाल तोमर या तोमरों से उसके रिश्तों तक सब जगह भ्रान्तियाँ है ।

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  33. महान क्षत्रिय सम्राट पृथ्वीराज चौहान
    शेष भाग---2

    यही नहीं पृथ्वीराज और जयचंद के संबंधों की बात करें या पृथ्वीराज-संयोगिता प्रकरण की कहीं भी कुछ भी प्रामाणिक नहीं। पृथ्वीराज के विवाह से लेकर उसकी पत्नियों तथा प्रेम प्रसंगों तक,हर विषय पर दुविधा और भ्रान्तियाँ मिलती है। पृथ्वीराज से जुड़े तमाम किस्से कहानियां जो आज अत्यंत प्रासंगिक और सत्य लगते हैं इतिहास की कसौटी पर कसने और शोध करने पर उनकी प्रमाणिकता ही खतरे में पड़ जाती है। इनमे सबसे प्रमुख है पृथ्वीराज और जयचंद के सम्बन्ध। इतिहास में इस बात के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलते कि गौरी को जयचंद ने बुलाया था या उसने पृथ्वीराज के खिलाफ गौरी का साथ दिया था क्यूंकि किंवदंतियों तथा चारणों के इतिहास में इस बात की प्रमुख वजह पृथ्वीराज द्वारा संयोगिता का बलात हरण करना बताया गया है । हाँ लेकिन इतना तय है कि पृथ्वीराज और जयचंद के सम्बन्ध मधुर नहीं थे और शायद अत्यंत कटु थे। लेकिन इसकी वजह उनकी आपसी प्रतिस्पृधा तथा महत्वकांक्षाओं का टकराव था। यह बात दीगर है कि पृथ्वीराज चौहान उस समय का सबसे शक्तिशाली एवं महत्वकांक्षी राजा था। जिस तेजी से वो सबको कुचलता हुआ हराता हुआ अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहा था वो तत्कालीन भारतवर्ष के प्रत्येक राजवंश के लिये खतरे की घंण्टी थी। पृथ्वीराज तत्कालीन उत्तर और पश्चिम भारत के सभी छोटे-बड़े राजाओं को हरा चूका था इनमे सबसे प्रमुख *गुजरात के भीमदेव सोलंकी* तथा उत्त्तर प्रदेश के *महोबा के चंदेल राजा परिमर्दिदेव* को हरा चूका था जिसके पास *'बनाफर क्षत्रिय वंश के आल्हा उदल'* जैसे प्रख्यात सेनापति थे। मोहम्मद गोरी के कई आक्रमणों को उसके सामंत गण निष्फल कर चुके थे।

    ये पृथ्वीराज चौहान ही था जिसके घोषित राज्य से बड़ा उसका अघोषित राज्य था। जिसका प्रभाव आधे से ज्यादा हिंदुस्तान में था और जिसकी धमक फारस की खाड़ी से लेकर ईरान तक थी। जो 12 शताब्दी के अंतिम पड़ाव के भारतवर्ष का सबसे शक्तिशाली सम्राट और प्रख्यात योद्धा था जो जम्मू और पंजाब को भी जीत चुका था। गुजरात के सोलंकियों, उज्जैन के परमारों तथा महोबा के चन्देलों को हराने के बाद बड़े राजाओं तथा राजवंशों में सिर्फ कन्नौज के गहड़वाल ही बचे थे जिन्हे चौहान को हराना था और उस समय की परिस्थितियों का अवलोकन करने तथा पृथ्वीराज के शौर्य का अवलोकन करने के बाद यह कहना कतई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पृथ्वीराज चौहान, जयचंद गहड़वाल को आसानी से हरा देता। राजपूत काल के प्रारम्भ (7 वीं सदी ) से राजतन्त्र की समाप्ति तक (1947 ) पूरे राजपूत इतिहास में अन्य कोई भी राजपूत राजा पृथ्वीराज के समक्ष शक्तिशाली,महत्वकांक्षी नहीं दिखता है। अधिकांश राजा या तो अपने राज्य के लिये मुसलमानों से लड़ते रहे या उनके पिछलग्गू बने रहे। एक भी राजा ऐसा पैदा नहीं हुआ जिसने इतनी महत्वकांक्षा दिखायी हो इतना सामर्थ दिखाया हो जो आगे बढ़कर किसी इस्लामिक आक्रांता को ललकार सका हो, चुनौती दे सका हो, जिसने कभी दिल्ली के शासन पर बैठने की इच्छा रखी हो (अपवाद स्वरूप महाराणा सांगा का नाम ले सकते हैं)। यदि पृथ्वीराज चौहान को युगपुरुष कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। पृथ्वीराज दो युगों के बीच का अहम केंद्र बिंदु है। हम इतिहास को दो भागों में बाँट सकते हैं एक पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु से पहले का,एक उसकी मृत्यु के बाद का। सन 712 (प्रथम मुस्लिम आक्रमण ) से लेकर 1192 (पृथ्वीराज की हार) तक का युग है राजपूतों के मुस्लिमों से संघर्ष का उन्हें हराने का उनसे जमकर मुक़ाबला करने का उनके प्रत्येक हमले को विफल बनाने का। जबकि 1192 में पृथ्वीराज की हार के बाद का युग है राजपूतों का मुसलमानों के मातहत उनका सामंत बनकर अपना राज्य बचाने तथा उनको देश की सत्ता सौंप उन्हें भारत का भाग्य विधाता बनाने का।
    *'सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हार सिर्फ उनकी निजी हार नहीं थी बल्कि पूरे क्षत्रिय राजपूत समाज की,राजपूत स्वाभिमान की, सम्पूर्ण सनातन क्षत्रियत्व धर्म की, विश्व गुरु भारतवर्ष की तथा भारतीयता की हार थी। इस एक हार ने हमारा इतिहास सदा-सदा के लिये बदल दिया।'*
    पुरे 800 वर्ष में एक भी राजा ऐसा पैदा ना हुआ जिसने विदेशी-विधर्मियों को देश से बाहर खदेड़ने का प्रयास किया हो। जिसने सम्पूर्ण भारतवर्ष की सत्ता का केंद्र बनने तथा उसे अपने हाथ में लेने का प्रयास किया हो।

    अत्यंत महत्वपूर्ण तथा विचारणीय प्रश्न है !! क्या होता यदि उस युद्ध में पृथ्वीराज की हार नहीं होती बल्कि जीत होती और मोहम्मद गोरी को मार दिया जाता ???
    ✍साभार *शिशोदा* मेवाड़
    *"अखंड भारतवर्ष महासंघ"--* महा'अभियान
    सनातन क्षत्रियत्व धर्म हिन्दुत्व रक्षक एवं प्रचारक महासंघ

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  34. राजतंत्र व्यवस्था / राजशाही के समय संकटकालिन परिस्थितियों में जैसे युद्ध काल के दौरान,अकस्मात शत्रुपक्षों के बिच गीर जाने पर इत्यादी मे, रणक्षेत्र मे विशेष रणकौशल/बुद्धि चातुर्यता/स्वामिभक्ति,निष्ठा का प्रदर्शन करते हुए विशेष जोखिम भरे कार्यो में नेतृत्व करते हुए पुर्ण समर्पित क्षत्रियता ''वीजय/वीरगति'' को प्राप्त करने पर प्रजाजनों द्वारा/ऋषि गणों द्वारा/गुरुजनों द्वारा/राजा,राजाओं द्वारा/पुरोहित द्वारा/सभासदों द्वारा ऐसा असंभव को भी संभव कर देने वाले क्षत्रिय वीरों को कुछ विशेष उपमा,पदवीं,संज्ञा दी जाती थी,प्रदान की जाती थीं एवं कुछैक मोकों पर राष्ट्र धर्म व कर्म तथा मानव समाज,प्रकृति की रक्षार्थ-सेवार्थ,उन्नति-विकास और पुनर्स्थापना हेतु/संतुलन बनाये जाने पर परम प्रतापी क्षत्रिय सम्राट माननीय गुरुजनों के मार्गदर्शन में विरूद धारण करते थे विषम घाटी पंचानन = शिशोदिया मेवाड़ 'वंश पुरौधा' महाराणा हम्मीर सिंह
    इनमें प्रमुखतया निम्नलिखित हैं
    (1) ठाकुर/बाप्पा = अपने प्रजाजनों का पिता तुल्य पालन पोषण करने पर सुर्यवंशी क्षत्रिय राजाओं को प्रदान
    (2) सिंह = सिंह के समान कर्म पर क्षत्रियों को प्रदान
    (3) दास = स्वामिभक्ति पर सुर्यवंशी क्षत्रियों को प्रदान दुर्गादास राठौड़
    (3) नाथ = मेवाड़ अंचल में संसारिक रुप में चौहान को एवं विरक्त रुप में शिशोदिया को प्रदान
    (4) रावल/महारावल = सुर्यवंशी क्षत्रियों की गुहिलवंश शाखा में प्रमुख उपशाखा सिसोदिया को प्राप्त महान संस्थापक कालभोज (बप्पा) रावल प्रथम सम्राट(रावल पिंडी संस्थापक) से शुरू होकर अंतिम रावल रतन सिंह सिसोदिया चित्तौड़गढ़
    (5) राणा = सुर्यवंशी क्षत्रियों की गुहिलवंश शाखा मे कनिष्ठ उपशाखा मेवाड़ राजवंश ''शिशोदिया'' को ही प्राप्त
    (6) कमध्वज = सुर्यवंशी क्षत्रियों की राष्ट्रकूट शाखा राठौड़ को प्रदान 'वीरवर शेषावतार कल्ला जी राठौड़'
    (7) रणबंका = सुर्यवंशी क्षत्रियों की राष्ट्रकूट शाखा राठौड़ को प्रदान वीरवर बल्लूजी चांदावत
    (8) प्रणबंका = झाला शाखा को प्रदान 'झाला मान' हल्दीघाटी में (बड़ी सादडी ठिकाना)
    (9) लोहथम्ब = भारद्वाज गौत्र सुर्यवंशी क्षत्रिय को। भोजपुर बिहार (राणा प्रताप की टीम)

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  35. लोहथम्ब- ये भगवान राम के पुत्र लवके वंशज माने जाते हैं
    जैसा कि मतिराम के काव्य में वर्णित है
    राजा राम के तनय द्वय लव कुश नृपति सुजान |
    लव ते क्षत्रिय प्रगटेऊ नृपति लोहथम्भ प्रमाण ||
    इनका मूल गोत्र गौतम एवं उप गोत्र भारद्वाज होता है |
    भगवान राम ने अपने पुत्र लव को दक्षिण कौशल का राज दिया था | बाद में महाराज लव ने लाहौर की स्थापना की |
    इन्हीं लव वंश की एक शाखा राजस्थान में आकर बस गई |
    हल्दीघाटी युद्ध में इसी वंश के
    राव गजाधर सिंह ने महाराणा प्रताप के सेना के एक टुकड़ी का नेतृत्व किया और मुगलों के सामने ऐसे डट गये जैसे लोहे का खम्भा जमीन में गड़ जाता है | गजाधर सिंह की वीरगति के बाद ही मुगल आगे बढ़ सके | हल्दीघाटी में पराजय के बाद भी इस वंश ने महाराणा प्रताप के साथ हमेशा साथ खडे रहे | लोहे के खम्भे के समान गड़बड़ जाने के कारण ही
    महाराणा प्रताप ने गजाधर सिंह को लोहथम्भ की उपाधि से सम्मानित किया |
    बाद में इसी वंश के चार भाई बिहार के भोजपूर और बलिया में आकर बस गए |बाद में लोहथम्भ से लोहतमिया कहलाने लगे |लोहथम्ब ( लोहतमिया) भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में बाबु कुंवर सिंह का भरपूर साथ दिया और विरतापूर्वक लड़े| इसी वंश के विश्वनाथ सिंह ने रराजपूत रेजिमेंट के अपने साथियों सहित बाबु सुभाष चन्द्र बोस का रंगून युद्ध में साथ दिया | बाद में विश्वनाथ सिंह को अंग्रेजों द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई थी |
    भारत के प्रथम रेलमंत्री बाबू श्री रामसूभग सिंह और प्रसिद्ध अघोरेश्वर श्री अवधूत भगवान राम लोहतमिया वंश के ही थे |

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  36. सराहनीय प्रसंसनीय वंदनिय कार्य/लेख प्रेषित करने हेतु आपका स्वागत वन्दन आभार और अभिनन्दन है हुकूम माननीय राज सिहं जी सा

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  37. *-"पानरवा के सोलंकी ओर मुगल साम्राज्य के विरुद्ध मेवाड़ का स्वतंत्र संग्राम"-*

    "राणा चन्द्रभान सोलंकी पानरवा" *राणा पूंजा के पोत्र"*(1660- 1695ई.)

    बड़वा ओंकार और बड़वा रामसिंह दोनों की पोथियों में राणा राम की मृत्यु होने तथा ज्येष्ठ पुत्र चन्द्रभान की गद्दीनशीनी का वर्ष विक्रम संवत 1732(1675ई.)दिया गया है।यदि राणा पूंजा की मृत्यु का वर्ष 1610ई.माना जाय तो राणा राम का शासन-काल 65 वर्षों का होना अत्यधिक सही लगता है

    आगे राणा चन्द्रभान की मृत्यु का वर्ष बड़वों ने वि.सं.1752(1695ई.)दिया है जिसके अनुसार उसका शासन काल केवल बीस वर्ष होता है अतः संभव है कि राणा राम की मृत्यु 1675ई.में न होकर उससे लगभग पन्द्रह-बीस वर्ष पहिले हुई (1660ई.)के लगभग हो ऐतिहासिक साक्ष्यों के अभाव में अनुमान का सहारा ही लेना होगा।किन्तु यह निश्चित है कि जब महाराणा राजसिंह (1652-1680ई.)ने एक बार फिर मुगलों से लड़ाई मोल ली, उस समय पानरवा के शासक सोलंकी राणा चन्द्रभान थे 1615ई.में मेवाड़-मुगल संधि के बाद मेवाड़ राज्य की राजधानी पहाड़ी भाग की राजधानी चावंड से हटकर उदयपुर हो गई चावंड से राजधानी हटने के बाद घने वनीय एवं दुर्गम पहाड़ी भाग में रहने वाले पानरवा के भोमेट क्षेत्र के राजपूत ठिकानेदारों का मेवाड़ के महाराणाओं के साथ रहा गत 45वर्षों का सक्रिय सम्बन्ध भी टूट गया!!उनके बीच सम्पर्क कम होता गया।किन्तु लगभग 65वर्षों बाद महाराणा राजसिंह के काल में संकट उपस्थित होने पर पुनः उनके बीच में सक्रिय सहयोगात्मक सम्बन्ध स्थापित हुए । 1679ई.में कई कारणों से महाराणा राजसिंह के 22. वहीं यह उल्लेख संभवतः फार्ल्स(Forbes)लिखित गुजरात के इतिहास से लिया गया है,जिससे इस घटना से सम्बन्धित पानरवे के व्यक्ति और घटना के वर्ष के सम्बन्ध में गलती हुई हो । *23* .गामडी के जागीरदार हरिसिंह के दो पुत्रों को बाद में पानरवा से दोब और नेवज की जागीरें मिली। आंजरोली के जागीरदार मानसिंह के पुत्र भीमसिंह को पानरवा से ओड़ा की जागीर मिली ।

    मेवाड़ के सम्बन्ध मुगल बादशाह औरंगजेब से बिगड़ गये महाराणा ने औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं पर लगाये गये जजिया कर का विरोध किया और उसकी मर्जी के खिलाफ किशनगढ़ के राजा रूपसिह राठोड़ की कन्या चारुमती से विवाह करके महाराणा उदयपूर ले आये तो बादशाह बहुत नाराज हुआ ।

    अंत में मारवाड के महाराजा जसवंतसिह की मत्यु के बाद बादशाह के दरबार से आये उनके पुत्र बालक अजीतसिंह को दुर्गादास राठोड व अन्य सरदारों को उदयपुर में शरण दी. तो सितम्बर 1679 ई.में बादशाह औरंगजेब ने मेवाड़ पर चढ़ाई कर दी अपने यशस्वी पूर्वजों महाराणा प्रतापसिंह और अमरसिंह के पदचिह्नों पर चलते हुए महाराणा राजसिंह ने भी अपने स्वाभिमान और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए बादशाह से युद्ध मोल ले लिया

    उन्होंने पुन:पहाड़ों का सहारा लेकर और पानरवा आदि भोमट के राजपूत सरदारो एवं भीलों का सहयोग लेकर लड़ने का निर्णय लिया।। पानरवा राणा चन्द्रभान सोलंकी द्वारा औरंगजेब के विरुद्ध महाराणा राजसिंह की सहायता जब महाराणा राजसिंह ने बादशाह औरंगजेब द्वारा मेवाड़ पर चढ़ाई के समाचार सुने तो उसने अपने दरबारीयो से सलाह-मशविरा करके मुगल सेना के साथ 'छापामार-युद्ध-प्रणाली' से पहाड़ों में लड़ने,घाटियों में शत्रु को घेर कर मारने,उनकी रसद लूटकर एवं रसद के रास्ते बन्द कर उनको भूखों मारने,उनके खजाने लूटने तथा मुगल इलाकों पर धावे बोल कर लूटमार करने की रणनीति अपनाने का निश्चय किया। इस नीति को अंजाम देने के लिये महाराणा राजसिंह ने उदयपुर से भोमट की ओर प्रस्थान किया। वह उदयपर से आठ मील दूर देवीमाता के पहाड़ों में पहुंचे। वहां से उन्होने भोमट के सभी राजपूत सिरदारों को अपने अपने धनुर्धारी भीलों को साथ लेकर उनके पास पहुँचने का आदेश भिजवाया

    इस पर पानरवा ओगणा,मेरपर,जुड़ा और जवास आदि के राजपूत सिरदार तथा भील पालों के मुखिया लगभग पचास हजार धनुर्धारी भील सैनिकों को साथ लेकर देवीमाता के पहाड़ों में पहुँच गये। पानरवा के सोलंकी राणा चन्द्रभान अपने बांधवो ओगणा के अधिपति और अन्य सोलंकी बांधवो व कई हजार भील सैनिकों को साथ लेकर पहुंचे। महाराणा राजसिंह ने आदेश दिया कि भोमट के सारे अपने भील सैनिकों के साथ मेवाड के पहाडी प्रदेश में प्रवेश के सभी मार्गों,नालों,घाटों एवं नाकों पर शत्रु का मुकाबला करें

    ✍शेष भाग आगे जारी रहेगा हुकूम _____


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  38. ✍शेष भाग ___

    दस-दस हजार भीलों के समूह बनाये गये,जिनको अनुभवी राजपूत सिरदार एवं भील गमेतियों के अधीन रखकर मेवाड़ के सामरिक महत्व के प्रधान स्थानों एवं नाको पर नियुक्त किया गया । उनको आदेश दिया गया कि वे शत्रु को पहाड़ी इलाके में घुसने से रोके , उनका छापामार युद्ध - प्रणाली से मुकाबला करे , उनकी रसद एवं खजाना आदि लूटकर लूट का माल महाराणा के पास पहुंचाये । इस प्रकार की व्यवस्था करके महाराणा ने पानरवा के राणा चन्द्रभान सोलंकी तथा अन्य सिरदारों को अपने भील सैनिकों के साथ रवाना किया

    महाराणा ने कुछ हजार भील सैनिकों को पहाड़ों में आपने राजपरिवार , शरण में आये मारवाड के बालक महाराजा अजीतसिंह और उसके परिवार तथा अन्य परिवारों की सुरक्षा , यातायात , संचार एवं सूचना आदि सेवाओं की व्यवस्था के लिये अपने पास रख लिये । उपरोक्त व्यवस्था करने के बाद महाराणा राजसिह भोमट के दक्षिणी भाग वाले अधिक दुर्गम एवं वनीय पहाड़ों की ओर उपरोक्त सभी को साथ लेकर चला गये । पहले उन्होंने नैनवाड़ा में मुकाम किया । वहां रहते हुए उसने भीलों की सुरक्षा में खियों एवं बच्चों के लिये सुरक्षित निवास का प्रबन्ध किया । साथ ही उसने उदयपुर तथा अन्य नगरों एवं गांवों आदि की प्रजा को भी पहाडी भाग में बुला लिया

    बादशाह औरंगजेब ने बड़ी सेना लेकर दिसम्बर 1679 ई . में मेवाड़ में प्रवेश किया और उदयपुर के पहाड़ी भाग के पूर्वी प्रवेश - मार्ग देबारी घाटी पहुचा । उसने वहां से पहाड़ी भाग में चारों ओर कई सैन्य - दल भेजे । महाराणा ने । उनका खुलकर सामना नहीं किया , अपितु उसके सैनिकों ने पहाडों की घाटियों से उतरकर जगह - जगह पर मंगला सैन्य - दलों पर आक्रमण करके उनको तितर - बितर कर दिया । मुगलों को जन - धन की भारी हानि उठानी पड़ी । अंत । में फरवरी , 1680 ई . में बादशाह औरंगजेब असफल होकर लौट गया

    शीघ्र ही उसने पुनः एक बड़ी सेना मेवाड़ पर । भेजी । इस बार मुगल सेनाओं ने देसूरी और हल्दीघाटी मार्ग से पहाड़ी भाग में प्रवेश किया और चारों ओर धावे बोले , देसूरी की घाटी में बिका सोलंकी ने औरंगजेब की सेना को धूल चटा दी थी । उनको सर्वत्र जन - धन की हानि उठानी पड़ी । भील सैनिकों ने जगह - जगह पर चारों ओर से मुगल सैनिकों पर बाणों की वर्षा करके उनको बहुत आतंकित किया । युद्ध के दौरान ही महाराणा राजसिंह का 22 अक्टूबर , 1680 को देहान्त हो गया ।

    28 उसके उत्तराधिकारी महाराणा जयसिंह ने बादशाह औरंगजेब के साथ युद्ध जारी रखा । जनवरी , 1681 ई . को शाहजादे अकबर ने अपने पिता बादशाह औरंगजेब के विरुद्ध मेवाड़ और मारवाड़ की राजपूत सेनाओं की सहायता लेकर विद्रोह कर दिया । उसने स्वयं को बादशाह घोषित कर दिया ।

    शाहजादा स्वयं महाराणा से मिला । शाहजादा राजपूत सेना तथा अपनी सेना को लेकर बादशाह के विरुद्ध लड़ने के लिए 14 जनवरी को अजमेर के निकट कुड़की स्थान पर पहुँचा बादशाह औरंगजेब अपने शाहजादे के विद्रोह से घबरा गया वह भी सेना लेकर अजमेर के निकट दोराई स्थान पर पहुँचा । बादशाह ने कपटनापूर्ण कार्यवाही का ।

    सहारा लेकर अकबर और राजपूत सर्दारों के बीच शंका पैदा कर दी इससे उनके बीच फूट पड़ गई और अकबर को बिना युद्ध किये लौटना पड़ा । स्वयं को कठिन स्थिति में पाकर बादशाह औरंगजेब ने मेवाड़ के महाराणा के प्रति । अपनी शत्रु - भावना त्याग कर जून , 1681 ई . में पुनः महाराणा जयसिंह के साथ संधि कर ली इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुगल बादशाह औरंगजेब के विरुद्ध लड़ाई में अंतमें महाराणा को ही सफलता हासिल हुई इसमें एक बार फिर भोमट इलाके के सिरदारों , प्रधानतः पानरवा के सोलंकी राणा चन्द्रभान और और उसके सहयोगियों एवं भील सैनिकों का बड़ा मूल्यवान योगदान रहा ।

    महाराणा प्रतापसिंह और महाराणा अमरसिंह के समय पानरवा के सोलंकी राणा हरपाल , राणा पूंजा और राणा राम ने जो अमूल्य सहयोग एवं सहायता प्रदान की , वही राणा चन्द्रभान ने महाराणा राजसिंह और जयसिंह को प्रदान की । | बड़वा रामसिंह की पोथी के अनुसार राणा चन्द्रभान ने पांच विवाह किये उन्होंने पहला विवाह जूड़ा के चौहान राव नारायणदास की पुत्री किशनकंवर के साथ , दूसरा विवाह मादरा के चौहान देवसिंह की पुत्री जतनकंवर के साथ , तीसरा विवाह गोगुंदा के झाला राज लालसिंह की पुत्री मोतियाकंवर के साथ , चौथा विवाह मादड़ी के सारंगदेवोत सिसोदिया रावत सूरतसिंह की पुत्री के साथ एवं पांचवा विवाह पहाड़ा के चौहान रावत कीरतसिंह की पूत्री जेतकंवर । के साथ किया ।

    ✍शेष भाग आगे जारी रहेगा हुकूम---

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  39. उसका ज्येष्ठ पुत्र सूरजमल जेतकंवर की कोख से उत्पन्न हुआ । राणा चन्द्रभान के तीन पुत्र हुए 1.सूरजमल,पानरवा के उत्तराधिकारी हुआ, 2.राजसिंह,3.भीमसिंह 30 । बड़वा ओंकार की पोथी और बड़वा रामसिंह की पोथी दोनों के अनुसार वि.सं.1752(1695ई.)राणा चन्द्रभान का देहावसान हो गया ।

    1681ई.में मेवाड़ के महाराणा जयसिंह और मुगल बादशाह के बीच सुलह हो जाने के बाद आगामी साठ वर्षों तक मेवाड़ में शांति रही। इस सुलह के बाद महाराणा को पानरवा और भोमट के अन्य सिरदारों एवं भीलजनों के सहयोग और सहायता की आवश्यकता नहीं रही।

    आवागमन की तत्कालीन परिस्थितियों में दोनों के बीच सक्रिय सम्पर्क नहीं रहा ।भील प्रजाजनों की भांति भोमट के सोलंकी,चौहान और सारंगदेवोत सिरदार अपने दुर्गम पहाडी इलाकों में सिमट कर रह गये मेवाड़ के सिरदारो के साथ उनके शादी-ब्याह के सम्बन्ध भी बहुत कम हो गये,क्योंकि मेवाड़ के अन्य भागों के राजपूत सिरदार भोमट के दुर्गम एवं विकट पहाड़ी भाग में अपनी बेटियां देने से बचते थे। लम्बे काल तक ऐसी परिस्थिति रहने के कारण मेवाड़ का सामंत वर्ग भोमट के राजपूत सरदारों को अपने से अलग मानने लगे इसका दुष्प्रभाव भी पड़ा भोमट के सिरदार मेवाड के सिरदारों की तुलना में शिक्षा,ज्ञान और सामाजिक आचार-विचार में पिछड़े रहे ।

    जय मेवाड़ ..... जय महाराणा प्रताप...
    जय भोमेंट..... जय राणा पूंजा सोलंकी..
    ✍शेष भाग आगे जारी रहेगा हुकूम---

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  40. ✍शेष अन्तिम भाग___
    संकलन प्रमाणित सहयोगी पत्रावली

    संदर्भ :- 20. गोगुंदा की ख्यात , सं . डा . हुकमसिंह भाटी , पृ . 7 ।। Mewar and the British by Dr. Devilal Paliwal , P. 158-161 21. हकीकत बहीड़ा , ग्रंथ सं . 3 , पृ . सं . 101 ( महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित ) ।
    16 . | वीरविनोद ले , कविराजा श्यामलदास , भाग 2 , पृ . 151 , 153 . II राजस्थान राज्य अभिलेखागार , उदयपुर , पत्रावली , भोमट , सं . 1 , वि . सं . 1979 . III राव पूंजाजी का पीढ़ीनामा- राजस्थान राज्य अभिलेखागार , बीकानेर , श्यामलदास - संग्रह , पत्रावली सं . 171 . IV . Ruling Princes , Chiefs and Leading Personages of Rajputana by C.S. Bayley P. 182 . V Biographical Sketches of the Chiefs of Mewar by Col. C.K.M. Walter , P. 167-173 . VI भोमट का हाल , राज , प्राच्य विद्याप्रतिष्ठान , उदयपुर ग्रंथ सं . 2680 . VII राजपूताने का इतिहास , ले , जगदीशसिंह गहलोत , भाग 1 , पृ . 385 . VIII महाराणा प्रताप महान , ले . डॉ . देवीलाल पालीवाल , पृ . 35 .
    18. वीरविनोद , ले , कविराजा श्यामलदास , भाग 2 , पृ . 223 . उदयपुर राज्य का इतिहास , ले . गी . ही , औझा , भाग 1 , पृ . 480 , 19 . टाड ने यह कार्यवाही महावतखां द्वारा की गई बताया है । उसने लिखा है- ' Mahabat Khan took possession of Udaipur and while a prince of the blood cut off the resources furnished by the inhabitants of Ogna and Panarwa , Khan Farid invaded chhappan and approached Chavand from the south " ( Annals and Antiquities of Rajasthan by James Tod , Vol I , P. 272 ) .
    20. वीरविनोद , ले . कविराजा श्यामलदास , भाग 2 , पृ . 232,233 . उदयपुर राज्य का इतिहास , ले . गौ . ही . ओझा , भाग 2 , पृ . 496 , 497 . राव पूंजाजी का पीढ़ीनामा , राजस्थान राज्य अभिलेखागार , बीकानेर , श्यामलदास - संग्रह , पत्रावली सं . 171 Chief and Leading Families in Fajputana , P. 4
    7 . 21 .
    24. वीरविनोद , ले . कविराजा श्यामलदास , भाग 2 , पृ . 463 उदयपुर राज्य का इतिहास , ले . गौ , ही ओझा , भाग 2 , पृ . 555 25. वही , वीरविनोद पृ . 465 उ . रा . का इतिहास , पृ .558
    28. राजप्रशस्ति , ले . रणछोड़ भट्ट , सर्ग 23 , श्लोक 1-3 | वीरविनोद , ले . कविराजा श्यामलदास , भाग 2 , पृ . 473-4741 उदयपुर राज्य का इतिहास , ले . गौ . ही . ओझा , भाग 2 , पृ . 578 । 29. उदयपुर राज्य का इतिहास , ले . गौ . ही . ओझा , भाग 2 , पृ . 5861 बड़वा रामसिंह की पानरवा के सोलंकियों की वंशावली पोथीं ।

    *संकलन सहयोगी:- बलवीर सिंह(नाथावत)सोलंकी ठि. बासनी (कुचेरा,नागौर)

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  41. क्या हैहयवंश अभी भी है? ये क्या सरनाम लगाते हैं? क्या क्षत्रिय समाज इनको मान्यता देता है?

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    1. माननीय और सम्माननीय भारतवंशी स्वाभिमानी क्षत्रिय महानुभाव हुकुम
      जय माँ भवानी जय श्री एकलिंगनाथाय नमः

      जी हाँ हुकुम
      हैहैयवंशी जो वास्तव मे कोई वंश ना होकर सूर्यवंशी क्षत्रियों की एक शाखा मात्र है किन्तु भूलवश अज्ञानता वश हम सभी इन शाखाओं को भी वंश के नाम से संबोधित करने लग जाते हैं जो असत्य है महानुभाव !!
      सूर्यवंशी क्षत्रियों की हैहैय शाखा जिसमें सहस्त्रबाहु नामक प्रतापी राजा हुआ था जिसने अपने शौर्य,पराक्रम के अभिमान स्वरुप क्षत्रिय शिरोमणि अंशावतार महर्षि परशुराम जी के पिता श्री जन्म्ग्द्नी ऋषि का घोर अपमान व हत्या कर दिया था उसी के परिणाम स्वरूप महर्षि परशुराम जी ने अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने हेतु हैहैयशाखा (हैहैयवंशी क्षत्रिय) के उस कालखण्ड में पुर्ण अस्तित्व मे रहे 21 राज्यों/परगनो के क्षत्रिय वंशजो को समूल समाप्त कर दिया था !!
      भ्रमवश भूलवश अज्ञानता वश हम सभी इन शाखाओं के क्षत्रियों को नष्ट करने को भी पृथ्वी के समस्त क्षत्रियों का 21 बार नाश करना,समाप्त करना,वंश खत्म कर दिया जाना कहते हैं या ऐसा मान लेते है !!
      जबकि यदि 21 बार पृथ्वी पर से समस्त क्षत्रियों का संहार कर दिया था तो फिर सूर्यवंशी भगवान श्री रामचन्द्र जी ,मिथिलेश महाराज जनक इत्यादि सहित अन्य क्षत्रिय राजा महाराजा जो महर्षि परशुराम जी के कालखण्ड में ही उनके समकालीन थे वह क्यों, कैसे बचें रह गये थै इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिलाया !!
      महानुभाव हुकुम अब सुनियेगा कि एक बार अधर्म करके ऋषि जन्म्ग्द्नी की हत्या करने के पश्चात यह हैहैयवंशी क्षत्रिय यहीं तक नहीं रुके इनमें से कुछ बच निकले जो अपने आप को महर्षि परशुराम जी के क्रोध से बचाने हेतु जंगलों में गुफाओं में, कंदराओं में छुप गये थे और इस प्रकार बचे रह गए किन्तु काफी समय तक ऐसी जगहों पर छुपे रहने व क्षत्रिय क्रियाकलापों से धर्म से विमुख दुर रहने पर अपने मूल स्वरूप से भटक गये मुल कर्म को भूल गए थे जो अब अपने जीवनयापन हेतु अन्य उप्लब्ध कार्य कर्म को करने लग गये थे !!
      ऐसा भी माना जाता है कि महर्षि परशुराम जी को भी यह ज्ञात हो गया था कि कुछ हैहैयवंशी शाखा के क्षत्रिय बच गए हैं जिनको महर्षि ने श्राप दिया था कि तुम सदैव अपने वास्तविक कर्म को भूल जाओगे अपने धर्म से भी विमुख हो जाओगे और आज ऐसा हि हो भी रहा है !!
      वर्तमान में यह हैहैय शाखा के क्षत्रिय वंशी लोग टांक, कलाल,सुवालका,जायसवाल दारुवाला इत्यादि अटक के साथ अपना जीवनयापन कर रहे है हुकुम !!

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  42. Very informative blog.......nice work Awantika.....

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  43. Very very useful and interesting
    Jai rajputana Jai maa bhavani Jai shree ram

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  44. हुकुम वीर साहब आप हमें इतिहास से रूबरू कराने का कष्ट करे हुकुम 👉 बघेल खण्ड के इतिहास में बरग्राही उपाधि से विभूषित नायक पंचम सिंह परिहार के पूर्वजों के बारे में जानकारी प्रदान करे और हमे इतिहास से परिचय कराये मान्यवर हुकुम 🙏

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  45. सोलंकी ठाकुर चौहान से बडे़ होते हैं

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    1. दोनों ही एक ही माता-पिता की संतान हैं एवं एक-दुसरे के पूरक और सहोदर भाई-भाई होते हैं अतः कोई बड़ा छोटा नहीं है दोनों एक ही होते हैं!!

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  46. वृहद भारतीय इतिहास को सुनियोजित षडयंत्र पुर्वक नष्ट-भ्रष्ट करके "आर्यों-अनार्यो-द्रविड़" के मध्य गहरी खाई खोदने के तथाकथित इतिहासकारों के लिखे इतिहास का अन्त करता आलेख:--
    साभार- "अखण्ड भारतवर्ष महासंघ"- महा'अभियान
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    उत्तर प्रदेश...
    वह उत्तर प्रदेश जिसकी सीमा के अंदर त्रेतायुग की अयोध्या आती है,द्वापरयुग की मथुरा आती है और सारे युग-युगांतर से प्राचीन नगरी काशी आती है।उसी प्राचीन पवित्र धरा के बागपत का एक छोटा सा गांव सिनौली आज विश्व के सारे इतिहासकारों के लिए आश्चर्य का विषय बना हुआ है। कारण यह कि दो वर्ष पूर्व हुए उत्खनन में वहाँ भूमि से कांसे-तांबे के कीलों से बने रथ और तलवारें आदि मिली हैं।

    कार्बन डेटिंग पद्धत्ति से हुई जांच उन्हें 3800 वर्ष प्राचीन बताती है। अर्थात ये चीजें 1800 ईस्वी पूर्व की बनी हुई हैं। रथ का डिजाइन बता रहा है कि उसमें घोड़े जोते जाते होंगे। उस छोटे से हिस्से में हुई खुदाई से मिली चीजें प्रमाणित कर रही हैं कि तब इस क्षेत्र में एक अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न विकसित लड़ाकू सभ्यता थी।
    मजेदार बात यह है कि हमारे यहाँ इतिहास की किताबों में पढ़ाया जाता है कि भारत में रथ और घोड़े बाहर से आर्यों के साथ आये थे और आर्य भारत में पश्चिम से सिंधुघाटी सभ्यता को उजाड़ कर आये। सिंधु घाटी सभ्यता का समापन काल लगभग 1000 ईस्वी पूर्व का बताया जाता है,अर्थात लगभग उसी समय भारत में आर्य आये।
    "आर्यों के मूल स्थान के सम्बंध में भी यूरोपियन्स और भारत के कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने खूब भ्रम फैलाया है। उन्हें मध्य एशिया,हंगरी,डेन्यूब घाटी,दक्षिण रूस,आल्प्स पर्वत,यूरेशिया,बैक्ट्रिया और जाने कहाँ-कहाँ से आया बताया गया है। प्रयास यह सिद्ध करने का था कि आर्य कहीं के भी हों भारत के नहीं थे। इसके लिए मैक्समूलर,गौइल्स,जे.जी. रोड,मेयर,पिग,रामशरण शर्मा,रोमिला थापर और जाने किस-किस ने अपनी 'मनगढ़ंत थ्योरी' से आर्यों की उत्पत्ति के सम्बंध में रायता फैलाया है।" आर्यों के भारत आने के समय को लेकर भी अलग-अलग दावे किये गए हैं पर अधिकांश इतिहासकार 1500 ईस्वी पूर्व पर एकमत हैं।

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  47. अब सिनौली में इसके लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व के तीन-तीन रथों का मिलना इतिहास के षड्यंत्रों को नंगा कर रहा है।
    आजादी के बाद गढ़ा गया भारत का इतिहास शायद आधुनिक युग में विश्व का सबसे 'मूर्खतापूर्ण षड्यंत्र' है। चंद विदेशी सिक्कों से अपनी कलम बेच चुके फर्जी इतिहासकारों ने अपने इतिहास को जिस तरह निर्दयतापूर्वक विकृत किया वह बड़ा ही घिनौना है। आर्यों को बाहर से आना और यहाँ के मूल निवासियों को दास बनाने जैसे समाज में विद्वेष फैलाने वाले दावों से समाज को खंडित करने का जो प्रयास इन विदेशी शक्तियों ने किया वह बताता है कि "भारत के प्राचीन गौरव को कलंकित करने का षड्यंत्र कितना शक्तिशाली था।"
    आपको जान कर आश्चर्य होगा कि पश्चिमी विद्वानों ने आर्यों को आक्रांता सिद्ध करने के लिए कैसे-कैसे हास्यास्पद तर्क गढ़े हैं। उदाहरण देखिये- सीरिया के पास बोगजकोइ नामक स्थान पर हुई खुदाई में लगभग 4000 वर्ष प्राचीन संस्कृत के कुछ अभिलेख मिले जिनमें इंद्र, सूर्य, मरुत आदि देवताओं के नाम हैं। इस आधार पर अंग्रेज इतिहासकारों ने यह दावा कर दिया कि आर्य वहीं मध्य एशिया से निकल कर भारत आये। जबकि इसका अर्थ यह निकलना चाहिए कि भारतीय वैदिक आर्यों का प्रसार ईरान-सीरिया तक था,क्योंकि इसके अनेक साहित्यिक साक्ष्य मौजूद हैं।
    सभ्यताओं के विमर्श में स्वयं को बड़ा सिद्ध करने के दो ही मार्ग होते हैं। या तो स्वयं का इतना उत्थान करो कि बड़े हो जाओ, या जो बड़ा है उसे किसी भी तरह छोटा सिद्ध कर दो। यूरोपियन्स ने स्वयं को सनातन से बड़ा दिखाने के लिए दूसरे रास्ते को अपनाया।

    "भारत की प्राचीन शिक्षा-सभ्यता-संस्कृति इतनी विकसित और शक्तिशाली थी कि उसके समक्ष यूरोप का अंधा इतिहास कहीं खड़ा ही नहीं हो सकता था। सो उसे छोटा सिद्ध करने के लिए आर्यों को बाहरी और भेदभाव करने वाला बताया गया। पर सत्य को षड्यंत्रों से नहीं मारा जा सकता।"
    सिनौली में मिले साक्ष्यों ने आर्यों को लेकर गढ़ी गयी सारी पुरानी थ्योरी को बकवास सिद्ध दिया है। इससे यह दावा स्वतः ही समाप्त हो जाता है कि आर्य बाहर से आकर सिंधु घाटी सभ्यता के निवासियों से लड़े और उनको पराजित कर के भारत में स्थापित हुए। इससे यह सिद्ध होता है कि 'आर्य-द्रविड़' द्वंद वस्तुतः मूर्खतापूर्ण सिद्धांत है,सच यह है कि सिंधुघाटी सभ्यता और प्राचीन वैदिक सभ्यता दोनों एक ही समय में फल फूल रही दो अलग सभ्यताएँ थीं।
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    ✍ वस्तुतः यह सब -'वृहद भारतीय इतिहास'- के साथ हुए सुनियोजित षड्यंत्र की समाप्ति का प्रारम्भ है।

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  48. || लव की वंशावली ||
    महाराज लव की यह वंशावली बडगूजरों के बढ़वा गिरीवर सिंह
    एवं बाबू सिंह गांव- मायला जिला - करौली ( राजस्थान) के
    अभिलेखागार से संकलित है |

    श्री राम- लव - रामकुमार - अजय कुमार - इंद्रासन- किशनसेन - बलभद्रसेन - देवदत्त - श्री दत्त -
    विजयदत्त - सूत्रसेन - उदयसेन - सूर्यसेन - वीरचक्र - देवचक्र - सिंहभोज - करमदेव - श्री देव - हरिदेव - नरपाल - सूर्य पाल - रामभोज - सुभयचक्र -
    पृथ्वीदेव - रामदेव - जगराज - जयराज - भानदेव - गणराज - तीरथराज - गृहराज - भानदेव - सोमदेव - आमराज - नैभंग - भीमदेव - छत्रदेव - जगदेव -
    मणिराज - कोसलराज - क्षेमराज - माणिकपाल - दिव्यराज - जगतराज - भोजराज - सहनदेव
    - रामप्रताप - पुरंजय - जयराज - सेमदीप -
    अभयदीप - मनकराज - वीरनारायण - श्री नारायण -
    कृष्णदेव

    कृष्णदेव - क्षत्रिय राजपूत वंश भास्कर ( ठाकुर मोहन सिंह चौहान) एवं क्षत्रिय वर्तमान ( अजित सिंह एवं प्रह्लाद सिंह परिहार) के अनुसार राजा महाभारत कालीन राजा कृष्णदेव एक कुशल प्रशासक एवं रणकौशल युद्ध कौशल में प्रवीण थे
    अतः राजा वृह्दबल ने इन्हें लोहथम्ब की उपाधि से सम्मानित किया था | राजा वृह्दबल कुश के वंशज थे और महाभारत युद्ध में कौरवों के तरफ से युद्ध में लड़ते हुये अभिमन्यु के हाथों वीरगति को प्राप्त हुये थे |
    बाद में राजा कृष्ण देव का वंश लोहथम्ब के नाम से प्रसिद्ध हुआ |
    इस वंश के लोग हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप का भरपूर साथ दिया था और मुगलों के सामने ऐसे डट गये जैसे लोहे का खम्मा जमीन में गड जाता है | इस वंश के करीब 30 लोगों ने अपने जीवन का बलिदान दिया था अतः श्री महाराणा प्रताप जी ने इन्हें लोहथम्ब के नाम से संबोधित किया था | बाद में इस वंश के लोग राजस्थान से निकलकर बिहार के भोजपूर में जाकर बस गये और बाद में लोहथम्ब से लोहतमिया कहलाने लगे | आज ये उत्तर प्रदेश एवं बिहार के गंगा के तटवर्ती क्षेत्रों में करीब 80 गांवों में फैले हुये हैं |

    कृष्णदेव - राजदेव - शिवदेव - सिंधुराज - हिंदराज
    हिंदराज ( कनकसेन ) - पंजाब से आकर गुजरात विजय की |
    कनकसेन- दीपसेन
    दीपसेन - बड़गूजर वंश की स्थापना की |

    दीपसेन - दूबनाथ - जयरथ - सौदन - सहज - शालिभान - चंद्र - त्रिलोकचंद्र - गोपीचंद्र - दानेश्वर - रोहतास - तावट जी - तावट जी के पुत्रों से
    राजौरा, सिकरवार , मढाढ , खंडाला ,
    रायजादा , मुंझवाल , कनौजिया एवं पोहकरना बडगूजरों की शाखा चली |

    कनकसेन - महामदनसेन - सदन्तसेन -
    विजयसेन - पद्मादित्य - सेवादित्य - हरादित्य
    सूर्यादित्य - सोमादित्य - शिलादित्य - सम्पादित्र
    गुहादित्य - गुहिल ( गहलोत ) वंश की स्थापना की |

    गुहादित्य - नागादित्य - भागादित्य - दैवादित्य - आसादित्य - कालभोज ( बप्पा रावल)
    कालभोज ( बप्पा रावल) - इन्होंने ने सिसोदिया वंश की रावल शाखा की स्थापना की | जो रावल रतन सिंह तक चला |

    हम्मर सिंह- इन्हें (विषम घाटी पंचानन ) यानि संकट के समय सिंह के समान कहा गया था |
    रणकौशलता के कारण हम्मर सिंह जीने राणा की पदवी धारण की और यहाँ से सिसोदिया वंश की राणा शाखा का प्रारंभ हुआ | इसी राणा शाखा में आगे चलकर राणा कुंभा, राणा सांगा और राणा प्रताप जैसे शूरवीरों का जन्म हुआ |
    सिसोदिया वंश की राणा शाखा मेवाड़ के वर्तमान राणा महेन्द्र सिंह मेवाड़ जी से आकर मिलती है |

    || जय श्री राम ||

    -


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    1. bhai ji kya aap apna number share kar sakte hai mujhe kuch jankari chahiye thi

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  49. सिसोदिया वंश की राणा शाखा का प्रारंभ विर हम्मीर जी से हुआ था | इन्होंने राणा की पदवी धारण की थी |

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    1. महोदय वंश एकमात्र होता है सुर्यवंश जिसकी कुल 70 शाखाऐं हैं और उनमें से एक गुहिलशाखा से 02 उप शाखा/प्रशाखाओं का चलन हुआ जो क्रमश इस प्रकार से है
      ०१ प्रथम वरिष्ठ प्रशाखा जिसे राजस्थानप्रदेश में कही-कहीं वडेरा भी कहा जाता है
      सिसा पिने से सिसोदिया कहलाये जाते हैं रावल पदवीं साफा शिरोधार्य, प्रथम शासक महारावल कालभोज (बप्पा रावल)७३३ से ७५३ तक शासन करने के पश्चात् अपने उत्तराधिकारी को राजकार्य सोंचकर सन्यास लेकर भक्ति साधना मार्ग पर अग्रसर हो गये थे,अंतिम शासक रावल रतनसिंह सिसोदिया १३०३ तक
      इसके पश्चात १३२६ में इसकी द्वितीय प्रशाखा/उपशाखा कनिष्क शीश दान करने से शिशोदिया का प्रारंभ हुआ राजस्थान प्रदेश में कहीं-कहीं इसे ननेरा नाम से भी संबोधित किया गया है हुकूम
      रण कौशल होने पर राणा पदवीं पगड़ी शिरोधार्य जो आज मेवाड़ी पगड़ी के नाम से प्रचलन में हैं ।
      प्रथम शासक राष्ट्र धर्म व कर्म तथा समाज की रक्षार्थ बारम्बार शीश दान करने से शिशोदिया क्षत्रिय व बहुलता पर नवीन नामकरण शिशोदा मेवाड़ के शासक महाराजा लक्ष्मण सिंह जी शिशोदिया (लक्ष्या सिंह जी) के पुत्र अरी सिंह जी Ari sinh के पुत्र हम्मीर सिंह शिशोदिया शिशोदा 'मेवाड़' जो युद्ध क्षेत्र में शत्रुओं का सिंह के समान संहार करने पर "विषमघाटी पंचानन" की उपाधि धारक एवं प्रथम महाराणा पदवीं धारक महाराणा हम्मीर सिंह शिशोदिया शिशोदा एवं अंतिम वर्तमान महेन्द्र सिंह जी शिशोदिया महाराणा 'मेवाड़' विराजमान हैं महानुभाव हुकूम ।।
      ✍शिशोदा 'मेवाड़'
      कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया शिशोदा 'मेवाड़'
      +91 9680759268
      "अखण्ड भारतवर्ष महासंघ"- महा'अभियान

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  50. Sir, bihar k chapra jile me kushvanshi kshatriya hai jinka gotra parasar hai aur kuldevi vandevi(sita ji) hai , ye suryavansha k antargat aate hai.

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    1. बिल्कुल सही कहा है हुकूम आपने सत्य कथन
      आभार और अभिनन्दन है आपका हुकूम

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  51. Hkm Tank Rajput ki kuldevi ke bare mein janakri avgat karwaye plz...

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  52. किर्पया ओड राजवंश के बारे में भी बताए ओड राजवंश सूर्यवंश की शाखा है 🙏

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    1. जी हुकूम सूर्यवंशी क्षत्रिय इश्वाकु कुल की कुल 70 शाखाओं में से एक ओड़ शाखा । प्रथम शासक उत्कल हुऐ जिनके नाम पर ओड़ राजवंश का प्रादुर्भाव हुआ जिन्होंने अपने नाम पर उत्कल प्रदेश नामकरण कर ओड शाखा राजवंश की स्थापना किया जिसे वर्तमान समय में उड़ीसा कहा जाता है और आज की राष्ट्र विरोधी विधर्मी सेक्युलर वामपंथी मानसिकता वाली खांग्रेसी पार्टी व इनकी सहयोगी टोली ने अपनी स्वार्थी व गंदी राजनीति के चलते अलग-अलग प्रदेशों में ओड शाखा को ST/SC/OBC कैटिगरी में रखकर वास्तविक इतिहास को तोड़ मरोड़ कर असत्य साहित्यिक लेखन द्वारा वर्तमान पीढ़ी को शिक्षा व रोजगार एवं संरक्षण संवर्धन के अभाव में दिग्भ्रमित कर समाज की मुख्य धारा से अलग-थलग कर दिया गया है ।।

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  53. सर क्या मुझे काल्होद वंश के बारेमे कुछ बता सक्ते हे

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  54. पन्नाधाय गुजरी नहीं क्षत्राणी थी
    जुलाई 1521ई. में पन्ना ने चन्दन नामक पुत्र को जन्म दिया। 21 अगस्त 1521ई. को #रानी_कर्णावती ने #राजकुंवर_उदयसिंह को जन्म दिया। बसंत पंचमी 1536ई. को अपने पुत्र चन्दन का बलिदान देकर उदयसिंह की रक्षा की।
    #पन्नाधाय एक पुत्र बलिदानी
    #क्षत्राणी....पन्ना #गागरोण(झालावाड़) के शासक #शत्रुसाल_सिंह_खींची (#चौहान ) की बेटी थी।
    पन्ना का विवाह #चित्तौड़गढ़ निवासी वीर योद्धा #समर_सिंह_सिसोदिया से हुआ था।
    राजा शत्रुसाल 6000 योद्धाओं के साथ राणा सांगा की ओर से खानवा के युद्ध मे बाबर के विरूद्ध लड़े और वीरगति प्राप्त की...
    गागरोण की इस वीर परम्परा देख कर पन्ना खींची को महाराणा #उदय_सिंह_जी की धाय माँ नियुक्त किया गया।
    बालक उदय सिंह को लेकर पन्नादेवी केवल #_कुम्भलगढ़ ही नहीं अपितु #_देवगढ़_प्रतापगढ़_डूंगरपुर आदि स्थानों पर गई, मगर किसी ने संरक्षण नहीं दिया ...
    अंत मे कुम्भलगढ़ के सरदार #आशाशाह_देवपुरा ने सहर्ष संरक्षण दिया।
    और भेद ना खुले इसलिए उदय सिंह को कुम्भलगढ़ छोड़कर पन्नादेवी खींची स्वयं चित्तौड़गढ़ आ गई।
    बाद मे पन्ना के साक्ष्य व प्रमाणिकता सिद्ध करने पर उदय सिंह को राजगद्दी पर बैठाया गया।
    गागरोण में आज भी राजा शत्रुसाल व पन्ना खींची के वंशज हैं व इसी तरह चित्तौड़गढ़ में समर सिंह के वंशज हैं .....
    पन्ना खींची के पीहरपक्ष व ससुरालपक्ष दोनों की वंशावली प्राप्त की जा सकती हैं, दोनों राजपूत हैं।
    फिर भी पता नहीं क्यों ? लेखक इन्हें क्षत्राणी की बजाय गुर्जरी लिख रहे हैं....
    शोध करने के बजाय घटिया जातिवाद फैला रहे हैं।
    -#ठाकुर ईश्वर सिंह मढ़ाढ़...

    •••
    उदय सिंह का जन्म 1522 ई. मे बूंदी ( ननिहाल ) में हुआ। उदय सिंह के राज्याभिषेक (1537) के समय उम्र 15 वर्ष रही होगी,1536 में विक्रमादित्य की बनवीर द्वारा हत्या करते समय उदय सिंह की आयु 14 वर्ष व 1533-34 मे माँ #_कर्मावती द्वारा #_जौहर के समय पन्नादेवी को सौंपते समय 11वर्ष रही होगी....
    यह उम्र उनकी दूध पीने की नहीं थी...
    पन्ना को उनकी देख रेख व सुरक्षा का जिम्मा था, यह कार्य किसी विशिष्ट पारिवारिक व योग्य महिला को सौंपते ना की किसी साधारण #गुर्जरी को...
    पन्ना खींची (चौहान ) व कर्मावती हाड़ा (चौहान) एक कुल की थी अतः ये कार्य उन्हें सौपा गया।
    -#ठाकुर शिवनाथ सिंह हाड़ा (कोटा )

    पन्ना क्षत्राणी थी ना की #गुर्जरी --
    1- गौरीशंकर ओझा
    2- गोपीनाथ शर्मा
    3- श्यामलदास
    4- जगदीश सिंह गहलोत and
    5- पी. के. ओंक
    6- डॉ. हुकम सिंह भाटी
    7- सुर्जन सिंह झाझड़
    8- डॉ. कृष्ण सिंह बिहार
    9- डॉ. शम्भू सिंह मनोहर
    10- गोवर्धन शर्मा
    11- अरविन्द सिंह मेवाड़
    12- डॉ. अख्तर हुसैन निज़ामी
    13- कर्नल टोड।
    □ शिशोदा 'मेवाड़'
    क्षत्रिय एकता जिंदाबाद
    जय राजपुताना
    "अखण्ड भारत वर्ष महासंघ"- महा'अभियान

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  55. *कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया शिशोदा 'मेवाड़'*
    राजस्थान प्रदेश,*'राजपुताना'*.अखण्ड भारतवर्ष
    सम्पर्क एवं वाट्सप -
    9680759268 @ शिशोदा 'मेवाड़'
    9461641650 अखण्ड 'भारतवर्ष'
    ----------------------------------------------------------
    B.COM FOUNDATION
    लेखक/समीक्षक/विश्लेषक संघठनात्मक 'विशेषज्ञ'
    सह सम्पादक- 'आस्था राजपुत्र' हिन्दी/मासिक पत्रिका

    *'विशेषज्ञता' क्षेत्र ___*
    ----------------------------------------------------------
    लेखन क्षेत्र ___
    गुण धर्म कर्म संस्कृति संस्कार,,
    शिक्षा सभ्यता साहित्य परम्परा
    समिक्षा/विश्लेषण क्षेत्र ___
    वर्तमान परिदृश्य दिशा व दशा एवं करने योग्य कर्म सार्थकता पुर्ण कर्तव्य एवं दायित्वों का उचित निर्धारण ग्रहण निर्वहन सुनिश्चित करना/करवाना
    *'दक्षता/कुशलता/कौशल'*
    (०१)- वैदिक शास्त्रोंक्त वर्णित अष्ट मण्डल सिद्धांत आधारित संघठनात्मक कार्य पद्धति
    (०२)- संघीय अनुसाशनात्मक कार्यप्रणाली
    (०३)- निर्माण एवं निर्वहन तथा निर्वाण रणजीत/रणखेत
    (०४)- शस्त्र-शास्त्रो का ज्ञान संबंधी अध्ययन-अध्यापन-अभ्यास वर्ग,संस्कार शालाओं शिविरों का आयोजन
    (०५)- हिम्मत साहस हौंसला,धैर्य संयम आदि नैसर्गिक मूल्य
    (०६)- सभ्य शिष्ठ भाषा शैली,मर्यादित आचरण व दिनचर्या,नशामुक्त जीवनशैली
    (०७)- अध्ययन रत,सक्रिय-सकारात्मक,दृढ़ प्रतिज्ञ/संकल्पीत

    अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त सामुहिक संघठनात्मक सार्थक प्रयासों के क्रम में कार्यरत as A
    स्वयं सेवक/साधक/प्रशिक्षक/प्रचारक
    संघीय *'अनुसाशनात्मक'* कार्य प्रणाली,वैदिक शास्त्रोक्त वर्णित *'अष्ट मण्डल सिद्धांत'* आधारित संघठनात्मक कार्य पद्धति,समानता व चरणबद्ध आधार
    *"अखण्ड भारतवर्ष महासंघ"- महा'अभियान*
    ----------------------------------------------------------
    सनातन *'क्षत्रियत्व'* धर्म हिन्दुत्व *'क्षात्र'* कर्म,*क्षत्रियोचित* गुणों एवं हिन्दुत्व की वैदिक शिक्षा-सभ्यता-साहित्य,संस्कृति-संस्कारों,वास्तविक इतिहास सत्य शुद्ध प्रासंगिक रीति-नीति,परम्पराओं मान्यताओं का "संरक्षण संवर्धन पुनर्स्थापना,प्रसारण,री-डवलपमेंट,सशक्तिकरण जागरण एवं एकीकरण महासंघ"- *महायज्ञ*

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  56. समय-समय पर संघठनात्मक रुप से प्रेषित
    "अनिवार्य संघठनात्मक गतिविधि"
    के अन्तर्गत सभी माननीय महानुभावो को अनुरोधित किया जाकर अनिवार्य पालनार्थ सुनिश्चित प्रस्तावित व प्रशसंनिय हैं हुकूम
    सम्पूर्ण राष्ट्र में स्थानीय क्षेत्रों में नेतृत्व करते हुए पुर्ण समर्पित सार्थक संघठनात्मक सहयोग प्रदान करवाने मे सक्षम सामर्थ्यवान निम्नलिखित पात्रताधारी रक्त पवित्र स्वाभिमानी क्षत्रिय
    (01)- न्यूनतम 35 वर्ष की उम्र अनिवार्य पात्रता वाले
    (02)- न्यूनतम 12वीं उतीर्ण क्षत्रिय साथी महानुभावों
    (03)- व्यसनमुक संघठनात्मक सक्रिय क्षत्रिय साथी महानुभाव
    (04)- संघीय अनुसाशनात्मक कार्यप्रणाली से पुर्व परीचित क्षत्रिय साथी
    (05)- संघठनात्मक रुप से प्रदत्त दिशा-निर्देशों का अनिवार्यतः पालन करने में सक्षम क्षत्रिय साथी
    (06)- प्रदत्त कर्तव्य एवं दायित्वों का उचित सार्थक निर्धारण ग्रहण निर्वहन सुनिश्चित कर चुके क्षत्रिय साथी
    (07)- राष्ट्रहित धर्महित को सर्वोपरि मानकर पुरुषार्थ कर्मवान क्षत्रिय एवं सामाजिक साथी
    (08)- संघठन संविधान की मर्यादा व गरिमा सदैव अक्षुण्ण बनाये रखने वाले क्षत्रिय साथी
    (09)- संघठन परिवार से वास्तविक धरातल पर दृढ़ प्रतिज्ञ/संकल्पीत होकर जुड़े क्षत्रिय साथी
    (10)- वर्तमान राष्ट्रीय लक्ष्य एवं उद्देश्यों की प्राप्ति में दक्ष और प्रविण क्षत्रिय साथी
    (11)- प्रत्येक परिस्थितियों में ज्ञान विद्या बुद्धि कौशल विवेक का उपयोग करते हुए संलग्न क्षत्रिय साथी
    (11)- प्रत्येक परिस्थितियों में हिम्मत साहस हौसला धैर्य और संयम का उपयोग करने वाले क्षत्रिय साथी

    सम्पूर्ण भारतवर्ष में संयुक्त सामुहिक संघठनात्मक सार्थक प्रयासों के क्रम में वास्तविक धरातल पर
    वैदिक शास्त्रोंक्त वर्णित अष्ट मण्डल सिद्धांत आधारित

    शिक्षा साहित्य सभ्यता-संस्कृति-संस्कारों एवं
    विभिन्न तकनीकी प्रायोगिक थ्योरीटीकल कौशल तथा
    शारीरिक बौद्धिक मानसिक आध्यात्मिक दक्षता और
    धार्मिक सामाजिक सांस्कृतिक सुधारों व आयोजन
    आर्थिक मजबूती के सुधारात्मक उपायों
    संबधित
    शस्त्र-शास्त्रो ज्ञान दक्षता संबंधीत
    अध्ययन अध्यापन अभ्यास मे
    अभ्यास वर्ग एवं संस्कार शालाओं के आयोजन में
    धर्म प्रवचन एवं आचरण दिनचर्या में सम्मिलित क्रियाकलापों में
    राष्ट्र धर्म व कर्म तथा समाज की रक्षार्थ उन्नति व विकास हेतु
    एकता-अखंडता मज़बूती प्रगाढ़ता हेतु सार्थक प्रयासों के क्रम में
    महासंघ महा'अभियान द्वारा संचालित 'महायज्ञ' में नेतृत्व करते हुए पुर्ण शक्ति सामर्थ्य क्षमता सार्थकता अनुसार नेतृत्व करना चाहते हैं
    स्वयं सेवक साधक प्रशिक्षक प्रचारक,भामाशाह, आयोजन प्रचारण,संचालन संपादन निष्पादन इत्यादि सहित विभिन्न श्रेणियों में गतिविधियों में
    प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से सार्थक समर्पित सहयोग मार्गदर्शन आशीर्वचन प्रदान करवाना चाहते हैं
    कृपया प्रचलित सर्वमान्य माध्यम से सम्पर्क कीजियेगा हुकूम ।।
    @ शिशोदा 'मेवाड़'
    कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया शिशोदा 'मेवाड़'
    9680759268
    राष्ट्रीय महासचिव/संस्थापक सदस्य/प्रमुख सूत्रधार
    अखण्ड भारतवर्ष 'आर्यावर्त' प्रखण्ड
    लेखक/समीक्षक/विश्लेषक 'संघठनात्मक विशेषज्ञ'
    सह सम्पादक- 'आस्था राजपुत्र' हिन्दी/मासिक पत्रिका

    अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चरणबद्ध आधार द्वारा संयुक्त सामुहिक संघठनात्मक सशक्तिकरण जागरण एवं एकीकरण का "सार्थक प्रयास"

    "अखण्ड भारतवर्ष महासंघ"- महा'अभियान
    ---------------------------------------------------------
    (द्वारा अखिल भारतीय क्षत्रिय सेना)
    पंजीकृत राष्ट्रीय स्वयं सेवी सहायतार्थ कार्यरत क्षत्रिय एवं सामाजिक संघठन (नाॅन पॉलिटिकल)

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  57. सभी क्षत्रिय राजपुत्र महानुभावों को विनम्र सूचित एवं निवेदित किया जाता हैं कि अब तक हमारे द्वारा यहाँ उपलब्ध करवाई गई सभी जानकारियां हमारे राष्ट्रीय लक्ष्य एवं उद्देश्य का मातृ एक पूर्वोत्तर बैस ओर आधार भर हैं जिससे आप सभी माननीय महानुभावों को हमारे बारे मे जानने व समझने मे सहायता मिल पाये हुकूम ।।
    अब हम मूल विषय पर क्रमानुसार लिखना आरंभ करते है जिसके लिये हमे ब्लोगर पोस्ट पर आना पड़ा अथवा वर्तमान समय में प्रचलित इस सोशल मीडिया माध्यमों का सहारा लेना पड़ा !!! कृपया आप सभी विषय क्रमानुसार को धैर्य पुर्वक पड़े और संबधित यथायोग्य यथोचित सार्थकता प्रदान करवावें हुकूम
    जय माँ भवानी जय श्री एकलिंगनाथाय नमः
    9680759268 @ शिशोदा 'मेवाड़'
    कुँवर हरीसिहँ शिशोदिया शिशोदा 'मेवाड़'
    प्रमुख सूत्रधार- अखण्ड आर्यावर्त प्रखण्ड
    अखण्ड रतवर्ष महासंघ महा'अभियान
    अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त सामुहिक संघठनात्मक सार्थक प्रयासों के क्रम में चरणबद्ध समानता के आधार पर एक सार्थक पहल

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    1. "अखण्ड भारतवर्ष महासंघ"- महा'अभियान
      न्यूनतम 35 वर्ष आयु पुर्ण,12वीं कक्षा उतीर्ण,रक्त पवित्र स्वाभिमानी क्षत्रिय महानुभाव हुकुम जो
      (01)- स्थानीय क्षेत्रों में सक्रिय सकारात्मक नेतृत्वकर्ता के रुप में सर्वधर्म स्वराष्ट्र की अखण्डता मजबुती प्रगाढ़ता के लिये वास्तविक धरातल पर टीम सहित कार्यरत हों,
      (02)- सर्वधर्म की शिक्षा सभ्यता और संस्कृति संस्कारों साहित्य एवं सत्य शुद्ध प्रासंगिक प्रमाणित वास्तविक इतिहास के लिए निजि शोधकर्ता के रुप में निज प्रदेश स्तरीय किसी भी संस्था समूह के माध्यम से सुधार विकास उन्नति के लिए टीम सहित कार्यरत हों,
      (03)- स्वरोजगार व्यापार व्यवसाय,कृषि व कृषि आधारित समस्त उद्योगों तथा पशुपालन सहित सभी सेवा कार्य एवं इनके विधिवत विकास,सुधार,फैलाव-विस्तार हेतु दृढता से निज प्रदेश स्तरीय टीम सहित कार्यरत हों,
      (04)- क्षत्रिय सामाजिक धार्मिक सांस्कृतिक शारिरीक आर्थिक बौद्धिक मानसिक आध्यात्मिक मजबुती डवलपमेंट सुधार विकास फैलाव विस्तार के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर दृढ़ संकल्पीत होकर कार्यरत हों,कार्य कर सकते हों,
      (05)- महासंघ संधिधान की गरिमा व मर्यादा बनायें रखते हुए कठोर अनुशासनात्मक दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए टीम वाइस संघठनात्मक गतिविधियों कार्यों योजनाओं का स्थानीय स्तर व क्षेत्रों में सफल संचालन संपादन निष्पादन आयोजन करवाने में पुर्ण सक्षम दक्ष प्रवीण हों
      कृपया केवल वही क्षत्रिय महानुभाव ......
      "अखण्ड भारतवर्ष महासंघ"- महा'अभियान
      से संघठनात्मक रुप से जुड़ने हेतु सम्पर्क कर सकते है महोदय हुकुम
      9680759268 @ शिशोदा 'मेवाड़'
      कुंवर हरीसिहँ शिशोदिया शिशोदा 'मेवाड़'
      प्रमुख सूत्रधार- अखण्ड आर्यावर्त प्रखण्ड

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