नवरात्र
शक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र एक वर्ष में चार बार आते हैं। माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन माह की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक।
वासंतिक नवरात्र की अवधि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक होते है।
कन्या पूजन
नवरात्र के दिनों में विधिक्रम से कन्या पूजन का विधान है अर्थात पहले दिन एक, दूसरे दिन दो,फिर इसी क्रम में बढ़ाते जाएं। यही नहीं, एक ही कन्या का पूजन नवरात्रभर किया जा सकता है या फिर अष्टमी या नवमी को हवन से पूर्व नौ कन्याओं का पूजन कर सकते हैं। कन्या पूजन करने के बाद उन्हें अपने सामर्थ्य अनुसार वस्त्र,दक्षिणा देकर विदा करें।
चौकी की स्थापना
कलश स्थापना के बाद मां दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है। एक लकड़ी की चौकी को गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर साफ लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दाईं ओर रखना चाहिए। इस पर मां दुर्गा की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चहिए। मां दुर्गा को लाल चुनरी चढ़ानी चाहिए। मां दुर्गा से प्रार्थना करें, हे मां दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिए। देवी मां को दीपक दिखाइए। फिर धूप, फूल-माला, इत्र,मिठाई अर्पित करें।
कलश/घट स्थापना
देवी पुराण के अनुसार, मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश/घट की स्थापना की जाती है। घट स्थापना करना अर्थात नवरात्र की कालावधि में ब्रम्हांड में कार्यरत शक्ति तत्व का घट में आवाहन करना। कार्यरत शक्ति तत्व के कारण वास्तु में विद्यमान कष्टदायक तरंगें समूल नष्ट हो जाती हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार, कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश के मुख में विष्णुजी का निवास होता है, कंठ में रूद्र तथा मूल में ब्रह्माजी का निवास होता है और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।
विधि : जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें। इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं। फिर एक परत जौ की बिछाएं। जौ के बीज चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबें। इसके ऊपर मिट्टी की एक परत बिछाएं। कलश के कंठ पर मौली बांध दें। कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वस्तिक लिखें। कलश में शुद्ध जल फिर गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में सुपारी, दूर्वा,फूल डालें। इसमें थोड़ा सा इत्र डाल दें। पंचरत्न डालें। इसमें कुछ सिक्के रख दें। फिर आम या अशोक के पांच पत्ते रख दें। कलश का मुख कटोरी से बंद कर दें। कटोरी में चावल भर दें। नारियल पर लाल कपड़ा लपेटकर मौली लपेट दें। नारियल को कलश पर रखें। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि नारियल का मुख निचे की तरफ रखने से शत्रुओं में वृद्धि होती है और ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं,जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए इसकी स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहें कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है। कलश को जौ के पात्र में बीचोबीच रख दें। कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। दीपक जलाकर कलश को धूपबत्ती दिखाएं। माला अर्पित करने के बाद फल-मिठाई अर्पित करें फिर कलश को इत्र समर्पित करें।
सामग्री : जौ बौने के लिए मिट्टी का पात्र,शुद्ध साफ मिटटी,या तांबे का कलश,कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल, मौली (कलावा ), इत्र, साबुत सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के, पंचरत्न ( ऐच्छिक ), आम या अशोक के पत्ते, कलश ढकने के लिए एक कटोरी, कटोरी में रखने के लिए अक्षत ( बिना टूटे चावल ), नारियल, नारियल पर लपेटने के लिए एक लाल कपड़ा,फूल-माला, फल व मिठाई।
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