Thursday, 4 March 2021

कविता क्यों खंड खंड उत्तराखण्ड | उत्तराखण्ड पर कविता | Poem on Uttarakhand | Hindi Poem

 कविता 


 क्यों खंड खंड उत्तराखण्ड 


 क्यों खंड खंड उत्तराखंड
यह प्रकृति और मानव का द्वंद्व
यह मानव का ही क्रूर प्रयास
मानव की न बची कोई आस
प्रकृति का हो गया रौद्र अट्टाहास
साक्षात कलेजे के टुकड़ों का
अथाह जल में समाते देखना
कर गया जड़ पथराई आँखों को,
अब चूल्हे पर कुछ न सेंकना
सम्पूर्ण हुआ जीवन चक्र उनका
परब्रह्म से जन्मे,
परब्रह्म के द्वार पर,
हो गये परब्रह्म में लीन ।
ये मानव का ही घोर कृत्य,
हर जगह जो हुआ यमराज नृत्य
बिछड़ों को अब बस ताकते हैं लोग
क्या करें! न कर सकते सुख भोग
क्या करेंगे सुख भोग कर
उनके लिए जो न आ सकते हैं मरकर
इन खूबसूरत खामोश वादियों में
प्रेतात्माओं का विचरण,
पता नहीं अब कब चमके,
आशाओं की किरण,
खुश हो राक्षस मना रहे,
मानव का ये मरण,
चिड़िया भी अब भूल गई
अपनी वो ऊंची उड़ान |
चहुँ ओर त्राहिमाम मचा रहा,
कानों में गुंजता रुदन,
चीलों को भी भा रहीं,
मानव मॉस की सड़न |
लग रहा जैसे हो रहा,
द्रोपदी का चीरहरण,
तो अब कोई न दे सकेगा,
मरे हुए मानवों का विवरण,
एक मंदिर ही शेष रह गया,
अब मंदाकिनी धोएंगी उसके चरण ।
उन सैनिकों को शत् शत्‌ नमन,
जो दे गये हमको अमन,
देश के लिए कर कुर्बा अपनी जान,
रख गये सेना का मान,
कहाँ से यह अदम्य साहस लाये थे वो,
पीड़ितों के लिए बन देवदूत आये थे वो,
आपदा में ऐसा काम कर गये,
जगत में अमर अपना नाम कर गये |
अब शुरू पूजन हो गया,
शुरू मंत्रों का गुंजन हो गया,
पर कया मानव सुधरेगा ?
क्या यह द्वंद्व सुलझेगा ?
रे मानव! चेतता है तो चेत जा,
मानता है तो मान जा,
यदि फिर ये जलजला आयेगा,
इस बार सम्पूर्णता से डुब जायेगा,
फिर उठना मुश्किल हो जायेगा,
उठ गया तो फिर संभल न पाएगा,
सुलझा ले अभी ये द्वंद्व
यही थे मेरे शब्द चंद,
क्यों खंड खंड उत्तराखंड
यह प्रकृति और मानव का इन्द्र ।।



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