क्षत्रिय
"भालों से , तलवारों से , तीरों की बौछारों से।
जिसका न हृदय चंचल था , बैरी दल ललकारों से।। "
दो दिन पर मिलती रोटी वह भी तृणकी घासों की।
कंकड़-पत्थर की शय्या , परवाह न आवासों की।।
तुम अजर बढ़े चलो , तुम अमर बढ़े चलो।।
तुम निडर बढ़े चलो , आन पर चढ़े चलो।।
परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।
हिम्मत बिन कुछ हासिल नहीं होता है।
समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता है।
सद्गुण कभी बसी नहीं होते हैं।
जो बिछड़ गए वे लौह पुरुष याद हमेशा आते हैं।
ईमानदारी , मेहनत , लगन , देश भक्ति का पाठ पढ़ाते हैं।
Jai maharana
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