कानपुर के सुप्रसिद्ध शिवालय
कानपुर असंख्य शिव भक्तो का डेरा तो हैं हि साथ ही ऐतिहासिक और पौराणिक महत्त्व वाले शिवालयों से भरा शहर है। मान्यता है कि सृष्टि की रचना के समय स्वयं ब्रम्हाजी ने बिठूर के ब्रह्मावर्त घाट पर ब्रह्मेश्वर महादेव ,शिवराज के पास खेरेश्वर महादेव ,बनीपारा के पास बाणेश्वर महादेव ,इटारा बनी गांव के वनखंडेश्वर और बाराबंकी में लोधेश्वर महादेव की स्थापना की। आनंदेश्वर ,सोमनाथ और सिद्धनाथ महादेव मंदिर में भक्तों की अटूट आस्था हैं। आइये ,जानते हैं कानपुर के शिव मंदिरों का महत्व और इतिहास .....
आनंदेश्वर मंदिर
मान्यता अनुसार आनंदेश्वर मंदिर में स्थापित शिवलिंग कुंती पुत्र दानवीर राजा कर्ण के यज्ञ कुंड के पिंड से बना। अतः आनंदेश्वर मंदिर का इतिहास महाभारतकालीन है। आनंदी नामक श्यामा गाय जंगल में चरने जाती थी और एक स्थान पर रोज़ाना खड़ी हो जाती तो उसका दूध अपने आप गिरने लगता था। इसका रहस्य जानने के लिए जब खोदाई हुई तो यह शिवलिंग मिला। अतः गाय के नाम पर ही मंदिर का नाम आनंदेश्वर महादेव मंदिर पड़ा। यह मंदिर गंगा तट पर स्थापित है। मनोकामना पूर्ति के लिए श्रद्धालु महादेव का गाय के दूध , इत्र और चमेली के तेल से भी अभिषेक करते हैं।
खेरेश्वर मंदिर
शिवराजपुर से ढाई किलोमीटर दूर छतरपुर गांव स्थित खेरेश्वर महादेव का मंदिर महाभारत काल का है। मान्यता अनुसार खेरेश्वर महादेव शिवलिंग के दर्शन के लिए गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा प्रातःकाल आते हैं और सर्वप्रथम पूजन करते हैं। रात्रि में शयन आरती के समय मंदिर की धुलाई होती हैं और शिवलिंग पर चढ़ाए गए पुष्प हटा दिए जाते हैं , पर मंगला आरती के लिए जब भोर में मंदिर के पट खुलते हैं तो कुछ पुष्प व जल शिवलिंग पर चढ़ा हुआ मिलता है। यहां आसपास के जिलों से ले दूर - दूर से श्रद्धालु जन पूजन के लिए आते हैं। श्रद्धालुओं की यहां अपार भीड़ उमड़ती हैं। माना जाता है कि शिवलिंग के दर्शन से बाधाए दूर होती हैं। खेरेश्वर महादेव में श्रावण मास में दुग्ध अभिषेक का विशेष महत्व है। भगवान शिव जी को अतिप्रिय श्वेत रंग के कमल पुष्प मंदिर के सामने स्थित तालाब में बहुतायत संख्या में है। श्रद्धालु प्रभु का कमल के पुष्प से शृंगार करते हैं। यह स्थल बहुत ही रमणीय हैं। यहां पर्यटक भी खूब आते हैं।
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जागेश्वर महादेव
जागेश्वर महादेव एक सुप्रशिद्ध मंदिर हैं मान्यता है कि २४ (24) घंटे में तीन बार सुबह , दोपहर और रात्रि में शिवलिंग का रंग बदलता है। ख्योरा स्थित जागेश्वर महादेव मंदिर भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र है। स्थित वर्षो पुराने पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करने वालों भालतों की मनोकामना जरूर पूरी होती है। बाबा जागेश्वर ने सबसे पहले जागे मल्लाह को दर्शन दिया था। इसी वजह से इस मंदिर का नाम जागेश्वर मंदिर रखा गया। मान्यता हैं कि आज जहां पर जागेश्वर मंदिर स्थापित है , पहले वहां टीला था। बताया जाता है कि इस टीले पर जागे नामक एक किसान की गाय चरती थी और वह एक स्थान पर दूध गिरा देती थी। एक दिन जागे ने जब वहां खुरपी से खुदाई शुरू की तो शिवलिंग मिला। खुदाई के समय शिवलिंग पर भी खुरपी लगी थी। जागेश्वर महादेव शिवलिंग पर आज भी खुरपी के निशान हैं। यह कानपुर के सिद्ध और प्रशिद्ध शिवालयों में से एक हैं।
सिद्धनाथ मंदिर
सिद्धनाथ यानि कानपुर की काशी। राजा ययाति के काल से मंदिर का इतिहास होने की वजह से यहां कानपुर ही नहीं , बल्कि आसपास के जिलों से भी असंख्य श्रद्धालु जन आते हैं। यह मंदिर गंगा नदी के तट पर स्थित हैं। सिद्धनाथ घाट पर प्रतिदिन होने वाली आरती भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र होती है। मंदिर में श्रावण मास में भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है। आम दिनों में भी श्रद्धालु दर्शन - पूजन को भारी संख्या ,में आते हैं। माँ गंगा के पावन तट पर स्थित नगर के जाजमऊ इलाके में स्थापित भगवान सिद्धनाथ मंदिर का इतिहास पांच हजार साल से भी अधिक पुराना है। भक्त मानते हैं कि सिद्धनाथ भगवान के दर्शन से कामनाओं की पूर्ति होती है। यह मनोहारी स्थल दूसरी काशी के रूप में विख्यात है। यहां स्थापित शिवलिंग की गहराई नापने को दो बार खोदाई भी हो चुकी है , किन्तु इसके अंतिम छोर का पता नहीं चला। कहा जाता है कि राजा ययाति द्वारा कराई गई खोदाई में यहां शिवलिंग की प्राप्ति हुई थी। महाराज ने यहां सौ यज्ञ का संकल्प लिया। ९९ (99) यज्ञ पूरे हो गए थे किन्तु जब अंतिम यज्ञ शुरू हुआ तो एक कौवे ने यज्ञ कुंड में हड्ड़ी गिरा दी। इस कारण से यज्ञ भंग हो गया। सौ यज्ञ पूरे हो जाते तो फिर इस स्थल को दूसरी काशी का दर्जा प्राप्त हो जाता।
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सोमनाथ मंदिर
सोमनाथ मंदिर में भक्तों की अपार श्रद्धा हैं। गुजरात के सोमनाथ मंदिर की तरह यहां कल्याणपुर में भी सोमनाथ मंदिर है। मान्यता है कि चरवाहों द्वारा की गई खोदाई में यहां पांच शिवलिंग की प्राप्ति हुई थी। चार छोटे शिवलिंग मंदिर के चार कोने पर स्थापित हैं , जबकि भगवान सोमनाथ मंदिर के गर्भगृह में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देते हैं। मंदिर में नीलकंठ और अमरनाथ भगवान के दर्शन भी होते हैं। करीब पांच सौ वर्ष पुराने इस मंदिर के पीछे ऐतिहासिक तालाब भी है। भगवान सोमनाथ के जलाभिषेक और अभिषेक में जो भी दूध , दही , घृत शहद आदि अर्पित किया जाता है , वह तालाब के जल में मिलता है। भक्तों में विश्वास है कि तालाब में स्नान करने से कुष्ठ समेत कई असाध्य रोग भी ठीक हो जाते थे। इस मंदिर को कुछ आक्रमणकारियों ने तोड़ दिया था। एक - दो नहीं , बल्कि तीन बार यह मंदिर तोड़ा गया। मंदिर में टूटी हुई मुर्तियां आज भी इसकी गवाह हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी श्रद्धालु दर्शन - पूजन के लिए आते हैं , उनकी कामना अवश्य पूरा होती है इसीलिए यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
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