सत्यावान और सावित्री की कहानी
एक राजा थे उनके सावित्री नाम की एक कन्या थी। वह कन्या बड़ी ही सुन्दर और अग्नि के समान तेज वाली थी। सावित्री धीरे - धीरे अपने पिता के घर बड़ी हुई तो राजा ने कन्या के योग्य वर की तलाश किया किन्तु उनको कन्या योग्य वर नहीं मिला तब राजा ने अपनी कन्या से कहा बेटी मुझे तुम्हारे योग्य वर नहीं मिल पा रहा है और ऐसी मान्यता भी है कि कन्या को मासिक आने से पहले उसके पैर पूज लेना ही उचित है अतः बेटी मेरी आभा से अब तुम्ही अपना वर ढूँढोगी राजा की आज्ञानुसार सावित्री और राजा की सेना साथ में वर की खोज के लिए चल दिये ढूढ़ते - ढूढ़ते जंगल में एक लकड़हारा लड़की काट रहा था। सावित्री बोली रथ को रोक दो अब सायद मेरी मंजिल मिल गयी है। सावित्री ने उनको निचे उतरने को कहा वो नीचे उतर कर आये सावित्री बोली मैं आपसे विवाह करना चाहती हूँ आपका नाम क्या है वो बोले मेरा नाम सत्यवान है मेरे माता - पिता दोनों अंधे है और उनका राजपाट भी छिन गया है। मै लकड़ी काटकर ही अपना गुजारा करता हूँ। सावित्री बोली जो भी है अब मैंने आपसे विवाह का निश्चय कर लिया है। ये कहकर सावित्री अपने महल को वापस चली आयी। यहाँ राजा के पास नारद देव जी बैठे हुए थे। राजा बोले क्या हुआ बेटी तब सावित्री बोली हे पिता श्री मैंने अपना वर ढूँढ लिया है। नारद जी बोले और सब तो ठीक है पर सत्यवान की आयु सिर्फ एक वर्ष की है। सावित्री बोली अब तो कुछ भी हो मैंने अपना निश्चय दृढ़ कर लिया है। तब राजा ने बड़े - बड़े विद्वान पंडितों को बुलवा कर विधि - विधान के साथ अपनी बेटी सावित्री का विवाह सम्पन्न कर वाया और बेटी सावित्री सत्यवान के साथ जंगल में रहने लगी और अपने अंधे सास , ससुर की सेवा बड़े आदर पूर्वक करने लगी। पर नारद जी की बताई हुई बात उनके मन में खटकती रहती। धीरे - धीरे समय व्यतीत होता गया और सत्यवान की मृत्यू के चार दिन शेष रह गये तब सावित्री ने कहा मै भी आपके साथ लकड़ी काटने चला करुगी। चौथे दिन सत्यवान पेड़ में लकड़ी काट रहे थे। तभी उनके सर पे दर्द हुआ और वह नीचे उतर आये। सावित्री से बोले मैं तुम्हारे पैर के ऊपर सिर रख कर लेटना चाहता हूँ और लेट गये। तभी यमदेव आये और बोले तुम हटो मैं इसको ले जाऊगा इसका समय पूरा हो गया है। सावित्री बोली आप मेरे पति को मत ले जाइये। तब यमदेव बोले जिसका समय पूरा हो जाता है उसे इस धरती से जाना ही पड़ता है। सावित्री ने कहा मुझे वरदान दो यमराज बोले मांगो मैं तुमको वरदान दूँगा। सावित्री ने कहा मेरे सास ससुर का राज्य वापस मिल जाये और उनको दिखने लगे और मेरे सौ पुत्र हो। यमदेव बोले ऐसा ही होगा और वरदान देकर चलने लगे तब सावित्री बोली महराज सुनिए आपने मुझे सौ पुत्रों का वरदान दिया है मगर मेरे पति को ले जा रहे हो मैं एक पतिव्रता स्त्री हूँ मेरे सौ पुत्र कैसे होंगे। तब यमराज जी ने सत्यवान के प्राण छोड़ दिये और कहा सती तुम जीती और मैं हारा। सावित्री अपना पति पाकर बहुत प्रसन्न हुई तथा उनके सास ससुर को दिखायी देने लगा और माँगे गये सारे वरदान पूर्ण हुए।
कहानी से शिक्षा
हमेसा अपने सतित्व पर अडिग रहना चाहिए तथा सावित्री जैसी नारी बनना चाहिए।
Nice
ReplyDeleteBest story
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