कानपुर
ब्रम्हांड का केंद्र
ब्रम्हांड का केंद्र , क्रांति की धरा , कर्मयोगियों की औद्योगिक नगरी , कमल के धनी साहित्यकारों की कर्मस्थली वाला गौरवशाली शहर है कानपुर। वह कानपुर जिसके रक्त की हर बूंद स्वतंत्रता संग्राम की अगुवाई करती है। वह कानपुर , जो आजाद हिंद फौज को पहली महिला कैप्टन लक्ष्मी सहगल देता है। वही कानपुर अब २२२ (222)साल का हो गया है जिसकी स्थापना २४ (24) मार्च १८०३ (1803) को हुई थी।
मूल नाम
सुप्रशिद्ध नगर कानपुर का नाम २० (20) बार बदला गया है। इसका मूल नाम 'कान्हपुर ' था। जन्माष्टमी के दिन पड़ी थी नींव ,इसलिए कहलाया कान्हपुर। १७७० (1770) में पहली बार गेब्रियल हार्पर ने CAWNPOOR कहकर सम्बोधित किया। इसका दस्तावेजों में जिक्र मिलता है। १९४८ (1948)में यह KANPUR कहा जाने लगा।
इन नामों से भी जाना गया : कान्हपुर , कर्णपुर , कन्हैयापुर
कानपुर के १५ (15) परगन
कानपुर ज़िले २४ मार्च १८०३ (24 मार्च 1803) को १५ (15) परगने मिलाकर बनाया गया था। ज़िले में उस समय बिठूर ,शिवराजपुर ,डेरापुर ,घाटमपुर , भोगिनीपुर , सिकंदरा , अक़बरपुर , औरैय्या , कन्नौज , सलेमपुर , अमौली , कोढ़ा , साढ़ , बिल्हौर और जाजमऊ शामिल किए गए थे।
कानपुर का इतिहास
कानपुर शहर का मूल नाम 'कान्हपुर ' था। इस नगर की मूल उत्पत्ति का सचेंडी के राजा हिन्दू सिंह से या महाभारत काल के वीर कर्ण से संबध्द होने की कहानियों के बीच यह प्रमाणित है कि अवध के नवाबों के शासनकाल के अंतिम चरण में यह नगर पुराना कानपुर ,पटकापुर , जूही तथा सिमामऊ गांवो से मिलकर बना था।
जाजमऊ से बिठूर तक जंगल था। इसके बीच गंगा किनारे एक मोजा कान्हपुर है। इतिहासकार बताते हैं कि सचेंडी के राजा हिंदू सिंह भादौ की अष्टमी को गंगा नहाने आया करते थे। तभी उन्हें यह रहने के अनुकूल स्थान समझ आया। राजा ने इसे आबाद करने की चर्चा की ,मंत्रियों और राजा के गुरु ने भी इसे उत्तम बताया जिसके बाद उसी दिन राजा ने आबादी की बुनियाद रखी। कन्हैया अष्टमी के दिन इसकी नींव पड़ने से नाम कान्हापुर पड़ा। राजा हिंदू सिंह ने रमईपुर के राजा घनश्याम सिंह चौहान को आबादी बसाने की जिम्मेदारी दी। इतिहासकार अनूप शुक्ला बताते हैं कि यहां ब्राह्मण , ठाकुर , बेहना , दरजी , मल्लाह और दूसरी जातियों के लोग रहने लगे। वह बताते हैं कि लाला दरगाही लाल वकील तवारीख -ए -जिला कानपुर १८७५ (1875 ) के प्रथम खंड में सचेंडी के राजा हिंदू सिंह द्वारा कानपुर को बसाने का उल्लेख है। कानपुर की स्थापना राजा कान्हदेव द्वारा किए जाने का वर्णन मिलता है।
कलम के धनी साहित्यकारों की कर्मस्थली
यहां कला , साहित्य , कविताओं के ऐसे धुरंधर रहे जिन्होंने वैचारिक क्रांति की न सिर्फ नींव रखी बल्कि अंग्रेजी हुकूमत के विरोध का साहस भरा।
क्रांति की धरा
कानपुर क्रांति की धरा रही हैं फिर चाहे वो सत्तीचौरा घाट पर अंग्रेजों की लाशें बिछाने की बात हो या सत्तीचौरा घाट का इतिहास हो। यहां की माटी में ही स्वाधीनता की अलख जगाने वाले नायब और बेशकीमती हीरों ने जन्म लिया , जिनकी अभिव्यक्ति और दूरदर्शिता ने समाज को परतंत्रता का आइना दिखाया। अंग्रेजों ने न जाने कितने देशभक्तों को फांसी दी , कितनों को जेल में ठूंसा , लेकिन आजादी की लड़ाई का कारवां कभी थमा नहीं।
देश भर में उद्योगों का जलवा
औद्योगिक राजधानी कहे जाने वाले शहर कानपुर में एनटीसी - बीआइसी की मिलें बंद हो गईं , लेकिन चमड़ा उद्योग में कानपुर अग्रिम पंक्ति में है।
ट्राम से मेट्रो तक का सफर
प्रगति के ट्रैक पर तेजी से दौड़ रहे शहर का हुलिया बदल रहा है। कभी यहां ट्राम चलती थी , अब मेट्रो दौड़ रही है। बिठूर , घंटाघर यहां की विशेषता बताते हैं।
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