निबन्ध
छात्रों में बढ़ती अनुशासन हीनता
प्रस्तावना :
'अनुशासन ' शब्द का अर्थ है - 'शासन अर्थात व्यवस्था के अनुसार जीवन - यापन करना। ' यदि कोई व्यवस्था निश्चित है तो उसके अनुसार जीना। यदि व्यवस्था निश्चित नहीं है तो जीवन में कोई नियम - व्यवस्था या क्रम बनना। अनुशासन जीवन को चुस्त - दुरुस्त बना देता है। इससे कार्यकुशलता बढ़ती है। समय का पूरा - पूरा सदुपयोग होता है। पर क्या आज ऐसा हो रहा हैं ?
अनुशासन की प्रथम पाठशाला परिवार :
अनुशासन का पाठ पहले - पहल परिवार से सीखा जाता है। यदि परिवार में सब कार्य व्यवस्था किए जाते है तो बच्चा भी अनुशासन सीख जाता है। इस लिए मनुष्य को सबसे पहले अपना घर अनुशासित करना चाहिए। परन्तु आज घर - घर नहीं रह गए है। सब जगह एकल परिवार का चलन हो गया है। ऐसे में माँ - बाप को अपने बच्चो के लिए समय ही नहीं होता है , वो अपने बच्चो के लिए नौकर रखते हैं और भला कोई नौकर बच्चे को अनुशासन सिखा सकता हैं , क्या ? उन्हें तो बच्चे को देखना है , अपनी तन्खा देखनी है और घर जाना है। ऐसे में बच्चे अनुशासन कहाँ से सीखेंगे।
अनुशासन हीनता का प्रभाव :
छात्र जिन्हे सदेव अनुशासन का पाठ पढ़ाया जाता है , उनकी जिंदगी में अनुशासन के लिए अब जैसे को जगह ही नहीं रह गई हैं। यह युग वैज्ञानिक युग है इसलिए किसी को किसी की चिंता नहीं है सब अपने - अपने में ही व्यस्त रहते है। कोई जानना तक नहीं चाहता है कि उसके परिवार , विद्यालय , नगर , छेत्र , देश आदि में क्या - क्या घट रहा है। आज बच्चे अपने बड़ो को कोई तवज्जो ही नहीं देते हैं और छात्र अपने शिक्षकों को।
उपसंहार :
वास्तव में अनुशासन एक स्वभाव है। एक विद्या है। अनुशासन का लक्ष्य है - जीवन को समधुर और सुविधापूर्ण बनाना। अनुशासित व्यक्ति को सुशिक्षित और सभ्य कहा जाता है। वह न केवल स्वच्छता पर ध्यान देता है , बल्कि अपनी बोलचाल और व्यवहार पर भी ध्यान देता है। वह समाज के बीच खलन नहीं डालता , बल्कि व्यवहार की गरिमा बढ़ाता है। इस प्रकार अनुशासन जीवन - मूल्य है , मनुष्य का आदर्श हैं। छात्रों के लिए उनकी पहचान हैं।
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