Saturday, 14 June 2025

होने न पायी चार संध्या बलम रसि या बन के आय गयोरे, नकटा गीत, Nakata, Hone na payi char sandhya blm rasiya ban ke aay gayore, Shaadi me gale jane wale geet

 

नकटा 



होने न पायी चार संध्या बलम रसि या बन के आय गयोरे
 होने न पायी चार संध्या बलम रसि या बन के आय गयोरे 
बागो गयी थी फुलवा तोड़न को 
तोड़न न पायी चार फुलवा बलम मलिया बन के आय गयोरे 
होने न पायी चार संध्या बलम रसि या बन के आय गयोरे 
तालो गयी थी चार साड़ी धुलन को 
धोने न पायी चार साड़ी बलम धोबिया बनके आय गयो रे 
 होने न पायी चार संध्या बलम रसि या बन के आय गयोरे
कोनो गयी थी घैला खीचन को 
खीचन न पायी चार घैला बलम कैहरा बन के आय गयोरे
महलो गयी थी खिड़की झकन को झाकन न पायी चार खिड़की बलम रजवा बन के आय गयो रे 
होने न पायी चार संध्या बलम रसि या बन के आय गयोरे।

 

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Saturday, 31 May 2025

शहर में शोर भारी है न मालूम है किस की शादी है , बनरा, Sahar me shor bhari hai na malum hai kis ki shadi hai, Banna Banni Shaadi Geet

 

 बनरा 



शहर में शोर भारी है न मालूम है किस की शादी है
बन्ने के बाबा से पूछो शहर में किसकी शादी है 
उन्होंने हँस के फरमारा मेरे नाती की शादी है ...
 शहर में शोर भारी है न मालूम है किस की शादी है
बन्ने के नाना से पूछो शहर में किसकी शादी है 
उन्होंने हँस के फरमारा मेरे नाती की शादी है ...
शहर में शोर भारी है न मालूम है किस की शादी है
बन्ने के पापा से पूछो शहर में किसकी शादी है 
उन्होंने हँस के फरमारा मेरे बेटे की शादी है ...
शहर में शोर भारी है न मालूम है किस की शादी है
बन्ने के चाचा से पूछो शहर में किसकी शादी है 
उन्होंने हँस के फरमारा मेरे भतीजे की शादी है ...
शहर में शोर भारी है न मालूम है किस की शादी है
बन्ने के भइया से पूछो शहर में किसकी शादी है 
उन्होंने हँस के फरमारा मेरे भाई की शादी है ...
शहर में शोर भारी है न मालूम है किस की शादी है। 



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Sunday, 18 May 2025

आजादी कविता | कविता आजादी | कविता पर कविता | Hindi Poem | हिन्दी कविता | आजादी पर हिन्दी कविता

  आजादी 


15 अगस्त है दिन आजादी का,
लेकिन तब होगी सच्ची आजादी !

जब मिले हर भूखे को खाना,
हर गरीब का हो आशियाना 
हर हाथ को जब काम मिले 
काम का वाजिब दाम मिले 
हर एक बच्चा जब शिक्षित हो 
भविष्य देश का सुरक्षित हो 
अवसर शिक्षा के मिले सबको समान 
हर गॉँव शहर में हो शिक्षण संस्थान 
खेलकूद में मिले सबको भागीदारी 
लोहा हमारा माने ये दुनिया सारी 
महंगाई का ना हो जनता पर वार 
देश में कहीं भी ना हो भ्र्ष्टाचार 
जनता करे जब कानून का पालन 
देश में हर ओर हो अनुशासन 
माँ बहनों पर ना हो अत्याचार 
मासूमों से ना करे कोई बलात्कार 
न्यायालय करे जब निष्पक्ष न्याय 
किसी निर्दोष पर ना हो अन्याय 
छोटे बड़े में ना कोई अंतर हो 
एक साथ चलने का मूलमंत्र हो 
हर किसान जब हो खुशहाल 
अन्न के भंडार भरे हो विशाल 
साफ स्वच्छ मिले सबको पानी 
भूख प्यास से ना मरे कोई प्राणी 
स्वास्थ्य की होगी जब सारी सुविधाएँ 
पहुँच में होंगी सब महंगी दवाएँ 
लाइलाज जब कोई मर्ज ना हो 
बीमार के सर पर कर्ज ना हो 
हर गांव में बिजली चमकती हो 
हर सड़क हर गली दमकती हो 
सड़कों का चारों और बिछा हो जाल 
देश का कोना कोना हो खुशहाल 
सेना के पास हों आधुनिक हथियार 
दुश्मन रहे सदा सिमा के उस पार 
जात धर्म पर ना हो कभी भी लड़ाई 
मिलकर रहें हिंदू मुस्लिम सिख इसाई
सत्य और अहिंसा का संबल हो  
विश्व में मेरा देश भारत अव्वल हो  
जिस दिन सच होगा मेरा ये सपना 
सही मायने में होगा देश आजाद ये अपना 

'' जय हिंद ''




Thursday, 15 May 2025

कानपुर में शक्ति के भवन Kanpur ke parshidha Mata ke Mandir | Shakti ke bhavan | Maa ke Mandir

कानपूर में शक्ति के भवन 


कानपूर में शक्ति के अनेकों उपासक हैं। शहर के हर कोने में आपको मां के एक न एक स्वरूप के दर्शन होंगे। जिनमें से कुछ सुप्रशिद्ध मां के भवनो का आइये जानते है मान्यता और इतिहास ...... 

बारा देवी मंदिर 


शहर के दक्षिण क्षेत्र में स्थापित बारा देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। मंदिर का इतिहास 1500 से 1700 वर्ष पुराना माना जाता है। नवरात्र के दिनों में देवी माँ की आराधना के लिए यहां हजारों भक्त प्रतिदिन पहुंचते हैं। सप्तमी के दिन मां के गांव अर्रा से आया तेल अर्पित किया जाता है। यहां पर नवरात्र के दिनों में मुंडन संस्कार भी बड़ी संख्या में होता है। देवी मां के दरबार में भक्त श्रीफल अर्पित कर समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। 

इतिहास 


कहा जाता है एक बार पिता लठुआ बाबा से अनबन होने पर उनके कोप से बचने के लिए अर्रा गांव स्थित घर से एक साथ 12 बहनें भाग गई थीं। भागते - भागते थक गईं तो किदवई नगर में शिला के रूप में स्थापित हो गई। उसी समय बहनों के श्राप से लठुआ बाबा भी पत्थर के बन गए। उसी समय से सदियों पुराने मंदिर में नवरात्र की सप्तमी के दिन बर्रा गांव से तेल आता है जो यहां के लोगों द्वारा माता पर चढ़ाया जाता है। पत्थर बनीं यही 12 बहनें बारा देवी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। 

मान्यता


नवरात्र में पूजन अर्चन करने के लिए देशभर से लोग बारा देवी मंदिर पहुंचते हैं। इन्हीं देवियों के नाम से दक्षिण के ज्यादातर क्षेत्रों के नाम रखे गए हैं। बर्रा एक से लेकर बर्रा नौ तक ,बिनगवां ,बारा सिरोही और बर्रा विश्व बैंक का नाम भी देवी के नाम पर ही रखा गया है। पुरातत्व विभाग की टीम ने इसका सर्वेक्षण किया था और यह पाया था कि मंदिर की मूर्ति लगभग 1500 से 1700 साल पुरानी है। 


जंगली देवी मंदिर 


शहर के प्रमुख चौराहे किदवई नगर के पास माता जंगली देवी का भव्य मंदिर स्थित है, जहां प्रतिदिन सैकड़ों भक्त मां के दर्शन कर सुख - समृद्धि की कामना करते हैं। नवरात्र में यहां शहर के साथ कई राज्यों से भक्त दर्शन पूजन के लिए आते हैं। मां के खजाने वितरण के दिन हजारों भक्त मां के दरबार में उपस्थिति दर्ज कराते हैं। मान्यता है कि मां का दर्शन कर मांगी गई मुराद पूरी हो जाती है। खजाने को घर में रखने से धन की कमी नहीं होती है। भक्तों को मां के दिव्य स्वरूप के दर्शन होते हैं। 

इतिहास 


मंदिर का इतिहास लगभग 1100 वर्ष पुराना है। प्राचीन मंदिर की खोज वर्ष 1925 में मुहम्मद बकर की खोदाई के दौरान मिले ताम्रपत्र के आधार पर हुई। जब उस ताम्रपत्र को पुरातत्व विभाग लखनऊ को सौंपा गया तो पता चला कि मंदिर पर विक्रम संवत 893 अंकित है। ताम्रपत्र में लिखा था कि यह भूभाग कान्यकुब्ज प्रदेश है, जो राजा भोज देव की आधीन आता है। उस समय राजा भोज देव ही मंदिर की देखरेख करते थे। 

मान्यता


मंदिर में मां का शृंगार पूजन करने से मनोकामना पूरी होती है। मंदिर में वर्ष 1979 से नरंतर मां की अखंड ज्योति चल रही है, जो भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। भक्त मां का पूजन कर अखंड ज्योति के दर्शन जरूर करते हैं। मां को श्रीफल और चुनरी अर्पित करने से सुख - समृद्धि की प्राप्ति होती है।  नवरात्र में मां के दर्शन को दूर - दूर से भक्त आते हैं। 

चण्डिका देवी मंदिर 


शक्ति स्वरूपा मां चण्डिका देवी का प्राचीन मंदिर शहर के देवनगर क्षेत्र में स्थित है। प्राचीन मंदिर के नाम पर ही चण्डिका देवी चौराहे का नाम पड़ा है। लगभग 200 वर्ष प्राचीन चण्डिका देवी मंदिर में मां के दिव्य स्वरूप के साथ विह्नहर्ता गणेश महाराज व भैरव महाराज विराजमान हैं। मंदिर में प्राचीन कुंआ भी है। जहां पर शादी में कुआं पूजन के साथ हवन व अन्य संस्कार पूजन होते हैं। नवरात्र के दिनों में मां को प्रतिदिन सवा मन हलवे का भोग अर्पित किया जाता है। शहर के साथ कई राज्यों से भक्त नवरात्र के दिनों में मां का दर्शन पूजन करने के लिए आते हैं। मां के दरबार में दर्शन के लिए जो भक्त आते हैं,उन्हें मां के श्री चरणों में अर्पित भोग प्रसाद दिया जाता है। नवरात्र के दिनों में मां को हलवा और चने का भोग अर्पित कर भक्त समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। नवरात्र में मां का मनोहारी शृंगार भक्तों को आकर्षित करता है। मां का दिव्य स्वरूप देखने के लिए नवरात्र में सैकड़ों भक्त मंदिर पहुंचते हैं। मंदिर परिसर में परिवार सहित दर्शन करने भक्त दूर-दूर से आते हैं। 

इतिहास 


चण्डिका देवी मंदिर में लगभग 76 वर्षों से अखंड ज्योति कमल के पत्ते पर जल रही है। वर्ष में पड़ने वाले दोनों नवरात्रों में अखंड ज्योति के लिए पात्र में तेल डाला जाता है। राजस्थानी शिल्पकला से निर्मित मंदिर में मां भवानी के साथ विह्नहर्ता और भैरव महाराज की मूर्ति स्थापित है। मंदिर में नवरात्र के दिनों में 108 नारियल अर्पित कर मां का पूजन किया जाता है। प्राचीन मंदिर में जल रही मां की अखंड ज्योति के दर्शन करने के लिए देशभर से भक्त मंदिर पहुंचते हैं। 

मान्यता


मंदिर में 76 वर्षों से निरंतर अखंड ज्योति कमल के पत्तों पर तैरते हुए प्रज्वलित हो रही है। इसे मंदिर के सर्वराकार ने प्रज्वलित किया था। तब से यह निरंतर जल रही है। मंदिर के गर्भ गृह में एक दर्पण लगाया गया है, जिसमें मां के दर्शन करने पर मां का शीश कुछ झुका हुआ दिखता है। मान्यता है कि अष्टमी पूजन के समय के लिए मां का शीश सीधा भक्तों को दिखने लगता है। 

ज्वाला देवी मंदिर 


भीतरगांव ब्लाक के बेहटा गंभीरपुर गांव स्थित मां ज्वाला देवी का मंदिर करीब पांच सौ साल पुराना है। मंदिर में पहुंचने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नवरात्र की सप्तमी और अष्टमी को यहां मेले का आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही रामलीला का भी आयोजन होता है। इसमें बड़ी संख्या में भक्त देशभर से मां के दर्शन को आते हैं। मंदिर में कुंड रूप में माता का पूजन होता है। मां ज्वाला देवी के दरबार में नवरात्र के दिनों की छठा मनोहारी होती है। भक्तों के जयकारों से देवी मंदिर गूंज उठते हैं। हर भक्त श्रद्धाभाव से मां के दर्शन व प्रार्थना करता है। 

मान्यता 


ग्रामीणों के मुताबिक, गांव के ही एक मराठन बाबा हिमाचल प्रदेश स्थित ज्वाला देवी मंदिर से जलती हुई ज्योति लेकर आए थे। तब से यहां पर लगातार ज्योति जल रही है। मंदिर में माता कुंड के रूप में मौजूद हैं। यहां पहुंचने वाले भक्त कुंड को जल से भरकर अपनी मनोकामनां मांगते हैं,जिसे मां पूरी करती हैं। 

ऐसे पहुंचे मां के दरबार


कानपूर या अन्य जनपदों से आने वाले लोग रमईपुर से साढ़ होते हुए भीतरगांव के बेहटा गंभीरपुर पहुंच सकते हैं। इसके साथ ही हमीरपुर,भोगनीपुर और पुखरायां की ओर से जाने वाले लोग पहले घाटमपुर आकर यहां के कुष्मांडा देवी तिराहा से साढ़ को जाने वाले रोड से होते हुए मंदिर पहुंच सकते हैं। 

बंदी माता मंदिर चौबेपुर 


चौबेपुर में गंगा के किनारे स्थित बंदी माता घाट अति प्राचीन है। यहां पर दूर-दूर से लोग स्नान और पूजन पाठ करने आते हैं। मान्यता के अनुसार यहां लोग बच्चों का मुंडन संस्कार भी कराते हैं। यहां स्थित प्राचीन मंदिर शहर के साथ देशभर के भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां पर नवरात्र के दिनों में भक्त आकर विधिवत पूजन अर्चन कर मां से समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। मां के दरबार में भोर पहर से भक्त पहुंचने लगते हैं और मंदिर में गंगा जल अर्पित करते हैं नवरात्र में मां के दर्शन मात्र से भक्तों का कल्याण होता है। मां भक्तों की मुराद को पूरा कर उनका कल्याण करती हैं। मां का दरबार सच्चा है यहां हर भक्त की मुराद पूरी होती है। 

इतिहास 


त्रेतायुग में भगवान राम ने सीता माता का जब परित्याग किया तो वह बिठूर के अरण्य क्षेत्र में पहुंचीं। गंगा के किनारे अटवा गांव के पास उन्होंने बालू की मूर्ति बनाकर पूजा अर्चना शुरू की। जब वे यहां से जाने लगीं तो एक देवी प्रकट हुईं। उन्होंने माता सीता से कहा कि वह उन्हें छोड़कर न जाएं। इस पर सीता जी ने वैदेही की शिला घाट पर स्थापित की। तब से इस स्थान को वैदेही माता का मंदिर कहा जाने लगा। बाद में लोग भाषा में इसे लोग बंदी माता का मंदिर कहने लगे। 

ऐसे पहुंचे मां के दरबार


चौबेपुर से पांच किलोमीटर दूर बंदी माता मार्ग पर अटवा गांव में गंगा के किनारे मंदिर है। यहां मैनावती मार्ग होते हुए बिठूर से पहुंचा जा सकता है। 

दुर्गा देवी मंदिर 


महाराजपुर के महोली गांव में स्थित मां दुर्गा देवी का मंदिर कई सौ साल प्राचीन है। यहां मां भगवती त्रिशक्ति के रूप में विराजमान हैं। मध्य में स्थित मां काली की प्रतिमा को मुगलों के समय नष्ट करने का प्रयास किया गया था। मां काली से मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है। भक्त श्रीफल और चुनरी के साथ घंटा मां को अर्पित करते हैं। दुर्लभ चित्रकारी व नक्काशी मंदिर की प्राचीनता को दर्शाती है। दुर्गा अष्टमी के दिन मां की भव्यता व दिव्यता के अद्भुत दर्शन होते हैं। मंदिर में हजारों वर्ष प्राचीन काली मां की प्रतिमा का शृंगार करने के लिए भक्त शहर और ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। 

इतिहास 


मंदिर के गर्भगृह में 40 वर्षों से लगातार अखंड ज्योति प्रज्वलित है। मंदिर में प्रत्येक माह की पूर्णिमा को विधि-विधान से हवन किया जाता है। प्रत्येक नवरात्र में अष्टमी के दिन दुर्गा महोत्सव मनाया जाता है। इस दिन मां का भव्य शृंगार किया जाता है। यहां प्रतिवर्ष रामलीला व मेले का आयोजन होता है। प्राचीन मंदिर की शैली भक्तों को अपनी प्राचीनता से परिचित कराती है। 

मान्यता


भक्तों के मुताबिक अष्टमी के दिन मां के दरबार में कच्चा नारियल अर्पित कर जो भी मुराद मांगी जाती है,वह जरूर पूरी होती है। जीवन से निराश और हताश जो भी भक्त सच्चे मन से मां के दर्शन करता है उसकी झोली मां भरती हैं। दुर्गा मंदिर क्षेत्र का सबसे प्राचीन मंदिर है। 

ऐसे पहुंचे मां के दरबार


मंदिर कानपुर-प्रयागराज हाईवे पर महाराजपुर क्षेत्र में महोली गांव में स्थित है। रामादेवी से आने पर सरसौल पार कर हाईवे पर स्थित महोली मोड़ से आधा किमी अंदर बाएं हाथ चलना पड़ेगा। फतेहपुर से आने वालों को छिवली नदी पार कर पुरवामीर से लगभग एक किमी आगे चलने पर महोली मोड़ जाएगा। 

पंथा देवी मंदिर 


बिठूर के मैनावती नगर स्थित पंथा देवी के मंदिर का इतिहास सतयुग से जुड़ा है। यहां भक्त चुनरी और नारियल माता को अर्पित करते हैं। मंदिर से शहर के साथ आसपास जिलों के ग्रामीण शुभ कार्य की शुरुआत से पहले यहां पूजन कसने आते है। मां को विवाह का सबसे पहला निमंत्रण ग्रामीण आज भी देते हैं। नवरात्र के दिनों में मां के दरबार में भक्तों का संगम देखने को मिलता है। सतयुग के इस प्राचीन मंदिर में मां पंथा देवी के दर्शन करने से संकट से मुक्ति मिलती है। मां हर भक्त की कठिनाई भरी राह को आसान करती हैं। नवरात्र के दिनों में मां के दरबार में देशभर से भक्त आते हैं। 

इतिहास 


पंथा देवी मंदिर को पथिकेश्वरी देवी के रूप में जाना है। मां की पूजा अर्चन करने से पथ में कोई कभी रुकावट नहीं आती है। मां हर पथ को सरल कर देती हैं। इसलिए भक्तों ने मां के मंदिर का नाम पंथा देवी रखा। भक्त महाबीर गौड़ के मुताबिक पंथा देवी मंदिर में बाजीराव पेशवा द्वितीय पूजा पाठ करने आते थे। बिठूर के लोग देवी मां को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं। 

मान्यता


भक्त आरती कश्यप ने बताया कि मां को गुड़हल का पुष्प अर्पित करने से मां की कृपा प्राप्त होती है। मां के दरबार में श्रीफल और चुनरी अर्पित करने के लिए नवरात्र में हजारों भक्त पहुंचते हैं। कहा जाता है कि मां के दरबार में शिवराजपुर के बंदी माता घाट से जल भरकर अर्पित किया जाता है, जिससे भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मां के दरबार में खोखो मइया भी विराजमान हैं। 

ऐसे पहुंचे मां के दरबार


उन्नाव, कन्नौज, लखनऊ और बिल्हौर की ओर से आने वाले भक्त राम धाम चौराहे पर पहुंचकर मां के दरबार में दर्शन करते के लिए आते हैं। राम धाम चौराहे से 500 मीटर की दूरी पर मां का दरबार स्थित है। शहर की और से आने वाले भक्त मैनावती मार्ग होते हुए मां के दरबार पहुंच सकते हैं। 

दुर्गा मंदिर दबौली 


शहर के दक्षिण में दबौली स्थित दुर्गा मंदिर की स्थापना वर्ष 1979 में की गई थी। मंदिर में मठिया के रूप में विराजमान मां अब भव्य दरबार में भक्तों पर कृपा लुटाती हैं। मंदिर में देवी मां के साथ शिव परिवार,श्रीराम दरबार,गणेश महाराज,राधा-कृष्ण और शनिदेव की प्रतिमाएं स्थापित हैं। नवरात्र के दिनों में मां के दर्शन के लिए शहर के साथ आसपास जिलों से बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। प्रतिदिन मां की आरती में सैकड़ों भक्तों के साथ दबौली बाजार के भक्त शामिल होकर मां का वंदन करते हैं। नवरात्र के दिनों में मां के दरबार की रौनक देखने लायक होती है। 

इतिहास 


मंदिर की स्थपना क्षेत्रीय लोगों ने की थी। इसके बाद से पंडित अशोक दीक्षित और पंडित निर्मल दीक्षित मंदिर में मां की सेवा कर रहे हैं। भक्तों के मुताबिक,मंदिर में पहले मां एक मठिया के रूप में विराजमान थीं। बुंदेलखंड शैली में बने प्राचीन मंदिर में देवी मां के मनोहारी स्वरूप के दर्शन होते हैं। मंदिर में माता की रसोई में दिव्यांगों को निश्शुल्क भोजन उपलब्ध कराया जाता है। वहीं,यज्ञशाला में वर्षभर हवन पूजन का आयोजन कर वातावरण की शुद्धि की जाती है। 

मान्यता


भक्त बताते हैं कि मंदिर में वर्षों से देवी मां के समक्ष ईंट पूजन की परंपरा चली आ रही है। मान्यता है कि मंदिर में नई ईंट का पूजन देवी मां के समक्ष करने से भक्तों की मुराद पूरी होती है। मन्नत पूरी होने के बाद उस नई ईंट का प्रयोग मंदिर निर्माण के लिए किया जाता है। मन्नत पूरी होने के बाद भक्त मां का शृंगार करते हैं। मंदिर में पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के लिए वट वृक्ष,बरगद,आम और अन्य प्रकार के पेड़-पौधे लगाए जाते हैं। 

ऐसे पहुंचे मां के दरबार


दबौली स्थित दुर्गा मंदिर पहुंचने के लिए सीटीआइ चौराहे,शास्त्री चौक होते हुए दबौली तक सीधा साधन उपलब्ध है। जहां से मां के दरबार में पहुंचा जा सकता है। 

काली माता मंदिर 


काली माता मंदिर हरजिंदर नगर, सुभाष रोड में स्थित है। कानपुर मध्य में स्थित इस मंदिर का इतिहास 100 से 150 वर्ष पुराना माना जाता है। नवरात्र के दिनों में देवी माँ की आराधना के लिए यहां हजारों भक्त प्रतिदिन पहुंचते हैं। यहां पर नवरात्र के दिनों में मुंडन संस्कार भी बड़ी संख्या में होता है। प्रति वर्ष शीतला अष्टमी के दिन मां का मोहक शृंगार, विशाल जावरा यात्रा, भंडारा प्रसाद वितरण और पाँच दिनों के लिए मेले का सुंदर आयोजन होता है।  

इतिहास 


काली माता मंदिर का इतिहास 100 से 150 वर्ष पुराना माना जाता है। 25 वर्ष पहले सफीपुर और काजीखेड़ा के लोगो द्वारा मंदिर का सुंदरीकरण कराया गया था। मंदिर में काली माता की तीन मठिया स्थापित है और महाबली हनुमान, शीतला माता, भगवान भैरव और शिवलिंग भी स्थापित है। 

मान्यता


दूर-दूर से भक्त जन मां से अपनी मुरादें मांगने आते हैं, मां का पूजन कर शीतला आष्टमी के दिन होने वाली जावरा यात्रा में शामिल होते हैं, मां की दयाद्रष्टि सहदेव उनपर बनी रहती हैं। मां के दरबार में घंटा चढ़ाने की भी मान्यता है।   

 

आदि शक्ति मां दुर्गा मंदिर 


शक्ति स्वरूपा आदि शक्ति मां दुर्गा का प्राचीन मंदिर शारदा नगर में स्थित है। मंदिर में मां के आदि शक्ति दुर्गा के रूप के साथ राधा - कृष्ण , श्रीराम दरबार , श्री भीमशंकर महादेव , श्री गोवर्धन पर्वत और शनि देव विराजमान हैं। मंदिर में बनी यञशाला में हवन पूजन नियमित रूप से किया जाता है। नवरात्र के दिनों में मां के दर्शन करने के लिए शहरभर के भक्त मंदिर पहुंचते हैं। महिलाएं मां का शृंगार कर विधिवत पूजन अर्चन करती हैं। मां से सुहाग और बच्चों की समृद्धि की कामना के लिए नवरात्र के दिनों में पाठ और रामनवमी को विशेष पूजन और यज्ञ का आयोजन किया जाता है। 

इतिहास 


मंदिर के पुजारी नरेंद्र मिश्रा बताते हैं कि शारदा नगर क्षेत्र में देवी मां का कोई दूसरा मंदिर नहीं होने के चलते भक्तों ने आपसी सहयोग से 30 वर्ष पहले मंदिर का निर्माण कराया था। सबसे पहले श्री दास हनुमान की प्रतिमा स्थापित की गई थी। इसके बाद नर्मदा नदी से बाबा भीमशंकर का शिवलिंग लाकर स्थापित किया गया। भक्त दूर - दूर से आकर मां का पाठ करते हैं। राजस्थानी शिल्प में बना मंदिर आस्था का केंद्र है। मंदिर की प्रतिमाए राजस्थान से लाई गई थीं। 

ऐसे पहुंचे मां के दरबार 


बिल्हौर,कल्याणपुर,से आने वाले भक्त गुरुदेव चौराहे से शारदा नगर पहुंचकर श्री राधाकृष्ण मंदिर में विराजमान मां के दर्शन करते हैं। वहीं, रामादेवी की और से आने वाले भक्त भी गुरुदेव चौराहे से मंदिर पहुंच सकते है। नवरात्र के दिनों में गुरुदेव चौराहे से मंदिर तक के लिए साधन उपलब्ध रहता है। 



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Wednesday, 16 April 2025

बन्ना की लीला अपार चलो सखी देखन को चलिए , बनरा, Banna kI lila apar chalo sakhi dekhan ko chalie, Banna Banni Shaadi Geet

 बनरा 



 बन्ना की लीला अपार चलो सखी देखन को चलिए 

तन बन्ना के जामा सोहे जामा में 
लगे हीरा लाल चलो सखी 
बन्ना की लीला अपार चलो सखी देखन को चलिए  
हाथ बन्ना के कंकन सोहे घडिया में 
लगे हीरा लाल चलो सखी  

बन्ना की लीला अपार चलो सखी देखन को चलिए 

गाले बन्ना के हरवा सोहे टाई में 
लगे हीरा लाल चलो सखी  

बन्ना की लीला अपार चलो सखी देखन को चलिए 

पैर बन्ना के मोज़े सोहे जूते में 
लगे हीरा लाल चलो सखी  

बन्ना की लीला अपार चलो सखी देखन को चलिए 

संग बन्ना के हरियाली बन्नी सोहे डोली में 
लगे हीरा लाल चलो सखी  

बन्ना की लीला अपार चलो सखी देखन को चलिए ...  




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Wednesday, 8 January 2025

महाकुम्भ 2025 प्रयागराज

 महाकुम्भ   


यत्र देवाः सक्रुध्यन्ते यत्र सर्पिणो व्रजंति च। 

यत्र ब्रम्हास्वयं याति प्रयागस्तु स वै स्मृतः।।

अर्थ : जहां स्वयं ब्रह्मा आते हैं , जहां देवगण और ऋषि - मुनि एकत्रित होते हैं ,
         वह स्थान प्रयाग है , जो सभी तीर्थों में सबसे पवित्र माना गया है। 
 



 महाकुम्भ की कथा 


सनातन धर्म की आस्था व वैभव के प्रतीक महाकुम्भ का संबंध समुद्र मंथन से जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार , प्राचीनकाल में देव व असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था और समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को पाने के लिए देव और असुरों में १२ (12) दिनों तक संघर्ष चला। भगवान विष्णु के कहने पर गरुड़ ने अमृत का कलश ले लिया। असुरों ने जब गरुड़ से अमृत कलश छीनने का प्रयास किया तो उस पात्र से अमृत की कुछ बूंदें छलक कर प्रयागराज , नासिक , हरिद्वार और उज्जैन में गिरीं। इन्हीं चारों नगरों में १२ (12) वर्ष के अंतराल में महाकुम्भ का आयोजन किया जाता है।  तीर्थराज प्रयाग का महाकुम्भ दुनिया का सबसे बड़ा व भव्य आयोजन होता है। धर्म और अध्यात्म का ऐसा समागम और कहीं नहीं दिखता। महाकुम्भ - २०२५ (2025) प्रयागराज में १३ (13) जनवरी , २०२५ (2025) से २६ (26) फरवरी , २०२५ (2025) तक आयोजित होने जा रहा है। 

तीर्थों के राजा हैं प्रयागराज 


पौराणिक मान्यता है कि सृष्टि रचना से पहले परमपिता ब्रम्हाजी ने तीर्थराज प्रयाग में यज्ञ किया था। जहां यज्ञ हुआ था , वह मोहल्ला दारागंज के नाम से विख्यात है।  इसी कारण प्रयागराज को 'तीर्थों के राजा' के रूप में जाना जाता है।  धार्मिक मान्यता है कि तीर्थराज प्रयाग में जप - तप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। माघ मास में श्रद्धालु संगम तीरे कल्पवास करने आते हैं।  कुम्भ व महाकुम्भ में श्रद्धालुओं की संख्या करोड़ों में पहुंच जाती है। हर १२ (12) वर्ष में देश - विदेश के संत व श्रद्धालु पुण्य अर्जित करने के लिए प्रयागराज आकर संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। संगम की रेती में रमकर भजन - पूजन करके इहलोक से परलोक तक सुधारने का प्रयत्न करते हैं। ऐसा दृश्य दुनिया में कहीं नहीं दिखता। 

सनातन गर्व महाकुम्भ पर्व २०२५ (2025) प्रयागराज 































Sunday, 29 December 2024

मेरे बन्ना को कोई मत देखो नजरिया लग जाएगी , बनरा, Mere Banna ko koi mat dekho najariya lag jaegi, Banna Banni Shaadi Geet

  बनरा 




मेरे बन्ना को कोई मत देखो नजरिया लग जाएगी 
हाथ बन्ना के घड़ियाँ सोहे कंगन पे नजरिया लग जाएगी ...
मेरे बन्ना को कोई मत देखो नजरिया लग जाएगी 
सर बन्ना के सहरा सोहे पगड़ी पे नजरिया लग जाएगी ...
मेरे बन्ना को कोई मत देखो नजरिया लग जाएगी 
गले बन्ना के हरवा सोहे लड़ियों पे नजरिया लग जाएगी  ...
मेरे बन्ना को कोई मत देखो नजरिया लग जाएगी
अंग बन्ना के जामा सोहे पटुके पे नजरिया लग जाएगी  ...
मेरे बन्ना को कोई मत देखो नजरिया लग जाएगी 
पैर सोहे जूतों की जोड़ी मोजो पे नजरिया लग जाएगी  ...
संग सोहे बनना के डोला बननी पे नजरिया लग जाएगी ... 
मेरे बन्ना को कोई मत देखो नजरिया लग जाएगी .... । 



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