Thursday, 1 August 2019

सिसोदिया क्षत्रिय | क्षत्रिय ( राजपूत ) वंश और उतपत्ति इतिहास | सिसोदिया क्षत्रिय वंश और उतपत्ति इतिहास

क्षत्रिय ( राजपूत )

क्षत्रिय ( राजपूत ) चार सबसे बड़ी हिन्दू जातियों में दूसरी बड़ी जात हैं। ये युद्ध कला में पारंगत होते हैं और समाज की रक्षा करना इनका धर्म होता हैं। 

 सिसोदिया क्षत्रिय 

सूर्यवंशीय गहलोत रजपुत क्षत्रिय वंशजों को शिशोदिया कहा जाता है। राहत जी के वंशज ''सिसोदाग्राम'' में रहने से यह नाम प्रसिद्ध हुआ। यह ग्राम उदयपुर से 24 किलोमीटर उत्तर में सीधे मार्गं से है। गहलौत राजपूतों की शाखा सिसोदिया क्षत्रिय हैं। इस वंश का राज्य उदयपुर प्रसिद्ध रियासतों में है। 
सिसोदिया है जो ''शीश +दिया'' अर्थात ''शीश/सिर/मस्तक'' का दान दिया या त्याग कर दिया या न्योछावर कर दिया इसीलिए ऐसा करने वाले स्वाभिमानी क्षत्रिय वंशजों को सिसोदिया कहा जाता है। इनकी बहुलता पर इनके प्रथमांक राज्य को ''शिशोदा'' कहा गया और राजधानी कुम्भलगढ़/केलवाड़ा कहा गया। इस वंश की 24 शाखाएँ हैं। 


4 comments:

  1. इतना डिटेल्स मे लिखने के पश्चात भी अन्त में सिसोदिया शब्द ही लिखना था तो फिर हमारे द्वारा आपको सही जानकारी उपलब्ध करवाने का क्या अर्थ शेष रह जाता है महोदया हुकूम

    राष्ट्र धर्म व कर्म तथा समाज(प्राणिमात्र वातावरण जलवायु जीवजगत वनस्पति इत्यादी) की रक्षार्थ उन्नति व विकास हेतु बारम्बार अपने शीश का त्याग करवाना,शीश का दान देना,शीश कटवाना,मृत्यु का वरण करना,स्वाभिमान एवं क्षत्रियोचित गुण कर्म धर्म संस्कारों की मर्यादा व गरिमा बनाये रखते हुए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था, आहुति दी थी इसलिये ऐसा करने वाले सभी सुर्यवंशी उप शाखा गुहिलवंश के स्वाभिमानी क्षत्रिय राजपूत--''शिशोदिया''-- कहलाये जाते हैं हुकूम
    उप वंश पुरौधा-- महाराणा हम्मीर सिहँ शिशोदिया(30 जनवरी 1303 जन्म) 1326 मे चित्तौड़गढ़ मेवाड़ राजपुताना की गादी पर बिराजे तथा तत्कालीन खिज्राबाद को पुनः चित्तौड़गढ़ बनाया इन्हे "विषम घाटी पंचानन "की संज्ञा दी गई है !!
    महाराणा हम्मीर सिहँ शिशोदिया के पिता महाराज व छह काकाकाकाओं ओं तथा दादा महाराज श्री लक्ष्मण सिहँ जी शिशोदिया बावजी हुकूम ने अपनी स्वामिभक्ति, स्वाभिमान, दृढ़ प्रतिज्ञता, वचनबद्धता और क्षत्रियोचित आन-बान-शान/मान-मर्यादा व गरिमा के साथ खिलवाड़ करने वाले तुर्क अल्लाउद्दीन खिलजी दिल्ली के सुल्तान से मेवाड़ के प्रथम जौहर व शाका 1303 मे अपने जीवन की सार्थकता को पुर्ण करते हुऐ वीरगति को प्राप्त हुए थे !!
    और ऐसे जुझारू परम योद्धाओं के बलिदान को व्यर्थ करते हुए आपने पुन उनके शीश दान करने पर -'शिशोदिया'- कहलाये के स्थान पर सिसोदिया शब्द लिख दिया है
    यदि आपको भाषायी शुद्धता एवं व्याकरण का पुर्ण ज्ञान है तो आपको यह भी ज्ञात ही होगा कि हिन्दी वर्णमाला के अनुसार शाब्दिक अर्थ,भावार्थ एवं निहितार्थ सहित क्रिया के तिन अर्थों का समय विशेष पर उपयोग सुनिश्चित किया जाता है!!
    आपसे पुनः हमारा सादर निवेदन है कि कृपया शीश का दान देकर शिशोदिया कहलाये अंकित किया जावें महोदया हुकूम !!
    ✍शिशोदा 'मेवाड़'
    सम्पर्क एवं वाट्सप-- 9680377030 / 9680759268 शिशोदा मेवाड़ राजपुताना (अखण्ड भारतवर्ष)

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  2. माननीय महोदया हुकूम और सम्माननीय पाठक गण
    सादर खम्मा घणी सा हुकूम
    जय मां भवानी
    जय श्री एकलिंगनाथाय नमः

    सिसोदिया और शिशोदिया दोनों ही अलग-अलग शब्द है तथा भाषायी बोलचाल उच्चारण उपयोग में भी दोनों शब्दों का अलग-अलग अर्थ ही निकलता है हुकूम
    सिसोदिया और शिशोदिया दोनों ही शब्दों का शब्दार्थ एवं वाक्य विन्यास, भावार्थ और इनमें निहितार्थ भी अलग-अलग होता है हुकूम
    सिसोदिया शब्द के एवं सिसोदियाओं के प्रधान गादीपति की समाप्ति के पश्चात ही शिशोदिया शब्द सम्बोधन व प्रचलन में आया है हुकूम !!
    सुर्यवंशी क्षत्रियों की गुहिलवंश शाखा मे राजस्थान प्रदेश राजपुताना में मुख्य रुप से दो शाखाओं का प्रादुर्भाव हुआ प्रथम वरिष्ठ शाखा - "सिसोदिया" महारावल,रावल पदवी साफा शिरोधार्य
    प्रथम महारावल कालभोज बप्पा रावल
    अन्तिम रावल रतन सिंह सिसोदिया जो 1303 चित्तौड़गढ़ शाका मे वीरगति को प्राप्त हुए !!
    द्वितीय कनिष्क शाखा- "शिशोदिया" महाराणा पदवीं, पगड़ी शिरोधार्य
    प्रथम महाराणा- "हम्मीर सिंह जी शिशोदिया" 30 जनवरी 1303 मे जन्म एवं 1326 में चित्तौड़गढ़ मेवाड़ के गादीपति बने !!
    महाराणा हम्मीर सिहँ शिशोदिया जिनको विषम घाटी पंचानन की संज्ञा भी दी जाती है और इन्होने इनके पिताजी अरीसिहं जी महाराज व पांच भ्राताओं तथा इनके दादा महाराज के शीश दान वीरगति को प्राप्त होने के बाद जब "सिसोदिया" शाखा समाप्त हो जाती है तब जाकर शिश का दान करके शिशोदिया कहलाने वाले क्षत्रियों की शिशोदिया शाखा शुरु होती है और मेवाड़ राजघराना मेवाड़ राजवंश शिशोदिया शाखा से ही हैं ना कि सिसोदिया
    जब सिसोदिया शाखा ही समाप्त हो गई तो फिर उसका उल्लेख वर्तमान राजवंश के रुप मे आपके द्वारा लिखा जाना कहाँ तक उचित है महोदया हुकूम !!
    रही बात राहप जी के वंशजों द्वारा सिसोदा बसाने की जो भी पुर्णतया असत्य है ,महारावल कालभोज बप्पा रावल जी सिसोदिया को सिसा पिलाने पर सिसोदा कहलाया था जो 1303 से कनिष्क शाखा द्वारा राष्ट्र,धर्म और कर्म स्वाभिमान आत्मसम्मान तथा क्षत्रियोचित गुण कर्म से युक्त होकर शीश का दान देने,शीश का त्याग करने पर शिशोदा कहलाया और इसके पश्चात यहाँ के समस्त गुहिलवंश शाखा को शिशोदिया कहा जाने लगा है हुकूम !!

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