कीर्तन
एक दिन का जिकर है जनक नन्दनी फूल लेने बगीचे को जाने लगी
एक दिन का जिकर है जनक नन्दनी
फूल लेने बगीचे को जाने लगी
संग में सब सखी थी मधूर तान से कोकिला राग से गीत गाने लगी
डाल पर एक बैठी हुई सुगनी राम सीता का वह शब्द दुहरा रही
बोली सुनकर सिया को बड़ा सुख हुआ
पास में सुगनी को बुलाने लगी
स्वर्ण के पिंजड़े बन्द करके उसे
बोली कैसे कहाँ राम पैदा हुए
राम पैदा अयोध्या में दशरथ के घर
आदि से अन्त तक की बताने लगी
हो गयी रात जाऊ पिया पास में
बोली सीता कि ऐसा तो होगा नहीं
पति बिना न गवाँरा मुझे देवी जी
सर पटक करके आँसू बहाने लगी
सुगनी गर्भ में बिना पति के मरी
ढूढ़ते ढूंढते उसको पति आ गया
ये पिया की दशा देख दिल में उसे
याद चिन्ता की दिल में जलाने लगी
प्राण आने लगे और जाने लगे
एक दिन का जिकर है जनक नन्दनी
फूल लेने बगीचे को जाने लगी।
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