Tuesday, 7 May 2019

मंज़िल अब दम तोड़ चली | Mnjil ab dam tod chli

  मंज़िल अब दम तोड़ चली  

सूनी खिड़की पग दौड़ चले ,
ये वही आँगन जहाँ कल कभी न लौट चले। 
ये वही राहे जहाँ मिलती थी मंजिले मेरी ,
ये वही डगर ,
मैं वही पथिक 
पर मंज़िल कुछ रूठी-रूठी सी हैं। 
ये वही घोसला पर पक्षी अब और कही ,
ये वही आसमा पर तारे अब और कही ,
ये वही जहाँ पर बासिन्दे अब और कही ,
ये वही शामे पर महफ़िल अब और कही ,
मैं वही पथिक 
पर मंज़िल अब खोई-खोई सी हैं। 
ये वही जहाँ हैं जहाँ से हम हैं ,
ये वही आँखे जो तलाशती अपना जहाँ जो अब कहाँ हैं। 
वही कुछ दूर बाग पास है वही नदी 
पर धारा अब मुड़ी-मुड़ी सी है 
क्योंकि मंज़िल अब दम तोड़ चली हैं। 

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